Wednesday, March 25, 2009

दुखों को जानते हुए !

जब तुम पूछती हो - मैं कैसा हूँ
तब मैं ,
हँसते हुए छिपा लेता हूँ
उदास बीत रहे अपने बोझिल दिनों को,
आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई मेरी नौकरी को,
बचत खाते के धीरे-धीरे खाली होते जाने और
माथे पे रोज कल की लटकती हुई तलवार को ,
बाएँ हाथ में दुर्घटना के दौरान आ गए मोच को,
दोपहर की भूख को कचौरी, समोसे या पैटीज से बुझा देने को,
हथेली के पसीने
और सिगरेट की संख्या में हो गए इजाफे को
और भी इस तरह की कई सारी चीजों को
मैं हँसते हुए छिपा लेता हूँ माँ
जब तुम पूछती हो - मैं कैसा हूँ!

मैं जानता हूँ माँ
जब तुम कहती होगी
अपने बारे में कि तुम अच्छी हो
तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए


7 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

sunder bhavaabhivyakti.sach aisa hi hota hai.om ji kabhi mere blog par tashreef layen.

संध्या आर्य said...

तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए

bahut badhiya .......dard ka rista isiko ko kahte hai

MANVINDER BHIMBER said...

मैं जानता हूँ माँ
जब तुम कहती होगी
अपने बारे में कि तुम अच्छी हो
तुम भी इसी तरह
छिपा लेती होगी अपने सभी दुखों के बारे में
मेरे दुखों के बारे में जानते हुए
dil ko chu gaee

कंचन सिंह चौहान said...

hmmm sach kaha...chhipa hi leti hogi vo bahut kuchh..!

samvedansheel

संगीता पुरी said...

बिल्‍कुल सच ...यही तो प्‍यार है ... मां बेटे का एक दूसरे से ।

अमरेन्द्र: said...

एक सच्ची और सामयिक कविता !!

-अमरेन्द्र

डिम्पल मल्होत्रा said...

very toching...woh puchte hi rahe or humse baat hi na huee.....jab bhi milte hai to kahte hai ke kaise ho?esse aage to kabhi koee baat nahi hua karti...