Thursday, April 30, 2009
कभी भी कुछ छूटता है
कभी भी कुछ छूटता है
तो तेरे छूटने जैसा हीं लगता है
जैसे तू ही छूट गयी फिर से
पर सोंचता हूँ कि कोई एक,
दो बार कैसे छूट सकता है
चीजों का छूटना
दरअसल
छूटने के उसी एक मंजर से आज भी बाविस्ता हैं
और शायद आगे भी रहेंगी
उस बार की तरह हीं
हर बार गला बुक्का फाड़ती है
आँख बहती है
सीना फटता सा है
और समंदर के किनारे ढेर सारी
सिथुए और कौडियाँ जमा हो जाती हैं
पर अजीब है ये भी कि
चीजें आज भी छूटती रहती हैं
रुकने और रोकने,
बंधने और बाँधने
और इस तरह के तमाम यत्न के बावजूद,
उनका छूट जाना आज भी होता है
जैसे कि तय रहा हो उनका छूटना
कभी यूँ भी होता है कि
हम जोड़ते हैं कुछ ऐसी चीजें
जिनके बारे में हम जानते होते है
कि वे छूटेंगी
पर हम नही रोक पाते जोड़ना
और कई बार अनजाने हीं में
जुड़ जाती है चीजें
पर सभी स्थितियों में
तकलीफ एक सी हीं होती है
जब जुड़ी हुई कोई चीज छूटती है
दरअसल
यह मान लेना तकलीफ कम कर देता है कि
मिलना, जो कि बहुत सारे गम मिटा देती है,
बहुत सारी खुशियाँ ला देती है,
छूटने की प्रक्रिया की हीं शुरुआत है
इसलिए छूटने की तकलीफ के बारे में कहते समय
मिलने की खुशी को उसमें से घटा देना जरूरी है
कई बार यूँ भी होता है
कि हम चाहते हुए भी जुड़ नहीं पाते
फिर किसी सुनसान के शिकार होते हुए
तकलीफ में जीते-मरते रहते हैं
अंततः मेरा कहना ये है कि
सिर्फ़ छूट जाने से होने वाली तकलीफ के कारण
हमें जुड़ना और जोड़ते रहना छोड़ना नही चाहिए
क्यूंकि यह तकलीफ उस तकलीफ से
छोटी होती है जो
कभी नही जुड़ने या जोड़ पाने पैदा होती है
तो तेरे छूटने जैसा हीं लगता है
जैसे तू ही छूट गयी फिर से
पर सोंचता हूँ कि कोई एक,
दो बार कैसे छूट सकता है
चीजों का छूटना
दरअसल
छूटने के उसी एक मंजर से आज भी बाविस्ता हैं
और शायद आगे भी रहेंगी
उस बार की तरह हीं
हर बार गला बुक्का फाड़ती है
आँख बहती है
सीना फटता सा है
और समंदर के किनारे ढेर सारी
सिथुए और कौडियाँ जमा हो जाती हैं
पर अजीब है ये भी कि
चीजें आज भी छूटती रहती हैं
रुकने और रोकने,
बंधने और बाँधने
और इस तरह के तमाम यत्न के बावजूद,
उनका छूट जाना आज भी होता है
जैसे कि तय रहा हो उनका छूटना
कभी यूँ भी होता है कि
हम जोड़ते हैं कुछ ऐसी चीजें
जिनके बारे में हम जानते होते है
कि वे छूटेंगी
पर हम नही रोक पाते जोड़ना
और कई बार अनजाने हीं में
जुड़ जाती है चीजें
पर सभी स्थितियों में
तकलीफ एक सी हीं होती है
जब जुड़ी हुई कोई चीज छूटती है
दरअसल
यह मान लेना तकलीफ कम कर देता है कि
मिलना, जो कि बहुत सारे गम मिटा देती है,
बहुत सारी खुशियाँ ला देती है,
छूटने की प्रक्रिया की हीं शुरुआत है
इसलिए छूटने की तकलीफ के बारे में कहते समय
मिलने की खुशी को उसमें से घटा देना जरूरी है
कई बार यूँ भी होता है
कि हम चाहते हुए भी जुड़ नहीं पाते
फिर किसी सुनसान के शिकार होते हुए
तकलीफ में जीते-मरते रहते हैं
अंततः मेरा कहना ये है कि
सिर्फ़ छूट जाने से होने वाली तकलीफ के कारण
हमें जुड़ना और जोड़ते रहना छोड़ना नही चाहिए
क्यूंकि यह तकलीफ उस तकलीफ से
छोटी होती है जो
कभी नही जुड़ने या जोड़ पाने पैदा होती है
Saturday, April 25, 2009
क्यूँ की वजहें तो हैं उदास होने के!
