मेरे लिए मुश्किल है
तुम्हारी आंखों में देखना
इसलिए नही कि
मैंने कोई अपराध किया है
बल्कि इसलिए
कि मेरी आंखों में उभरा हुआ होता है प्यार
जब मैं देखता हूँ तुम्हारी तरफ़
और मैं उसे तुम्हारी जानकारी में
नही लाना चाहता
मैं नही बात करना चाहता
क्यूंकि डरता हूँ
कहीं जबान लड़खड़ा न जाए
और इजहार न हो जाए
मुझे कई बार पहले भी हुआ है प्यार
इसलिए मैं जान सकता हूँ
कि ये प्यार हीं है
और कुछ नही इसके अलावा
और ऐसा भी नही है कि
ये जरा सा भी कम है उस प्यार से
जो मुझे पहली बार हुआ था
और अनुभव से जानता हूँ
कि इसका कोई इलाज नही है
पर फिर भी नही लाना चाहता हूँ
तुम्हारी जानकारी में क्यूँ कि
रिश्ते को अंजाम तक नही ले जा पाने की स्थिति में
जो जख्म जनमता है,
उसे झेलने की और
हिम्मत नही है मुझमे।
12 comments:
pyar se bhari bhavnayein ....behad prabhavshali hain ji
kafi dil fek type ke namune ho
दीप्ति मिश्र की पँक्तियाँ हैं कि-
कब कहा मैंने वो मिल जाएँ मुझको, मैं उसे।
गैर न हो जाए वो बस इतनी हसरत है तो है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
it is good to be in love with someone but happen again and again it might be dangerous for your happy life..........how could you define your first love .......second one.... third one......and next one.........still in love.........amazing man.......be careful..........god bless you.........
main sandhya arya ji se sanmat hun.
aapko dhyan dena hoga.
band hai mutthi lakh ki,
khuli jo pyare khak ki,
bina zahir kiye pyaar ka maza lete raho.
पर फिर भी नही लाना चाहता हूँ
तुम्हारी जानकारी में क्यूँ कि
रिश्ते को अंजाम तक नही ले जा पाने की स्थिति में
जो जख्म जनमता है,
उसे झेलने की और
हिम्मत नही है मुझमे।
wahh....! bahut khoob..! aap jab bhi likhte hai bahut samvedansheel hota hai
अच्छा है यह रंग भी प्यार का ..आपके लफ्जों में ..
मुझे कई बार पहले भी हुआ है प्यार
tmaam umar tera entjaar humne kiya .es entjaar me kis kis se pyaar humne kiya
रिश्ते को अंजाम तक नही ले जा पाने की स्थिति में
जो जख्म जनमता है,
उसे झेलने की और
हिम्मत नही है मुझमे।
सत्य को स्वीकारने और समझने की क्षमता है , अंजाम का डर भी तो बयां है ....
मैं नही बात करना चाहता
क्यूंकि डरता हूँ
कहीं जबान लड़खड़ा न जाए
और इजहार न हो जाए
तो भाया मन वहां ही लगाओ जहाँ जिम्मेदारी है, जिसके लिए डर है.................
जीवन सभी का सुधर जायेगा.
कोई गलतफहमी में नहीं रहेगा.
चन्द्र मोहन गुप्त
bahot khoob
kya andaj-e-bayan hai aapka
man-o-bhaav ko khoob shabd diye hai .
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