Thursday, May 14, 2009

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

किसी दूसरे सफ़र पे
निकल जाना चाहती है आत्मा
मगर द्वंद में जकड़ी देह रोक लेती है

एक तरफ
जीवेशना और पेट की आड़ ले कर
पाप अपनी ईंटें जोड़ता है अनवरत
और दूसरी तरफ
एक भीड़ भरे चौराहे पे
चेतना अपने देह्गुहों में
मुक्ति के सपने समेटे खड़ी है

एक सवाल है जो अक्सर
चकरघन्नि सा घुमाता हुआ आता है
और हर बार पहले से तगडी चोट करता है

ख़ुशी की चौडाई
दुःख के गोलाई के न्यूनतम अंश से भी
कम पड़ती है अक्सर

दर्द इतना है
कि मन बार-बार अपनी साँसे बंद करता है

प्राणवायु में निरंतर उठापटक है

3 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen abhivyakti. badhai.

संध्या आर्य said...

कुछ लोग ऐसे परिस्थिति मे होते है कि उन्हे आपनी जिन्दगी बोझ सी होती है,परिस्थितियाँ अपने वश मे नही होती है तो ऐसी स्थिति मे ही ......

किसी दूसरे सफ़र पे
निकल जाना चाहती है आत्मा

दर्द इतना है
कि मन बार-बार अपनी साँसे बंद करता है

मुझे ऐसा लगता है मन उन परिस्थिति मे साँस लेना छोड देती है जब दर्द हद से गुजर जाता है तब कही आदमी के अन्दर की भावनाये और ख्वाहिशे दोनो ही मर जाती है.

vandana gupta said...

bahut badhiya abhivyakti..........ye uthapatak to lagi hi rahti hai jab tak santosh na aa jaye.

kabhi samay mile to hamare blog par bhi aa jaya kijiye.