Tuesday, September 7, 2010

सपनो से भरी एक कविता बाकी है!

यहाँ जीते हुए
हमेशा यह याद रखना जरूरी सा लगता है
कि यहाँ से वहां
वक़्त तीन दसमलव पांच घंटे आगे चलता है
और जब तक मैं सही वक़्त तक पहुंचूं
पीछे छूट जाने का भय काबिज हो जाता है

हालांकि यहाँ भी
जागने और सोने के लिए
सुबह और रात है
पर तुम्हारी अनुपस्थिति में
वक़्त का कोई न कोई कोना
नींद की पकड़ से
बाहर छूट जाता है
और मेरी सुबह वक़्त के
उसी कोने से शुरू होती है

इच्छा होती है कि
तुम्हें एक दफा गहरी नींद में
यहाँ के वक़्त में सोता देखूं
तो शायद नींद का वो कोना पकड़ में आ जाए।

नींद के अभाव में
सपनो से भरी एक कविता अभी बाकी है

17 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

bahut khubshurat kavita om ji !

Unknown said...

waah waah om ji !

bahut khub............

अत्यन्त उत्तम कविता ..........

kshama said...

Sapnon se bhari kavita gar baaqee hai,to,Maunka ghar khali nahi ho sakta!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय ओम आर्य जी

अच्छी प्रेम कविता है
नींद के अभाव में
सपनो से भरी एक कविता अभी बाकी है …

बधाई !

शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर भाव से संजोयी है कविता ..

sonal said...

bahut sundar

डॉ .अनुराग said...

मन के किसी कोने पे सर्च लाईट सी डाली है ......अजीब बात है .सबके कोनो में एक सी चीज़े मिलती है .........इसे महज़ सुन्दर नहीं कहा जा सकता .....ये तो मेरे अप्रकाशित बयानों में एक बयान है जो किसी ओर के रजिस्टर में चढ़ा है ........
one of your best capture ......

समयचक्र said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना..... बधाई

vikram7 said...

इच्छा होती है कि
तुम्हें एक दफा गहरी नींद में
यहाँ के वक़्त में सोता देखूं
और नींद का वो कोना पकड़ में आ जाए।
vaah bahut hii sundar abhivyakti,om ji.

vandana gupta said...

भावों को बखूबी संजोया है।

संध्या आर्य said...
This comment has been removed by the author.
Parul kanani said...

bahut sundar..!

अर्चना तिवारी said...

बहुत सुंदर रचना

Meenu Khare said...

बेहतरीन...बस बेहतरीन ...

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम का अनछुआ पहलू।

संध्या आर्य said...

तितालियो के पंखो के रंग
चमन की अमानत है
जीवन ढोती है
रंग-बिरंगी

पर जब रंग
छू जाती है हाथो से
झड जाते है रंग इनके

जीवन के अमानत रंग
रात के अमानत नींद
नींद की अमानत ख्वाब
ख्वाब की अमानत कविता
और इन अमानतो पर टीकी जिन्दगी !

सागर said...

मुझे पिछली दो कविताओं से ऐसा क्यों लग रहा है जैसे यह पूरा नहीं है.,.. अधूरी सी रह रही है.. गौतम जी के ब्लॉग पर मेरी पसंद में आपकी 'सिरहाने में से आधा चाहिए' देखा ओह क्या कमाल कि कविता है... बहुत सुन्दर... फिर से पढ़ कर मज़ा आ गया... विशेषकर अंतिम २ लाइन भाई वो तो जैसे बातचीत का हिस्सा बना कर आपने उसे नया रंग दे दिया है...