Monday, May 4, 2009

दिल को कोई काम नही है

कहीं कोई मुककमल मोकां नही है
जहाँ में कहीं भी चैन-ओ-आराम नही है.

तुमने मसला उठाया है तो कह देता हूँ
हम आशिकों से ज़्यादा कोई गुलफाम नही है.

जिस साहिल के बदन पे समंदर अंगराईयाँ लेता है
उस साहिल की भी कोई खुशनुमा शाम नही है

आज फिर उनके जानिब से ना कोई पैगाम आया
आज फिर दिल को कोई काम नही है.

जब तक चाहोगे बहेंगे तेरे समंदर पे
इस तिनके का और कोई दरिया-ए-जाम नही है.

एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है.

6 comments:

abhivyakti said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है
बहुत अच्छी रचना मन तक महसूस कर सकी
गार्गी

डिम्पल मल्होत्रा said...

एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है. ...boht khub....

संध्या आर्य said...

बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति !

नीरज गोस्वामी said...

ओम जी बहुत अच्छा प्रयास है...लिखते रहिये....
नीरज

MANVINDER BHIMBER said...

आज फिर उनके जानिब से ना कोई पैगाम आया
आज फिर दिल को कोई काम नही है.

जब तक चाहोगे बहेंगे तेरे समंदर पे
इस तिनके का और कोई दरिया-ए-जाम नही है.
बहुत अच्छी रचना

Yogesh Verma Swapn said...

एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है.


sahi jaa rahe ho omji, bahut achchi lagi ye panktiyan.