जब तुम पूछती हो - मैं कैसा हूँ
तब मैं ,
हँसते हुए छिपा लेता हूँ
उदास बीत रहे अपने बोझिल दिनों को,
आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई मेरी नौकरी को,
बचत खाते के धीरे-धीरे खाली होते जाने और
माथे पे रोज कल की लटकती हुई तलवार को ,
बाएँ हाथ में दुर्घटना के दौरान आ गए मोच को,
दोपहर की भूख को कचौरी, समोसे या पैटीज से बुझा देने को,
हथेली के पसीने
और सिगरेट की संख्या में हो गए इजाफे को
और भी इस तरह की कई सारी चीजों को
मैं हँसते हुए छिपा लेता हूँ माँ
जब तुम पूछती हो - मैं कैसा हूँ!
मैं जानता हूँ माँ
जब तुम कहती होगी
अपने बारे में कि तुम अच्छी हो
तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए
7 comments:
sunder bhavaabhivyakti.sach aisa hi hota hai.om ji kabhi mere blog par tashreef layen.
तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए
bahut badhiya .......dard ka rista isiko ko kahte hai
मैं जानता हूँ माँ
जब तुम कहती होगी
अपने बारे में कि तुम अच्छी हो
तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए
dil ko chu gaee
hmmm sach kaha...chhipa hi leti hogi vo bahut kuchh..!
samvedansheel
बिल्कुल सच ...यही तो प्यार है ... मां बेटे का एक दूसरे से ।
एक सच्ची और सामयिक कविता !!
-अमरेन्द्र
very toching...woh puchte hi rahe or humse baat hi na huee.....jab bhi milte hai to kahte hai ke kaise ho?esse aage to kabhi koee baat nahi hua karti...
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