इस लड़खड़ाती रात में
उसकी यादों की उंगली थामे चल रहा हूँ
उसकी यादों का वजूद
मेरे हर गिरते पल को थाम लेता है
याद में ये राहें इतनी व्यस्त नही हैं
यहाँ प्यार से चलने के लिये
जगह भी है और वक़्त भी
इन पर जरा बेफिक्र हो कर चला जा सकता है
याद में उसकी लबे हैं पंखुडी जैसी
जहाँ गुलाब महकता है
एक लहर है नजरों में
जिस पर समंदर बहकता है
इस लड़खड़ाती रात में
उसकी यादों की उंगली थामे चल रहा हूँ
और उम्मीद है कि
एक पुख्ता सुबह तक पहुँच जाऊंगा
26 comments:
सही कहा यादों में सुकून होता है
उसकी यादों का जिंदा वजूद,
मेरे हर गिरते पल को थाम लेता है,
बहुत खूब लिखा है आपने बधाई ।
आया ही था ख्याल की आँखें छलक पढीं
आंसू किसी की याद से कितने करीब थे
ये शेर याद आ गया आपकी कमाल की रचना पढ़ कर...आप बहुत ही अच्छा और दिल से लिखते हैं...बधाई...
नीरज
सबसे पहले मै ये कहूंगा कि शब्दों में आपके जादू है, जो आप बख़ूबी इश्तेमाल करते हैं,
बिलकुल सही ओम जी. यादें ईश्वर के द्वारा मनुष्य को बख़्शी गयी बहुत बडी नियामत है. सुन्दर रचना.
इस लडखडाती रात में
उसकी यादों की उँगली थामें चल रहा हूँ
वाह ....बहुत खूब .....!!
yaadon me jeene ka maza kuch aur hi hai ...par ye yaaden bhi kabhi kabhi saath chod jaati hain ..
achhi baat hai yadin skoon de rahi hai..warna to ye preshan hi kartee hai...na sahi mel mulakato ka yado ka sahi,hum se kisi tarah ka rishta bnaye rakhna..hmesha ki tarah khoobsurat kavita...
हम किसी ना किसी याद के सहारे , ता -उम्र सुकून तलाशते रहते हैं ..कभी मिलता है ,कभी और अधिक तड़प नसीब होती है ..
किसे ख़बर किस मोड़ पे क्या मिले,
हमें सब मोड़ अंधे मिले...
yaaden.....zindagi ka saar hain
एह्साओं का गहरा दरिया मिला,
डूबे तो उभरने का मौक़ा न मिला॥
आपकी हरेक अभिव्यक्ती सशक्त होती है..
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यादें बहुत राहत देती हैं । रचना का आभार ।
यादों में घुली मिली कविता...बहुत सुन्दर.
uski yadon ka wajood mere har girte pal ko thaam leta hai...
wah wah...
sundar abhivyakti..
उसकी यादों का जिंदा वजूद,
मेरे हर गिरते पल को थाम लेता है,
बहुत खूब लिखा है आपने बधाई ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
यादों को लेकर इतनी भावपूर्ण रचना का सफल निर्वहन, बधाई. मैं काफी दिनों बाद आया, क्षमा चाहूँगा. एक नई गजल पोस्ट की है, आप का हुनरमंद हौसला चाहिए.
और उम्मीद है कि एक पुख्ता
सुबह तक पहुँच जाऊंगा
... आमीन
इस लड़खड़ाती रात में
उसकी यादों की उंगली थामे चल रहा हूँ
और उम्मीद है कि
एक पुख्ता सुबह तक पहुँच जाऊंगा
बेशक! आपकी उम्मीद को दाद देती हुं।
इस लड़खड़ाती रात में
उसकी यादों की उंगली थामे चल रहा हूँ
और उम्मीद है कि
एक पुख्ता सुबह तक पहुँच जाऊंगा
बेशक! आपकी उम्मीद को दाद देती हुं।
किसी की यादों में खुद को खो कर चलना कितना सुखद होता है............... फिर किसको जरूरत है सुबह की.........
लाजवाब लिखा है ओम जी ........... बहूत ही सुकून देता है आपका लिखा
yaadon ke kafile sang sang hi chalte hain ,kabhi hum unmein doobte hain to kabhi bhatsakte hain.....bahut sundar likha.
इस लड़खड़ाती रात में
उसकी यादों की उंगली थामे चल रहा हूँ
और उम्मीद है कि
एक पुख्ता सुबह तक पहुँच जाऊंगा
बहुत खूब ॐ जी बहुत ही सुन्दर रचना
मेरी बधाई स्वीकार करे सादर
प्रवीण पथिक
इस लडखडाती रात में
उसकी यादों की उँगली थामें चल रहा हूँ
बहुत सुन्दर.
''उम्मीद है कि
एक पुख्ता सुबह तक पहुँच जाऊंगा''
उम्मीद पर तो दुनिया कायम है...
चलते रहिये...
गहरे भावों वाली कविता।आभार।
............अरे ॐ जी आपकी इस "याद" ने अपन को भाव विह्वल कर दिया.....सच..... इक मुकम्मल सुबह तक आप पहुँच ही जायेंगे....!!
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