Friday, March 27, 2009

वो जंजीरें....

उन परिस्थितियों,
उन दबाबों के बारे में
जिसमे
नौ महीने तक अपने गर्भ में
अपना रक्त-मांस-मज्जा बाँटते रहने के बाद
वो फेंक देती है,
बिलखता हुआ उसे
शहर के किसी सुनसान कोने में
और चली जाती है

उन जंजीरों के बारे में,
जो नौ महीने तक
कतरा-कतरा जमा हुए
दुनिया के सबसे अटूट रिश्ते की ताकत से भी
तोडी नही जा पातीं

उन कर्णभेदी तानो और
हृदयभेदी उपाहासों के बारे में
जानते हुए
बड़े होकर तुम
क्या समझ सकोगे वो पीड़ा
जो उसने अपने कलेजे से तुम्हें हटाते हुए सहा होगा
वैसा दर्द जो कर्ण को
अपना कवच-कुंडल उतारने में हुआ होगा
वो होती रही होगी बार-बार बेहोश
न जाने कितने महीनो तक
और अजीवित मौन रही होगी
कई साल तक शायद।

क्या तुम उस स्त्री को
मुक्त कर सकोगे
उस अपराध बोध से
वो जंजीरें काट कर
उन परिस्थितियों , दबाबों को छाँट कर।

7 comments:

संध्या आर्य said...

too good .......keep it up

Yogesh Verma Swapn said...

क्या तुम उस स्त्री को
मुक्त कर सकोगे
उस अपराध बोध से
वो जंजीरें काट कर
उन परिस्थितियों , दबाबों को छाँट कर।

sunder rachna.badhai.

Anonymous said...

बड़े होकर तुम
क्या समझ सकोगे वो पीड़ा
जो उसने अपने कलेजे से तुम्हें हटाते हुए सहा होगा

aisi aisi bate aap kaise soch lete ho jo aaj ke tarikh me gine huye log hi in ehasaso par shoch pate hai.


न जाने कितने महीनो तक
और अजीवित मौन रही होगी
कई साल तक शायद।

yahi to dard hai samajik duscharo se utatpanna hota hai.... ajiwit moun
us ajiwit moun ko na koie dekhana chahta hai na hi samajhana.......

मुक्त कर सकोगे
उस अपराध बोध से
वो जंजीरें काट कर
उन परिस्थितियों , दबाबों को छाँट कर।

samaj ke koun se warg se yah sawal puch rahe ho wah jo aapane indriyo ko yugo se band karke baitha hai ya kholna hi nahi chahta
....................
bahut hi kubsurati se khaswarg ke dard ko prastut kiya hai.....badhai ke patar aap nahi hai sirf ....naman ke patra hai aap.

पारुल "पुखराज" said...

वो होती रही होगी बार-बार बेहोश
न जाने कितने महीनो तक
और अजीवित मौन रही होगी
कई साल तक शायद।..kahney ko kuch hai nahi..padha gayaa baar baar bas

vandana gupta said...

aaj to aapka likhna sarthak ho gaya..........ek aurat ke us dard ko shabd dena itna aasan nhi hota jab tak ki kisi ne khud saha na ho.
prashansa ke liye shabd bhi jahan kam pad gaye hon to sochiye kahne ko kuch bachta hai kya.
bahut gahre doobkar likha hai is baar apne.
dil ko bheetar tak choo gayi .
ek hridaysparshi karunik pukar.

संध्या आर्य said...

औरत के दर्द मे गहरे ऊतर जाना , कमाल की बात है, ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही कम है हमारे समाज मे ..... जो औरतो के दर्द को जुबान दे...... ऐसे दर्दो को महसुस करने वाले लोगों की संख्या और भी कम है....आपने अपनी आवाज दी बहुत बहुत धन्यबाद

ओम आर्य said...

दिल से निकली बात अगर दिल तक पहुँच जाए तो उससे बड़ी बात एक रचनाकार के लिए कुछ नहीं. और फिर आप सबने तो सबूत भी दिया प्रतिक्रिया देकर. इसी तरह हौसला बढाते रहें, मैं तो शुक्रगुजार हूँ और रहूँगा हीं. एक गहरी प्रतिक्रिया आई है पर उन्होंने अपना नाम छिपा लिया है, आशा करता हूँ कि अगली बार वो नाम के साथ आयेंगे.