कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
दुःख एक सागर सा है..उसके बिना जीवन भी नहीं, पर उसका पानी खारा ही..नयी तरह की रचना..
गहराई लिये हर शब्द, बेहतरीन प्रस्तुति ।
gahari baat........anoothi soch !
क्या दर्दीला चित्रण किया है दर्द का आपने!ओम जी आजकल ’सच में’ पर आना छोड ही दिया आपने!
Umda 1 behatrin koshish dusro ka dukh batne ke naye tarike
बहुत खूब्………………गहरी बात कह दी।
ये दुख तो बस तब कम हॊजब किसी को न कोई गम होबाँट चुके हम सारी खुशियाँ इस दुख के बदले में कि कम से कम मेरे आस-पासकिसी की आँख नम न हो.............जिनको भी दुख होवे आए और ले जाएंकि मेरी खुशियाँ..कभी खतम न हो............
हाँ ! दुःख तो कभी कम नहीं होता, पर रोने के लिए किसी का कंधा मिलना भी क्या कम है????
अपने दुखों को बाँट देने से दुख कभी कम नही हो पाते और दूसरों के दुख ले लेने से वो कभी बढ़ते भी नही..दुख छातियों के पहचान नही करता..
Post a Comment
9 comments:
दुःख एक सागर सा है..
उसके बिना जीवन भी नहीं, पर उसका पानी खारा ही..
नयी तरह की रचना..
गहराई लिये हर शब्द, बेहतरीन प्रस्तुति ।
gahari baat........
anoothi soch !
क्या दर्दीला चित्रण किया है दर्द का आपने!ओम जी आजकल ’सच में’ पर आना छोड ही दिया आपने!
Umda 1 behatrin koshish dusro ka dukh batne ke naye tarike
बहुत खूब्………………गहरी बात कह दी।
ये दुख तो बस
तब कम हॊ
जब किसी को
न कोई गम हो
बाँट चुके
हम सारी खुशियाँ
इस दुख के बदले में
कि कम से कम
मेरे आस-पास
किसी की
आँख नम न हो.............
जिनको भी दुख हो
वे आए और ले जाएं
कि मेरी खुशियाँ..
कभी खतम न हो............
हाँ ! दुःख तो कभी कम नहीं होता, पर रोने के लिए किसी का कंधा मिलना भी क्या कम है????
अपने दुखों को बाँट देने से दुख कभी कम नही हो पाते और दूसरों के दुख ले लेने से वो कभी बढ़ते भी नही..दुख छातियों के पहचान नही करता..
Post a Comment