मैंने उसकी मदद कर दी आज
अच्छा लगा करना
मैं उसे जानता नहीं था
इसलिए और अच्छा लगा करना
बाद में जब उसने जताया आभार
और अच्छा लगा
ज्यादा अच्छा लगा
उसकी आँख में देख कर
जिसमे दिखाई पड़ी मुझे
एक कौंधी हुई विश्वास की लकीर
कि अच्छे लोग अभी भी हैं दुनिया में
उसकी आँखों में ये कौंधा हुआ विश्वास
मेरे भीतर
जरा देर के लिए
एक अच्छा आदमी पैदा कर गया
एक अच्छा आदमी
अपने अन्दर देखना अच्छा लगा
आज अनजाने में कुछ अच्छा हो गया
तो अच्छा लगा
बहुत अच्छा
19 comments:
वाह क्या बात कही है ...वाकई निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करने से और फिर उसके चेहरे पर आई मुस्कान को देख जो ख़ुशी और आत्म संतुष्टि का अनुभव होता है उसका कोई जोड़ नहीं...
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति
उसकी आँखों में ये कौंधा हुआ विश्वास
मेरे भीतर
जरा देर के लिए
एक अच्छा आदमी पैदा कर गया
एक अच्छा आदमी
अपने अन्दर देखना अच्छा लगा
सहज, सरल और निश्छल - मन की गहराई में उतरते भाव लिए बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति. ओमजी अभी तक नाम ही सुना था आज पढ़ भी लिया - आभार
ओम जी
अनायास अच्छे लगने की यह अनुभूति व्यर्थ या अकारण नही है..कितनी भी उर्वर जमीन खुद को खाक कर उगने की चाह लिये एक बीज के अभाव मे बाँझ रहती है..ऐसे ही एक अच्छे व्यक्ति से साक्षात्कार का यह बीज किसी जरूरत्मंद के हृदय मे उग कर जब उसकी आँखों मे वि्श्वास के पल्लवों और अधरों पर कृतज्ञता के पुष्पों मे प्रस्फुटित होता है..तभी यह अच्छापन दुनिया मे द्विगुणित/बहुगुणित होता जाता है..
...अच्छाई से पूरित एक भविष्य का सृष्टि-बीज है यह निष्काम परोपकार..जो निश्चय ही आप जैसे एक अच्छे व्यक्ति की कलम से ही पल्लवित हो सकता है..
आभार!!!
हाँ शायद दुनियाँ में अभी भी अच्छे लोग बचे हैं...
कभी कभी अच्छे लगते रहना चाहिए किसी किसी को
यही विश्वास बना रहना चाहिये कि शायद दुनियाँ में अभी भी अच्छे लोग बचे हैं...बहुत जरुरी है...शानदार!!
Rachna padhke hamaebhee behad achha laga..aapke andar base ek achhe nihayat achhe insaan se parichay huaa...!
अरे वाह ओम जी, बहुत खूब , सच मे जब अंजाने किसी की मदद की जाये , उसके बाद जो उसका स्नेह मिलता वह अनुभूति वास्तव में लाजवाब होती है ।
अच्छे लोग अभी भी हैं दुनिया में.!
अच्छा लगा
AAPNE ACHCHA KIYA ACHCHA LAGA, ACHCHA KAR ACHCHE KE BAARE MEN , ACHCHE KI PRERNA DETE HUYE ACHCHA LIKHA ACHCHA LAGA.
waah kya baat hai...........besakhta moonh se nikla padhte hi...........bhavvibhor kar diya.
ओम भाई,
सचमुच अच्छा लगा इस 'ज़रूरी गैर-कविता को पढ़ना !जो सिर्फ कवि में ही नहीं, पाठकों में भी आदमीयत का एक ज़र्रा तलाशती है--ये सिद्ध करने के लिए कि इंसानियत तुम में अभी बाकी है मेरे दोस्त !
ये आपके एखलाक की आवाज़ भी है और वक़्त की ज़रुरत का पैगाम भी ! एक बहुत ज़रूरी कविता !! बधाई !!
सप्रीत--आ.
क्या बात है ओम जी! आज बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आ सकी और आपकी कविता एक गिफ़्ट जैसी लगी दिल-दिमाग़ के लिए.
kya baat hai...bahut achcha...lajawaab
एक अच्छा आदमी
अपने अन्दर देखना अच्छा लगा
बहुत दिनों के बाद दिखी आपकी रचना. हमेशा की तरह सुन्दर.
ॐ जी मानते हैं दुनिया खराब है विश्वास उठ गया है मगर कुछ लोग भी ऐसे ही अनजाने निस्वार्थ मददगार हो जाएँ तो वाकई आँखों में भरोसा जाग जाएगा
इंसानियत पर भी भरोसा होगा
बहुत अच्छी नज़्म
अपने स्व को समेटे अच्छी कविता...
कहीं-कहीं तनिक सपाट सी हो गयी है। इसमें दोष हमारा ही है कि ओम आर्य से अब अपेक्षा इतनी बढ़ गयी है कि...
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ऐसे ही अच्छा लगता रहे आपको
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