कश में नहीं आयी
लबो पे हरकत करती रही
पर कश में नहीं आयी
हजार बार जलायी
पर तलब जली नही
धुएँ बनते रहे हालाँकि
रात कैक्टस के सिरहाने जागती रही
आँखों में नींद चुभती रही
यूँ ही पड़े पड़े थकता रहा समय
कमरा धुएँ सा ही रहा
दीवारें सलेती होती रहीं
बहूत देर इंतज़ार किया पर
कोई नही आया
न सुबह ना ही नींद
4 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति है...
रात कैक्टस के सिरहाने जागती रही
आँखों में नींद चुभती रही
यूँ ही पड़े पड़े थकता रहा समय
लाज़वाब ....बेमिसाल ...अद्भुत.....
sunder abhivyakti .
रात कैक्टस के सिरहाने जागती रही आँखों में नींद चुभती रही यूँ ही पड़े पड़े थकता रहा समय......
.....भाव और शब्दो का अनोखा चित्रण .....बहुत खुब .....
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