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Friday, May 22, 2009

जो बह गये पानी

मिल बैठ कर
बात कर लेते हैं
जब मन, भरा बादल हो जाता है
साथ में बरसना भी हो जाता है कभीकभार
जब पुरवइया के झोंके विरहा गाते हैं

किसी पुराने समय के हिसाब में
खुशियों को चुनौती दे दी गई
मार दी गई चुन चुन कर
उनकी किलकारियाँ
खौफ की डुगडुगी
डंके की चोट पर बजायी गयी
लहू बहाये गये

घर के दीवारो से लग कर सिसकियाँ बोलती रहीं
पर कहीं कोई कान नही हुआ मौजूद

धरती के सीने पे दर्दो के चकत्ते बडे होते गये
चक्कर खा कर
गिरते रहे हौसले और विश्वास के वजूद
और एक समय तक बंधे हुए सारे बांध टूट गये

जो बह गये पानी
उन्हीं की याद में वे
मिल बैठ कर बात कर लेते हैं
और बरस लेते हैं
जब मन भरा बादल हो जाता है।

डरी हुई कविता

एक लम्बा अरसा हुआ
एक हल्की सी उम्मीद और
एकाध मुस्कराहट के साथ
वक़्त फांकते हुए

धूल चटाने के हौसले खुद मिट्टी होने को हैं

आवाज उठाने वाले सिर महज
सिर हिलाने वाले न बन जाये
ये डर है

हाथों में कसी मुठ्ठियों की जगह
प्रार्थना लेने लगी है

बाजुओ में वो पहले से पंजे नही रहे

दिल में ये डर धीरे धीरे बैठ रहा है
कि एक दिन बदल जाऊँगा मैं भी
जैसे बदल जाता है एक आदमी
दुनिया के दबाब में
और दुनिया जस की तस बनी रहती है
चलती रहती है
ताकत, अन्याय और शोषण के पहियों पर



Thursday, May 14, 2009

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

किसी दूसरे सफ़र पे
निकल जाना चाहती है आत्मा
मगर द्वंद में जकड़ी देह रोक लेती है

एक तरफ
जीवेशना और पेट की आड़ ले कर
पाप अपनी ईंटें जोड़ता है अनवरत
और दूसरी तरफ
एक भीड़ भरे चौराहे पे
चेतना अपने देह्गुहों में
मुक्ति के सपने समेटे खड़ी है

एक सवाल है जो अक्सर
चकरघन्नि सा घुमाता हुआ आता है
और हर बार पहले से तगडी चोट करता है

ख़ुशी की चौडाई
दुःख के गोलाई के न्यूनतम अंश से भी
कम पड़ती है अक्सर

दर्द इतना है
कि मन बार-बार अपनी साँसे बंद करता है

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

Wednesday, May 13, 2009

फिर मिल जाता है आसमान

फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है

कल रात कुछ ऐसा ही हुआ
थका सा, एक शाख पे
वो बैठा था
जब छू गयी थी कोइ संजीवनी हवा
परो पे ताजे कुछ जोश उभर आए थे
और वो उड चला था
और देखा कि बेजान परो पे
फिर से वही उडान लौट आयी थी

उसके सामने
अब फिर से एक पूरा आसमान है
उस संजीवनी हवा में तेरा स्वर था प्रिये