मैं जीवित रखता हूँ
अपने भीतर
खुद को उदास कर लेने के तमाम साधन
क्यूँ की अक्सर
निकल आती हैं उदास होने की जरूरतें
घर में भी
और बाहर भी
छब्बीस तरह की वजहें मिल जाती हैं
चौबीस घंटे में
जिस पे उदास हो जाना जरूरी हो जाता है
जहाँ तक ख़ुशी के मौसमों की बात है
लगता है
बहुत थोड़े समय के लिए
कभी-कभार
जरूरत लगती है उनकी
और काम चलाया जा सकता है थोड़े से भी
या फिर उनके बिना बिना भी
क्यूंकि ज्यादा रख के भी क्या करना
जब काम हीं ना आये
अपने अनुभव
और की गयी गणना के आधार पे
कहा है मैंने ये सच
और ये सिर्फ मेरा सच नहीं है
मुझे लगता है
वे स्वार्थी और संवेदनहीन लोग हैं
और निष्ठुर भी
जो खुद को उदासी से बिल्कुल दूर
रख पाते हैं और जिन्हें
चौबीस घंटे में छब्बीस वजहें
नहीं दिखती उदास होने के
क्यूँ की वजहें तो हैं उदास होने के
अपने भीतर
खुद को उदास कर लेने के तमाम साधन
क्यूँ की अक्सर
निकल आती हैं उदास होने की जरूरतें
घर में भी
और बाहर भी
छब्बीस तरह की वजहें मिल जाती हैं
चौबीस घंटे में
जिस पे उदास हो जाना जरूरी हो जाता है
जहाँ तक ख़ुशी के मौसमों की बात है
लगता है
बहुत थोड़े समय के लिए
कभी-कभार
जरूरत लगती है उनकी
और काम चलाया जा सकता है थोड़े से भी
या फिर उनके बिना बिना भी
क्यूंकि ज्यादा रख के भी क्या करना
जब काम हीं ना आये
अपने अनुभव
और की गयी गणना के आधार पे
कहा है मैंने ये सच
और ये सिर्फ मेरा सच नहीं है
मुझे लगता है
वे स्वार्थी और संवेदनहीन लोग हैं
और निष्ठुर भी
जो खुद को उदासी से बिल्कुल दूर
रख पाते हैं और जिन्हें
चौबीस घंटे में छब्बीस वजहें
नहीं दिखती उदास होने के
क्यूँ की वजहें तो हैं उदास होने के
Thursday, April 23, 2009
हर रिश्ते की एक उम्र होती है!
उसने कहा-
रिश्ते की शुरुआत लम्बी होनी चाहिए
उसने कहा कि
हर रिश्ते की एक उम्र होती है
और वो शुरूआती दौर में तय हो जाती है
जितनी तेजी से आप उस आरम्भ को ख़त्म कर देते हैं
उतनी जल्दी अंत शुरू हो जाता है
इसलिए
रिश्तों को अच्छी उम्र गर देनी हो
तो धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए
छोटे-छोटे कदमों से
उसने यह भी कहा कि
शुरुआत को लम्बा रखना
उस स्थिति में भी अच्छा होता है
जब उससे बाहर आना होता है
अगर हम तेज चल गए होते हैं
तो हमें वापसी में ज्यादा दूरी तय करनी होती है
और हमारे टखनों में ज्यादा दर्द होता है
मैंने कहा-
कि कुछ लोगों के पास
इतना वक्त बचा नहीं होता कि
शुरुआत को लम्बा रखते हुए
रिश्ते को उसके मोकाम तक पहुंचा सके
उसने कहा कि
रिश्ते की उम्र जिदगी की उम्र से बड़ी होनी चाहिए
और रिश्ता जिंदगी के बाद भी
मोकाम तक पहुँच सकता है.
