Thursday, February 5, 2009

तेरी बातों के बिना...

बहुत तेज सन्नाटा है !

सारी आवाजों को दबाए बैठा है
किसी बर्बर तानाशाह की तरह

होंठ के भीतर हीं ,
ये आवाजें,
गले के ठीक नीचे तक भरी
कोई फडफडा रही है , कोई बौखला रही है ,
कोई घुमड़ रही है किसी गुबार की तरह
कोई थक के शांत बैठ गई है

ये दबी हुई आवाजें,
जिनका कि शक्ल अब शोर के जैसा है,
जब बौखलाहट बहुत बढ़ जाती है
हिचकियाँ बन के निकलती हैं
थोड़ा-थोड़ा
सन्नाटे के कान बचाती हुई।

2 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

होंठ के भीतर हीं ,
ये आवाजें,
गले के ठीक नीचे तक भरी
कोई फडफडा रही है , कोई बौखला रही है ,
कोई घुमड़ रही है किसी गुबार की तरह
कभी कभी खामोशी की बर्फ होठों पर पसर जाती है

अमिताभ मीत said...

बहुत तेज़ सन्नाटा, दबी हुई आवाजों की शोर की-सी शक़्ल ...

क्या बात है ... हालांकि सन्नाटे से कान बचाना मुश्किल है .....