Wednesday, January 5, 2011

अपना थका शरीर तुम्हें सौपने के लिए कितनी वजह काफी है

जानता हूँ
पाँव उठा कर मेज पर रख लेने से,
तान कर घुटने बजा लेने से,
कंधे झटक लेने और पीठ सिकोड़ लेने से
या उँगलियाँ मोड़ कर फोड़ लेने से
इस आनुवंशिक थकान को मिटाया नहीं जा सकेगा

पर क्या इतनी वजह काफी है
हार मान लेने के लिए
और सौंप देने के लिए तुम्हें
अपना थका हुआ शरीर ?

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18 comments:

sonal said...

बहुत कुछ घूम गया मन में इन पंक्तियों के साथ .... अनुवांशिक थकान :-)

डॉ .अनुराग said...

आपके केनवास पर रंग कितने भले होते है

स्वप्निल तिवारी said...

bahut pasand aayi aapki nazm... anuwanshik thakaan kee baat adbhut hai apne aap men.....

प्रवीण पाण्डेय said...

थकना, शरीर व मन दोनों का ही नाटक है, पलायन तो फिर भी न हो। सुन्दर कविता।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

kshama said...

Phir ek baar wahee anoothaa nayapan!

Meenu Khare said...

WAH,WAH,WAH...

Asha Lata Saxena said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति |बधाई
आशा

amit kumar srivastava said...

अंगड़ाई दिलाती पंक्तियां ।

निवेदिता श्रीवास्तव said...

गागर में सागर सी लगी .."अनुवांशिक थकान "बहुत खूब ..

Shalini kaushik said...

dimag ghoom gaya kintu aanuvanshik thakan mahsoos nahi kar paya.bhavon ko itni sunderta se pirote hain to utsah ke dhagon me piroiye.achchhi rachna.
mere blog kaushal par bhi aaiye.

shyam gupta said...

सही कहा पान्डे जी ने ,पलायन ...ना...ना...
---सुन्दर कविता है ओम जी, बधाई...परन्तु कठिन अन्योक्ति में..तात्पर्य व ुद्देश्य मुझे भी पूरी तरह समझ नहीं आया..सामान्य जन को .संबाद संप्रेषण कैसे हो....कविता के जन-जन से दूर होने का कारण कठिन /अन्योक्ति मेंकही गई/क्लिष्ट/ पान्डित्यपूर्ण कविता ही तो है....

संध्या आर्य said...

ढेहरी पर चांद बोझिल
शाम चली गयी थी
हाथ हिलाते हुये
रात मध्दम थी
आंखे प्यासी उसकी
शायद
चाँद की तपिश थी !!

Parul kanani said...

gehare manobhav...!

रश्मि प्रभा... said...

om aary ji ,
main to yun hi aapki lekhni ki kayal hun ...

apni yah rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath

http://urvija.parikalpnaa.com/

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति | बधाई|

अपूर्व said...

वाकई जब शरीर का पोर-पोर एक ही लय मे कोरस दे इस थकान के सुर मे तो वजह समझ तो आती है..शायद यही है शरीर की भाषा..बॉडी लन्गुएज..जिसे शरीर ही डिकोड कर सकता है...और यह आनुवंशिक थकान?..दिमाग भी शामिल है इसमे ना...

Prakash Jain said...

thakavat ko kavitamay bana dala aapne to...:-) bahut badhiya