पतझड़ में जो पत्ते
बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं !
वे कहीं भी जाएँ
पर उन सूखे पत्तों की रूहें
उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है
किसी भी मौसम में
ये दीवारें सूखती नहीं
ये हमेशा नम बनी रहती हैं
मौसम रिश्तों की रूहों को सुखा नहीं सकते।