तुम नही हो अब यहाँ
जहाँ तक पहुँचते हैं मेरे हाथ
वहां तक नही हो तुम
तुम्हारे न होने पर
तुम्हारे अभाव के कारण सृजित हुए दुःख में
मुझे रोना है
फूट-फूट कर
तुम्हारे छाती में सर घुसा कर
किसी छिरियाये हुए बच्चे की भांति
अपना हाथ-पाँव-माथा पटकते हुए
पर तुम नही हो यहाँ अब
तुम्हारी छाती भी नही
बस तुम्हारा अभाव है जो रोने के लिए
पर्याप्त दुःख सृजित करता है ।
12 comments:
मुझे रोना है
फूट-फूट कर
तुम्हारे छाती में सर घुसा कर
किसी छिरियाये हुए बच्चे की भांति
अपना हाथ-पाँव-माथा पटकते हुए
किसी के ना होने का ये दर्द , पुरे कायनात को डुबा के ही दम लेगा,इस दर्द से उपजी दर्द का कोई अन्दाजा भी नही लगा सकता,या यो कहे दर्द का दर्द से एक अनोखा रिश्ता होता हैजिन्हे सिर्फ महसुस किया जा सकता है.
तुम्हारे छाती में सर घुसा कर
किसी छिरियाये हुए बच्चे की भांति
अपना हाथ-पाँव-माथा पटकते हुए
वाह...वा...क्या कहूँ.....अद्भुत शब्द और भाव हैं आपकी इस रचना में....बधाई.
नीरज
सुन्दर अभिव्यक्ति ..इस तरह का आभास और दर्द को महसूस करने का दिल हर किसी का कभी न कभी करता है
मौन हूँ...
..........
adbhut.........lajawaab
kya hahun?
Abhaav
kuchh kahne ke liye bhi shabdo ka Abhaav...
marm ko chhune vali bhavnamai rachna..
शुक्रिया आप सब के हौसले के लिए, जो समय समय पे आप सब के प्रतिक्रियाओं द्वारा मिलता रहता है. वैसे अभी भी लग रहा है कि वो दर्द मैं बयां नहीं कर पाया, जो चाहा था.
कमाल है भाई.
निश्वचय ही बहुत अद्भुत लेखनी है...
बहुत खूबसूरत...
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