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दर्ज करती हैं ये
हर रात मेरे ख्वाबों पे अपना बोसा
हर रात मेरे ख्वाबों पे अपना बोसा
जिंदा करती हैं खामोशियों को
लबेन तेरी मेरे लबों पे गुलाब रखती हैं।
मैं इस पल में हूँ
और ये बीती रैना
पर ये ज़्यादा जिंदा हैं ।
तेरी ठहरी आवाज़ों पे कान रख के
अपनी कई तन्हाईयाँ काटी हैं मैंने
और सुबह सुबह उठ कर कई बार
बिस्तर की सलवटों में पाया है तुझे मैने
कहा था ना कि तुम जा नही paaogi.
3 comments:
ओम भाई क्या खूब लिखा । धन्यवाद
बेहतरीन !
वाह...बहुत भावपूर्ण लिखा है...आभार.
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