गर्मियों के मौसम आ गए,
आँगन में
देर तक सीधी तेज धूप गिरती है
नमी के कतरे
एक-एक कर उडे जा रहे हैं
और जल्द हीं खत्म हो जाने को हैं
आँगन की मिटटी
और रेत के बीच के सारे फर्क
लू के थपेडे बहा ले गए हैं
वो भी अपना सारा बादल समेट कर
आसमान के दूसरे कोने में चली गई है
पर आँगन में, उगाया था
जो पौधा प्यार का
अभी भी सूखता नही
जाने कहाँ से लेता है नमी
और कैसे बचाता है लू के थपेडों से ख़ुद को
सूखे रेतीले मौसमो के थपेडो में
टिके रहने के नजरिये से
कैक्टस से बढ़ कर है प्यार!
12 comments:
आँगन की मिटटी
और रेत के बीच के सारे फर्क
लू के थपेडे बहा ले गए हैं
behad khoobsurat
sach kaha .........pyar to pyar hi hota hai.......sabse badhkar.
pyar har mousam me zinda rahta hai...zinda rahne ka sleeka kactus se bad ke or kon sikha sakta hai...koee mousam ho khila rahta hai...
waah waah
omji, bahut bahut umda rachnaon ki liye aapko
HARDIK BADHAI
यह कविता लगता है प्यार के साकारात्मक और नाकारात्मक दोनो ही पक्छ को दिखाती हुई प्रतित होती है ..............बेहद भावपूर्ण रचना.........यही तो आपकी लेखनी की विशेशता है ..............कुछ लोगों की जिन्दगी ऐसी ही होती है.
पर आँगन में, उगाया था
जो पौधा प्यार का
अभी भी सूखता नही
जाने कहाँ से लेता है नमी
और कैसे बचाता है लू के थपेडों से ख़ुद को
wah om ji , kya abhivyakti hai. umda! badhai.
सुंदर अभिव्यक्ति ..
सब लोगों का तहे दिल से शुक्रिया. आप सब की प्रतिक्रिया लिखने का हौसला बढा देती है.
... दमदार रचना ।
क्या खूब लिखा है आपने...भाई वाह...शशक्त रचना...
नीरज
कैक्टस की तरह कुछ इंसान भी खड़े रहते हैं ..................प्यार भी इसी तरह से हरा भरा रहे तो क्या बात है.........
आपकी रचना बेहद लाजवाब है ......... ताजा
Post a Comment