किस तरह
किया जाए प्रेम
कि उसे लाया न जा सके
वासना की परिभाषा के अंतर्गत
किस तरह
बिठाई जाए मुस्कान होंठों पर
कि वो बनावटी के कटघरे में नही पड़ें
किस तरह
मिलाऊं हाथ
कि स्पर्श में हृदय का एहसास उतार सकूं
जैसा कि गले मिल के होता है
किस तरह
करूँ दया
कि उसमें दंभ की बू न आए
और
किस तरह
जताऊँ सहानुभूति
कि उसमें खोजी न जा सके इर्ष्या से उपजी खुशियाँ
किस तरह जिउं
इस कंटीले वक्त में
बिना रक्त बहाए
निकाल सकूं अपना समय।
4 comments:
बढ़िया ! बहुत कठिन है यह सब करना।
घुघूती बासूती
जिस तरह मीरा ने किया //जैसे ओशो मुस्काये / जैसे राम ने हाथ मिलाया / जैसे रहीम ने की / जैसे ईशा ने जताई ,/जैसे कबीर जिए
किस तरह जिउं
इस कंटीले वक्त में
बिना रक्त बहाए
निकाल सकूं अपना समय।
bahut badhiya bhavabhivyakti hai.
badhai.
main brijmohan shrivastav ji se sahmat hun, ek cheej aur jod dun.BHAGWADGEETA PADHEN.
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