वे स्थैर्य में जकड़ी हुईं हैं !
इक अदृश्य शिकंजे में।
जानता हूँ
कि जैसे हीं कोई
नाचना शुरू करेगा
खुल जायेंगी वे गिरहें
वे सारे बंधन
जो अनचाहे बांधे हुईं हैं उनको
और वे सब झूम उठेंगी
दरअसल वे इन्तिज़ार में हैं
कि कोई सिर्फ़ शुरू भर कर दे
क्यूँ कि उन सब के भीतर एक नाच कैद है
जो बाहर आकर झूम जाना चाहता है
आइये, शुरू करें
नाचना
अपने लिए और उन सबके लिए भी
ताकि वो सोया हुआ नाच एक बार जाग उठे
खुल सकें वो गिरहें
और पोर-पोर में दबी थिड़कन
बाहर निकल आए.
7 comments:
वाह, नाच को भी जगाओगे !
घुघूती बासूती
ऐसी नाच किसी को जगाने की बात कर रही है तो वह नाच अवश्य सामने आनी चहिये .....क्योकि सोये हुये लोगों की संख्या बहुत बड़ी तदाद मे है ........ कमाल की सोच है.
खुल सकें वो गिरहें
और पोर-पोर में दबी थिड़कन
बाहर निकल आए.
एक उम्मीद ...एक आशा ....एक उत्साह ....शायद यही है जो इसे गतिमान रखते है
खुल जायेंगी वे गिरहें
वे सारे बंधन
जो अनचाहे बांधे हुईं हैं उनको
और वे सब झूम उठेंगी
बहुत कुछ कहती हुई पंक्तियाँ ...भाव गहरे ... पर कुछेक शब्दों के अर्थ दुविधा में डाल रहे हैं ... जैसे - स्थैर्य, थिड़कन...!!
भाव बड़े अच्छे हैं। सचमुच नाचने में मन की गिरह खुल जाती हैं।
bas shuruaat karne ki der hai.
wah. om ji badhia achna.
waah..jaise mere man ki kah di ho...!
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