वो घर आई थी
कल रात
इतने सालों बाद
हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक
वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा
घर जमा लो
और इन मरते लम्हों का अब क्या करना-
उसने कहा
थोडी देर चुप रह कर मैंने कहा -
इन्हे मरता हुआ क्यूँ कह रही हो
तुम जब तक आगे नही बढोगे
मैं भी नही बढ़ पाउंगी
और हम नही बढे
तो हमारे वे लम्हे ...
-वो बीच में हीं रूक गई !
मैंने कहा- ठीक है
इस बार शायद वो कभी न आने के लिए चली गई है .
7 comments:
वो घर आई थी
कल रात
इतने सालों बाद
हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक
दुष्यंत का एक शेर याद आ गया....
मैं तुझे भूलने के कोशिश में
आज कितने करीब पता हूँ......!!
kavita bahut achchi hai, kahani spasht nahin ho pa rahi hai.
हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक
वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा
इन पंक्तियो मे प्यार की पाराकाश्टा दिखती है काश एक बार फिर आपके जीवन मे आती कभी न जाने के लिये...........
बहुत बढिया ..
aap ne uski yaado ko jhadhu laga ke fainka nahi...boht sambhal ke rakha hai...magar aap na lamhe nahi sambhale...
आज फिर मौन...!
ओम जी,
ऐसा लगता है कि लम्हों में बहुत कुछ जब्त है. बहुत अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
Post a Comment