अंतर्नाद
कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
Showing posts with label
उल्का
.
Show all posts
Showing posts with label
उल्का
.
Show all posts
Sunday, March 21, 2010
उल्के
आजकल
ये तारा
टिमटिमाता रहता है अकेला
अभी कुछ रोज पहले तक
देखता था इसे
चाँद के बहुत क़रीब
उसकी
मुलायम चाँदनी में नहाते हुए
डर है
चाँद जब तक लौट कर आए
ये तारा
कहीं उल्के में न बदल जाए
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)