मुझे उसका ये सब कहना अच्छा लगा था
तब भी, जब मेरे पास वक्त नहीं था
रिश्ते की शुरुआत लम्बी होनी चाहिए
उसने कहा कि
हर रिश्ते की एक उम्र होती है
और वो शुरूआती दौर में तय हो जाती है
जितनी तेजी से आप उस आरम्भ को ख़त्म कर देते हैं
उतनी जल्दी अंत शुरू हो जाता है
इसलिए
रिश्तों को अच्छी उम्र गर देनी हो
तो धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए
छोटे-छोटे कदमों से
उसने यह भी कहा कि
शुरुआत को लम्बा रखना
उस स्थिति में भी अच्छा होता है
जब उससे बाहर आना होता है
अगर हम तेज चल गए होते हैं
तो हमें वापसी में ज्यादा दूरी तय करनी होती है
और हमारे टखनों में ज्यादा दर्द होता है
मैंने कहा-
कि कुछ लोगों के पास
इतना वक्त बचा नहीं होता कि
शुरुआत को लम्बा रखते हुए
रिश्ते को उसके मोकाम तक पहुंचा सके
उसने कहा कि
रिश्ते की उम्र जिदगी की उम्र से बड़ी होनी चाहिए
और रिश्ता जिंदगी के बाद भी
मोकाम तक पहुँच सकता है.
मुझे उसका ये सब कहना अच्छा लगा था
तब भी, जब मेरे पास वक्त नहीं था
Monday, April 20, 2009
Saturday, April 18, 2009
सोंचता हूँ !
सोंचता हूँ
जिद करुँ तुमसे कि
पास बैठो मेरे, बिल्कुल करीब
जहाँ से सुन सको मेरी
आती-जाती साँसों में
तुम्हारे लिए जागी हुई कशिश
और अगर ठीक समझो
रख सको अपनी नर्म साँस उस पर
थोडी देर के लिए भी
सोंचता हूँ
कभी वो मौका मिले कि
दिन भर कि भागदौड़ से जन्मी
तुम्हारे पैरों कि थकान में
अपनी लोडियों से
मुठ्ठी भर नींद भर दूँ
और
तुम्हारी अलसाई हुई सुबह को
अपनी गोद में लेकर सहला दूँ
ताकि वे तरों ताजा हो जाएँ
सोंचता हूँ
कभी पूडी तलने के लिए
किचेन में खड़ी तुम
आटा गूँथ रही हो जब
और तुम्हारे दोनों हाथ
उस आटे में उलझी हों
तब मैं पीछे से आकर
तुम्हें पकड़ लूँ और तुम्हारे गर्दन पर
एक भारी और गीला सा चुम्बन रख दूँ
और भी कई चीजें हैं जो मैं
सोंचता हूँ वक्त-वेवक्त
पर कमाल इस बात में है कि
जब भी मैं सोंचता रहता हूँ यह सब
तब चीजें होती भी रहती हैं साथ-साथ
Thursday, April 16, 2009
कि तुम हो बहुत खुबसूरत !
