किससे मिलूं
और किससे छिप कर निकल जाऊं
कि मिलने पर
कौन मुस्कुराएगा एक सच्ची मुस्कान
किससे खुलूं
और किससे नही
कि खुलने पर
कौन नही उठाएगा
फायदा मेरे कमजोरियों का
किसे दूँ उंगली
और किसे हाथ
कि हाथ बढ़ाने पर
कौन नही चाहेगा मेरे पहुँचा पकड़ना
क्या करूँ मैं
क्या वास्ता रखने के लिए
रखूं सिर्फ़ वास्ता
और शामिल हो जाऊं
उन्ही लोगों के भीड़ में
जो संशय और सवाल दोनों
एक साथ पैदा करते हैं
या फ़िर
इसी तरह जीता रहूँ
संशय और सवाल के बीच
ख़ुद को धकेलते हुए
5 comments:
achcha q. sunder rachna.
मौन के खाली घर में छम-छम बजे
ये कविता बड़ी प्यारी है.
हर इंसान इसी दुविधा में है। सुंदर कविता।
या फ़िर
इसी तरह जीता रहूँ
संशय और सवाल के बीच
ख़ुद को धकेलते हुए
sanshaya me jina gulami karne jaisi bat lagti hai.duvidha me jinewala insan khud ke sath shayad nyaaya nahi kar pata hai.aatma, jo hamesha sacha bolti hai, use sune aap khud b khud sanshaya se mukta ho jayege.
aapme itanee aatmavishwasa hai ki
har ek sawal ka jabab de sakte hai.
prashna bahut sahi uthaya hai aapne ......har insaan isi mein uljha hai.
main sadhna ji ki baat se sahmat hun.unhone bahut sahi baat ki hai.
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