Sunday, May 23, 2010

स्पर्श लौट आते हैं हथेली में

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आजकल न कविता है
न प्रेम है
और न प्रेम कवितायें

सिर्फ भेदती हुई एक खामोशी है
जो शाम के
धुंधले प्रकाश के मर जाने के बाद भी
चिलचिलाती रहती है
और एक कई रातों से नहीं सोया एकांत है
जिसमें तुम्हें कहीं न पाकर
स्पर्श लौट आते हैं हथेली में
और बिस्तर पे देर तक आवारागर्दी करते हैं

सांस में इस तरह सन्नाटा है
जैसे आवाज और जीवन दोनों हीं
मृत्यु के नोंक पे ठहरे हों

एक हफ्ते से
अखबार में रोज तस्वीर के साथ
मेरे गुम होने की सूचना छपती है
और सुबह जब मैं दफ्तर के लिए ट्रेन पकड़ता हूँ
तो लोग कहते हैं
मैं क्यूँ कुरते पाजामे में घर से निकल आया था
और घर नहीं लौटता

मैं चुप रहता हूँ
और मन हीं मन उनको बताता हूँ कि
प्रेम बिना सब मृत्यु है
और फिर वे सब

सहमति में सिर हिलाते हैं

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16 comments:

दिलीप said...

sahi hai...prem bina sab mrityu hai...bahut sundar abhivyakti..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सच है. बहुत सच्ची कविता.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया ओम भाई..बेहतरीन भाव!

रश्मि प्रभा... said...

प्रेम बिना सब मृत्यु ... सच है

sonal said...

प्रेम नाम है खुद को खोकर खुदा को पाने का ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

डिम्पल मल्होत्रा said...

किसी गुमशुदा चीज़ या व्यक्ति को तो खोजा जा सकता है पर खुद ही खो जाये तो कौन ढूंढे खुद को और कहाँ .पर हम अक्सर खो जाते है ख्यालो में या फिर अपने में ही गुम रहते है और हमे खुद के खोने की सूचना भी नहीं मिलती.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरती से एहसासों को लिखा है...

Razi Shahab said...

nice poem

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया ओम भाई ...

श्रद्धा जैन said...

prem bina sab mrtyu hai
atoot, akatay satay ......

kahne ka andaaz bahut pasand aaya

शरद कोकास said...

प्रेम अपने आप मे एक कविता होता है ।

संध्या आर्य said...

टुटे वक्त की खामोशी
रिसती होंगी आंखो से जब
बस यूँ ही लौट आते होंगे
स्पर्श हथेलियो मे ......

अपूर्व said...

आपको पढ़ना अक्सर किसी ज्वार-भाटे के बीच से रस्ता तलाशने जैसा होता है..एक लहर आती है और हमें उस मुकाम पर पटक देती है..जहाँ से हमने सफ़र शुरू किया था..और फिर जिंदगी हमारी तलाश मे आवाजे देती हुई और दूर निकल जाती है..हम खुद की नजरों मे अपनी ही गुमशुदगी के फ़टे इश्तिहार से उड़ते रहते हैं..दर-बदर!!

ओम आर्य said...

Thanks all.

संजय भास्‍कर said...

kahne ka andaaz bahut pasand aaya

Amit Kumar Sendane said...

wakai kaabile tareef hai...........