कि तुम हो बहुत खुबसूरत
और दिलकश भी
मैंने आवाज में कभी नही कहा उसको
हालांकि
दुहराया होगा मन में लाखों बार
कि तुम्हारे मुस्कुराने से
हंसने लग जाती है मेरी दुनिया
और दिल
गुलमोहर के लाल टेस फूलों से भर जाता है
ऐसा भी मैंने कभी नही कहा आवाज में उसको
पर ये कोई बनावटी बात भी नही है
मैं सोंचता था
एक दिन वो समझ लेगी सारा हीं
मेरा कहा-अनकहा
और अपने कोमल रिश्ते की डोर से
मेरा सारा बिखराव समेट कर बाँध लेगी
मैं इंतेज़ार करता रहा
कि कब वो मेरे किताब खोल कर
उसकी नज्में
पढ़े
पर मैं यूँ हीं रह गया बिना पढ़ा
दरअसल,
जिंदगी को मायने देने के लिए
जो भी चीजे जरूरी थी
उसे इसी तरह मैं टालता गया
और मैं बेमायने हीं रह गया
आख़िर तक
और दिलकश भी
मैंने आवाज में कभी नही कहा उसको
हालांकि
दुहराया होगा मन में लाखों बार
कि तुम्हारे मुस्कुराने से
हंसने लग जाती है मेरी दुनिया
और दिल
गुलमोहर के लाल टेस फूलों से भर जाता है
ऐसा भी मैंने कभी नही कहा आवाज में उसको
पर ये कोई बनावटी बात भी नही है
मैं सोंचता था
एक दिन वो समझ लेगी सारा हीं
मेरा कहा-अनकहा
और अपने कोमल रिश्ते की डोर से
मेरा सारा बिखराव समेट कर बाँध लेगी
मैं इंतेज़ार करता रहा
कि कब वो मेरे किताब खोल कर
उसकी नज्में
पढ़े
पर मैं यूँ हीं रह गया बिना पढ़ा
दरअसल,
जिंदगी को मायने देने के लिए
जो भी चीजे जरूरी थी
उसे इसी तरह मैं टालता गया
और मैं बेमायने हीं रह गया
आख़िर तक
Saturday, April 11, 2009
एक सबसे ख़ूबसूरत घटना का एक और जन्म
वो बालकनी में अपने लंबे बालों के साथ है
एक ठीक निश्चित वक्त पे आ जाती है वो कंघा लेकर
वो नीचे जाता हुआ होता है
लगभग उसी वक्त पर
एक दूसरे को देखकर वे दोनों अपने चेहरे सँभालते हैं
वह उसके आंखों में गिरती अपनी आंखों को तीव्रता से रोक लेती है
वह अपनी नजरों को तीव्रता से ऊपर ले जा कर
उसके वजूद में गिरा देता है
और लौटा लेता है
धीरे-धीरे वो अपनी आंखों को ढील देने लगती है
वो भी एक जगह खोज कर वहां होने लगता है
जहाँ से बालकनी उसके लंबे बालों के साथ नजर आती है
कई शामें बीत चुकी हैं
अब वे एक दुसरे को वाद्य यंत्रों पे सुनते हैं
और टेलीविजन पे देखते हैं
अपने साथ नाचते और गाते हुए
प्रकृति की एक सबसे ख़ूबसूरत घटना का
एक और जन्म हो चुका है
एक ठीक निश्चित वक्त पे आ जाती है वो कंघा लेकर
वो नीचे जाता हुआ होता है
लगभग उसी वक्त पर
एक दूसरे को देखकर वे दोनों अपने चेहरे सँभालते हैं
वह उसके आंखों में गिरती अपनी आंखों को तीव्रता से रोक लेती है
वह अपनी नजरों को तीव्रता से ऊपर ले जा कर
उसके वजूद में गिरा देता है
और लौटा लेता है
धीरे-धीरे वो अपनी आंखों को ढील देने लगती है
वो भी एक जगह खोज कर वहां होने लगता है
जहाँ से बालकनी उसके लंबे बालों के साथ नजर आती है
कई शामें बीत चुकी हैं
अब वे एक दुसरे को वाद्य यंत्रों पे सुनते हैं
और टेलीविजन पे देखते हैं
अपने साथ नाचते और गाते हुए
प्रकृति की एक सबसे ख़ूबसूरत घटना का
एक और जन्म हो चुका है
Wednesday, April 8, 2009
मुझे कई बार पहले भी हुआ है प्यार !
