Monday, August 10, 2009

तुम यहाँ भी हो !

अभी इक ऊँची पहाड़ी पे हूँ

यहाँ दिखा है एक फूल

झुक कर देख रहा हूँ उसमें

तुम्हारा रंग

और नासपुटों में जा रही है

तुम्हारी खुशबू

35 comments:

सदा said...

यहां दिखा है एक फूल ....बहुत ही सुन्‍दर ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मगर अब तो कागज के फूलों से
काम चलाना पड़ेगा।

बहुत सुन्‍दर रचना है।
बधाई।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

adbhut rachna hai om ji...
badhayi....

रश्मि प्रभा... said...

प्रेम की गहरी अभिव्यक्ति...

दिगम्बर नासवा said...

जहां भी उनका रंग होगा........... पूरा समा महका हुवा होगा........... ओम जी ......... कुछ ही लाइनों में प्यार की गहरी अनुभूति उतार दी है आपने........... लाजवाब , मनमोहक

kshama said...

हम हमारे अपनों का अक्स कहाँ ,कहाँ नही खोजते ...

अर्चना said...

प्यारी रचना है. बधाई.

vandana gupta said...

waah.....prem ka ek rang ye bhi hai......badhayi

दर्पण साह said...

kavita ki choti behan kaviti (kshanika) bahut achi ban padi hai...//
.........एक फूल झुक कर देख रहा हूँ उसमें तुम्हारा रंग और .........

behetrein

Mithilesh dubey said...

वाह क्या बात है छोटी सी लाईन मे प्यार ही प्यार। बेहतरिन रचना भाई।

विनोद कुमार पांडेय said...

pyar ki abhivyakti to koi aap se sikhe..

gagar me sagar..kahe to satik fit hota hai..

gahara bhav..badhayi..om ji

रंजू भाटिया said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

Unknown said...

mahak yahaan tak aa gayi hai
ye kavita hamen bha gayi hai

yon hi sugandh lutate raho.......
kavita nayi nitya laate raho .....
__________badhaai !

vikram7 said...

अति सुन्दर रचना ,शुभकानायें

mehek said...

ek pyara ehsaas,bahut sunder

अर्चना तिवारी said...

लाजवाब..बहुत सुन्‍दर..

Udan Tashtari said...

अह्हा!! बहुत गहरे!! वाह!!

निर्मला कपिला said...

जिसे देखने की चाह हो वो हर जगह दिख ही जाता है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

डिम्पल मल्होत्रा said...

tumhe dekhe tumhe chahe tumhe puje.....yahi pyar hai..khoobsurat ahsaas hai apke....

गौतम राजऋषि said...

छोटी-सी किंतु अनूठी प्रेम-कविता...

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

आपकी अभिव्यक्ति को मेरा प्रणाम !

अनिल कान्त said...

अच्छा लगा

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

jhuk kar dekh raha hoon tumhara rang ......... tumhari khushbu........

waaqai mein jinhe hum chahte hain........ unke rang hamein har taraf nazar aate hain........

khushbu bas jaati hai........

prem ki bahut khoobsoorat kavita....... deep emotions poured........ n devoured....

A+++++++++++++

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

कभी कभी शब्द अहसासों में बदल जाते हैं और यह अवस्था किसी भी रचनाकार के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना होती है।

यहाँ फूल को देखने बाद का सारा ब्यौरा शब्दों को कोमल/मखमली अहसासों में बदल रहा है कविता नही रची जा रही है।

सुन्दर रचना, कम शब्दों में पूर्ण भावाभिव्यक्ती।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Arshia Ali said...

Aapkaa jawaab naheen.
{ Treasurer-T & S }

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

मौनव्रत हूँ ,
पर हो रहा है अहसास
तुमारे सामीप्य का
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Meenu Khare said...

आज की दुनिया में भी ऐसे प्यार का अस्तित्व!!!सम्वेदनाओं का स्पन्दन इसी से तो है...

M VERMA said...

रस के इस सागर और अभिव्यक्ति को क्या शब्द दूँ.

Yogesh Verma Swapn said...

speech less , gagar men sagar ke saath manhar abhivyakti. badhaai.

Chandan Kumar Jha said...

शब्द नहीं है मेरे पास.अद्भुत. आभार.

Chandan Kumar Jha said...

ब्लॉग आर्काइव लगा ले तो पुरानी रचनायें पढने मे सुविधा होगी. आभार.

ओम आर्य said...

Chandan Ji, Blog Archive laga hua tha, par thoda neeche tha, maine upar set kar diya hai. thanks for suggestion.

Om.

Prem Farukhabadi said...

bahut saral sundar bhav.badhai!

Urmi said...

बहुत सुंदर! अद्भुत रचना! बहुत अच्छा लगा!

शशि "सागर" said...

bandhu khoobsurat ehsas hain...
prem kee prakaastha hai ye..wah