वे टूटें
भूकंप के मकानों की तरह
और फटें
बादलों की तरह
हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर
देखें उनका टूटना और फटना
लिखे उनके दुख और खुश होवें
टूट पड़ें सड़क पे
लाल बत्ती के हरी होते हीं
और बाजू में
बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते
साइकिल वाले की साँसों का
उथल-पुथल देखते हुए
पार कर जाएँ सफ़र
रात की तेज बारिश में
बह गयी हों सारी यादें
तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ
खुद से बातें करना
और समय पे पहुँच जाएँ दफ्तर
दाल सौ रुपये किलो जाए
तो उसके साथ हम बेंच दे
अपनी मासूमियत
वो जलाएं हमें
और हम खींचें कश
मनहूस वक्त के छल्ले हर तरफ घूमते हों
अब और बंजर होने की जगह नहीं हो
और हमारा क्या
हमारे दिमागों में पतझड़ का मौसम हो
और वहां पहुँचने वाली नसें सूखी.
____
Friday, August 20, 2010
Saturday, August 14, 2010
कवितायेँ बचाती है हरीतिमा
हर नयी कविता
जगह बनाती है
दूसरी नयी कविता के लिए
प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा
***
जरूरी होती हैं कवितायेँ
कवितायेँ न हो
तो हो सकता है मैं भी
किसी कटघरे में होऊं
और मुझ पर कोई मुकदमा हो
जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से
***
जगह बनाती है
दूसरी नयी कविता के लिए
प्रकृति के हर जीव की तरह
कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज
स्वयं में हीं
और लगातार बचाती हैं हरीतिमा
***
जरूरी होती हैं कवितायेँ
कवितायेँ न हो
तो हो सकता है मैं भी
किसी कटघरे में होऊं
और मुझ पर कोई मुकदमा हो
जब तक कवितायें हैं
तब तक मुझे आस है
कि कुछ और लोग भी बचते रहेंगे
कटघरे में होने से
***
Tuesday, August 10, 2010
कवि का डर टूटा नहीं है अब तक !
जाना नहीं हुआ उस तरफ
ताकने का मन नहीं हुआ बिलकुल भी
बहुत दिन हुए
देखी नहीं कोई कविता
अभी जिधर कविता का होना है
उधर पत्थर फेंकती औरतें हैं,
जीप जलाते मासूम
और देखते हीं गोली मार देने के लिए
तत्पर हथियारबंद
उसकी तरफ देखने से
कभी भी लग सकती है आँख में गोली
कविता जब खो देती है विश्वास
उसके साथ जाने में डर लगता है
और कवि का डर
टूटा नहीं है अब तक
***
ताकने का मन नहीं हुआ बिलकुल भी
बहुत दिन हुए
देखी नहीं कोई कविता
अभी जिधर कविता का होना है
उधर पत्थर फेंकती औरतें हैं,
जीप जलाते मासूम
और देखते हीं गोली मार देने के लिए
तत्पर हथियारबंद
उसकी तरफ देखने से
कभी भी लग सकती है आँख में गोली
कविता जब खो देती है विश्वास
उसके साथ जाने में डर लगता है
और कवि का डर
टूटा नहीं है अब तक
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