मेरे लिए मुश्किल है
तुम्हारी आंखों में देखना
इसलिए नही कि
मैंने कोई अपराध किया है
बल्कि इसलिए
कि मेरी आंखों में उभरा हुआ होता है प्यार
जब मैं देखता हूँ तुम्हारी तरफ़
और मैं उसे तुम्हारी जानकारी में
नही लाना चाहता
मैं नही बात करना चाहता
क्यूंकि डरता हूँ
कहीं जबान लड़खड़ा न जाए
और इजहार न हो जाए
मुझे कई बार पहले भी हुआ है प्यार
इसलिए मैं जान सकता हूँ
कि ये प्यार हीं है
और कुछ नही इसके अलावा
और ऐसा भी नही है कि
ये जरा सा भी कम है उस प्यार से
जो मुझे पहली बार हुआ था
और अनुभव से जानता हूँ
कि इसका कोई इलाज नही है
पर फिर भी नही लाना चाहता हूँ
तुम्हारी जानकारी में क्यूँ कि
रिश्ते को अंजाम तक नही ले जा पाने की स्थिति में
जो जख्म जनमता है,
उसे झेलने की और
हिम्मत नही है मुझमे।
तुम्हारी आंखों में देखना
इसलिए नही कि
मैंने कोई अपराध किया है
बल्कि इसलिए
कि मेरी आंखों में उभरा हुआ होता है प्यार
जब मैं देखता हूँ तुम्हारी तरफ़
और मैं उसे तुम्हारी जानकारी में
नही लाना चाहता
मैं नही बात करना चाहता
क्यूंकि डरता हूँ
कहीं जबान लड़खड़ा न जाए
और इजहार न हो जाए
मुझे कई बार पहले भी हुआ है प्यार
इसलिए मैं जान सकता हूँ
कि ये प्यार हीं है
और कुछ नही इसके अलावा
और ऐसा भी नही है कि
ये जरा सा भी कम है उस प्यार से
जो मुझे पहली बार हुआ था
और अनुभव से जानता हूँ
कि इसका कोई इलाज नही है
पर फिर भी नही लाना चाहता हूँ
तुम्हारी जानकारी में क्यूँ कि
रिश्ते को अंजाम तक नही ले जा पाने की स्थिति में
जो जख्म जनमता है,
उसे झेलने की और
हिम्मत नही है मुझमे।
Tuesday, April 7, 2009
कल रात वो घर आई थी !
वो घर आई थी
कल रात
इतने सालों बाद
हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक
वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा
घर जमा लो
और इन मरते लम्हों का अब क्या करना-
उसने कहा
थोडी देर चुप रह कर मैंने कहा -
इन्हे मरता हुआ क्यूँ कह रही हो
तुम जब तक आगे नही बढोगे
मैं भी नही बढ़ पाउंगी
और हम नही बढे
तो हमारे वे लम्हे ...
-वो बीच में हीं रूक गई !
मैंने कहा- ठीक है
इस बार शायद वो कभी न आने के लिए चली गई है .
कल रात
इतने सालों बाद
हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक
वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा
घर जमा लो
और इन मरते लम्हों का अब क्या करना-
उसने कहा
थोडी देर चुप रह कर मैंने कहा -
इन्हे मरता हुआ क्यूँ कह रही हो
तुम जब तक आगे नही बढोगे
मैं भी नही बढ़ पाउंगी
और हम नही बढे
तो हमारे वे लम्हे ...
-वो बीच में हीं रूक गई !
मैंने कहा- ठीक है
इस बार शायद वो कभी न आने के लिए चली गई है .
Sunday, April 5, 2009
जाने कितने साल और!
तीन साल हुए
जब वो चली गई थी
आज भी नींद में
मेरे हाथ उसको बिस्तर पे खोजते हैं
और टटोलते हुए
उसे न पाकर
जाग जाते हैं
अपने सपनो में
कई बार पा भी लेता हूँ उसे
पर मेरे जागने से पहले
हर बार
वो उठ कर चली गई होती है
उसके पास वो बाहें थी
जो मुझे घेर लेती थीं सोते वक्त
और स्पर्श
जिसे वो मेरी उँगलियों में फंसा देती थी
मेरे उदास क्षणों में
मेरी यात्राओं में
अब उदासी उपजती है जब भी
उन उँगलियों की अनुपस्थिति मुझे
और कर देती है उदास
और रातों को मैं बार बार गिरता हूं
उसके घेरे के बिना
मृत्यु में
और वहां से ख़ुद हीं उठ कर आना पड़ता है मुझे
अभी तो सिर्फ़ तीन साल हीं बीते हैं
जाने कितने साल और
मुझे यूँ हीं गिरते रहना पड़ेगा मृत्यु में
और जीते रहना पड़ेगा
उजाड़ और उदासी के साथ.
