रात का काफी बडा हिस्सा
नूर की आगोश में जागता रहा
समंदर साहिल पे आकर
चहलकदमी करता रहा
ख्वाब बिजली के खंभों के नीचे
बैठे ऊंघते रहे
हर तरफ से वक़्त फिसल कर
गिरती रही तन्हाई के अंधे कुँए में
मौन अपने हद तक चीख कर
बेअवाज हो गयी आखिरकार
नींद नहीं आई कल रात भी
कल रात तुमने फिर परेशां किया
बहुत तकलीफ दी तुमने कल
तुम्हारी हूक
कल रात फिर
फंस गयी थी सीने में .
3 comments:
समंदर साहिल पे आकर
चहलकदमी करता रहा
ख्वाब बिजली के खंभों के नीचे
बैठे ऊंघते रहे
बहुत कमाल के शब्द और भाव...भाई वाह...
नीरज
हर तरफ से वक़्त फिसल कर
गिरती रही तन्हाई के अंधे कुँए में
मौन अपने हद तक चीख कर
बेअवाज हो गयी आखिरकार
बहुत खूब लिखा आपने
बहुत बढिया लिखा है।
हर तरफ से वक़्त फिसल कर
गिरती रही तन्हाई के अंधे कुँए में
मौन अपने हद तक चीख कर
बेअवाज हो गयी आखिरकार
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