Monday, December 1, 2008

अपने माहौल में रहने देना


तुम्हारे बहाव में
बह जाने के लिए,
मैं अक्सर जाता हूँ
अपने किनारे से चलते हुए
तुम्हारे मंझधार तक

वो जो कुछ पल हैं मेरे पास
तुम्हारी ताप वाले
उनमें जाकर स्थिर हो रहना
मुझे देता है
आगे जीने की ऊर्जा

मैं खाली कर के
हमेशा रखता हूँ कुछ स्थितियां
ताकि तुम आओ तो
उनमें कुछ भर सको उनमें

मध्धम से तेज
हर तरह की धुप में
तुम्हारा रूप
भरता रहता है
मेरा कोशा कोशा

रात जब भी
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिरी है
सुबह उठ कर पाया है
तेरी जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको

बस आख़िर में
यही गुजारिश है
अपने ही माहौल में
मुझे रहने देना हमेशा
इसी तरह

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

मैं खाली कर के
हमेशा रखता हूँ कुछ स्थितियां
ताकि तुम आओ तो
उनमें कुछ भर सको उनमें
बेहद खूबसूरत रचना...वाह.
नीरज