Wednesday, September 29, 2010

और ज्यादा समय तुम्हारे पास


साँसें और ज्यादा तुम्हारे फेफड़ों में
रक्त से और लाल
धमनियां तुम्हारी

आग और पानी बराबर-बराबर
अकम्पित जीवन
और पाँव रखने से पहले
रौशनी गिरे
राह पर

मिटटी, बारिशें और खुश्बुएं
रहें सदा अंकुरित
तुम्हारे भीतर
और एक बड़ा कद

और ज्यादा समय हो
इस जन्म दिन के बाद
तुम्हारे पास.

Sunday, September 19, 2010

रोने के लिए हमेशा बची रहे जगह

लोग झिझके नहीं गले लगने में
और गले लगना इसलिए हो कि रोया जा सके

कंधें बचे रहें
रो कर थके हुओं के सोने के लिए

हँसना एक फालतू सामान हो
और हर इतवार हम निकाल दें इसे रद्दी में
ताकि रोने के लिए हमेशा बची रहे जगह

कवितायें तभी हों
जब भर जाएँ उनमें दुःख पूरी तरह
और कहानियों में भी
रुला देने की हद तक हो अवसाद

किसी भी तरह
बचा ली जाए रोने की परंपरा
ताकि जब पता चले कि
तुम्हें प्यार में इस्तेमाल किया जा चूका है
तो तुम रो सको,
पढ़ सको कवितायें
और कहानियों का सहारा हो.


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Monday, September 13, 2010

हम चाहते हैं कि समंदर हो जाएँ !

हम पिघल गए थे
पर इतना नहीं कि समंदर हो सकें

हम चाहते थे कि समंदर हो जाएँ
और खोदते जाते थे
गहरा करते जाते थे अपना सीना
पर कवितायें तब भी
रह जा रही थीं अधूरी

हमारे चारो तरफ अभी भी बर्फ थी
जिन्हें पिघलना था
ताकि कवितायें आर-पार जा सकें और
हमें अभी भी सीखना था
नौ महीने पेट में रखने का सब्र
और सब्र की असुविधा भी
ताकि कवितायेँ पूरी जन्में

दरअसल
हमें अपनी बूंद का बाँध
बार-बार तोडना था
ताकि हम भी हो सकें समंदर
और हमारे किनारे बस सकें दुखों के नगर...

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Tuesday, September 7, 2010

सपनो से भरी एक कविता बाकी है!

यहाँ जीते हुए
हमेशा यह याद रखना जरूरी सा लगता है
कि यहाँ से वहां
वक़्त तीन दसमलव पांच घंटे आगे चलता है
और जब तक मैं सही वक़्त तक पहुंचूं
पीछे छूट जाने का भय काबिज हो जाता है

हालांकि यहाँ भी
जागने और सोने के लिए
सुबह और रात है
पर तुम्हारी अनुपस्थिति में
वक़्त का कोई न कोई कोना
नींद की पकड़ से
बाहर छूट जाता है
और मेरी सुबह वक़्त के
उसी कोने से शुरू होती है

इच्छा होती है कि
तुम्हें एक दफा गहरी नींद में
यहाँ के वक़्त में सोता देखूं
तो शायद नींद का वो कोना पकड़ में आ जाए।

नींद के अभाव में
सपनो से भरी एक कविता अभी बाकी है