जब वो चली गई थी
आज भी नींद में
मेरे हाथ उसको बिस्तर पे खोजते हैं
और टटोलते हुए
उसे न पाकर
जाग जाते हैं
अपने सपनो में
कई बार पा भी लेता हूँ उसे
पर मेरे जागने से पहले
हर बार
वो उठ कर चली गई होती है
उसके पास वो बाहें थी
जो मुझे घेर लेती थीं सोते वक्त
और स्पर्श
जिसे वो मेरी उँगलियों में फंसा देती थी
मेरे उदास क्षणों में
मेरी यात्राओं में
अब उदासी उपजती है जब भी
उन उँगलियों की अनुपस्थिति मुझे
और कर देती है उदास
और रातों को मैं बार बार गिरता हूं
उसके घेरे के बिना
मृत्यु में
और वहां से ख़ुद हीं उठ कर आना पड़ता है मुझे
अभी तो सिर्फ़ तीन साल हीं बीते हैं
जाने कितने साल और
मुझे यूँ हीं गिरते रहना पड़ेगा मृत्यु में
और जीते रहना पड़ेगा
उजाड़ और उदासी के साथ.
Saturday, April 4, 2009
थोडी देर और !
कोई लब्ज नही,
कोई तरीका नही है मेरे पास
जिसके इस्तेमाल से
लिखी जा सके
मेरे भीतर उठ रहीं लपटें
बदन पे
जगह-जगह उगते
चेचक के जैसे फफोले
घड़ी -घड़ी फटता हुआ एक बम
और छिन्न-भिन्न होता हुआ कलेजा
किस तरीके से लिखा जा सकता है भला
मैं जानता हूँ
आपके लिए भी
मुश्किल होगा बता पाना
अगर मैं पूछूँगा
ये कमजोर लफ्ज
कहाँ तक छू भी पायेंगे
मेरे अन्दर के विस्फोटों को
उन लपटों को
इसका अंदाजा आप सब
आप सब लिखने वाले लोग
जरूर लगा पायेंगे
जो शब्दों की कमजोरी जानते हैं
पर फ़िर भी गर
मैं लेता हूँ
इन कमजोर शब्दों का सहारा
और कहता हूँ अपनी लपटें
ये जानते हुए भी कि कह न सकूंगा,
तो सिर्फ़ इस उम्मीद में
कि शायद ये कम कर सकें
मेरी लपटें,
मेरे विस्फोटों को लेश-मात्र भी
और मैं सह सकूं
उन लपटों
उन फफोलों को
थोडी देर और !
कोई तरीका नही है मेरे पास
जिसके इस्तेमाल से
लिखी जा सके
मेरे भीतर उठ रहीं लपटें
बदन पे
जगह-जगह उगते
चेचक के जैसे फफोले
घड़ी -घड़ी फटता हुआ एक बम
और छिन्न-भिन्न होता हुआ कलेजा
किस तरीके से लिखा जा सकता है भला
मैं जानता हूँ
आपके लिए भी
मुश्किल होगा बता पाना
अगर मैं पूछूँगा
ये कमजोर लफ्ज
कहाँ तक छू भी पायेंगे
मेरे अन्दर के विस्फोटों को
उन लपटों को
इसका अंदाजा आप सब
आप सब लिखने वाले लोग
जरूर लगा पायेंगे
जो शब्दों की कमजोरी जानते हैं
पर फ़िर भी गर
मैं लेता हूँ
इन कमजोर शब्दों का सहारा
और कहता हूँ अपनी लपटें
ये जानते हुए भी कि कह न सकूंगा,
तो सिर्फ़ इस उम्मीद में
कि शायद ये कम कर सकें
मेरी लपटें,
मेरे विस्फोटों को लेश-मात्र भी
और मैं सह सकूं
उन लपटों
उन फफोलों को
थोडी देर और !
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