सबके प्यार और समझ के लिए सबका शुक्रिया !! नंदनी का विशेष रूप से...मैंने पिछला पोस्ट हटा दिया है..शायद अब उसकी जरूरत नहीं है।
सभी लौटेंगे जानता हूँ...
मेरे लौटने से पूर्व मेरी कविता लौट रही है...
कुछ दुःख
एक झुण्ड में चुप चाप जा रहे थे
सड़क के किनारे उन्हें
जलता हुआ एक अलाव मिल गया है
घेर कर बैठ गए हैं सब
पर अभी भी चुप हैं
सर्दी बहुत है ना !!!
शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !!!
37 comments:
"शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !!!"...
सही ! आपकी इस पोस्ट से आश्वस्ति बनी ! आभार ।
जैसे हम बार बार अपनी जड़ों की ओर लौटते हैं ।
रचना अच्छी लगी ।
कुछ कन्फ्यूज़ हूँ आप कब लैट आये? पता ही नहीं चला । मगर खुशी हुयी रचना अच्छी है कहना प्र्याप्त नहीं होता मगर फिर भी आज इतना ही कहूँगी कि्रचना बहुत अच्छी है । बधाई ।
welcome back
ओमजी...... खूबसूरत रचना बहुत अच्छी लगी......... हम आपको बहुत मिस कर रहे थे..... अब मैं तो जानता ही हूँ कि आप बहुत बीजी थे..... गए तो आप थे नहीं...... तो वापसी कि बधाई क्या दूं? रचना बहुत अच्छी लगी......... रुकिए ...तनिक फोन उठा लीजिये..... घंटिया रहा है.....
gaye hi kab the bhaai ?
aap toh the..hain aurhain hi mrahenge..
zindaabaad !
kalam ki hasti zindaabaad !
gham ki basti zindaabad !
ओम जी ,
गर्मी से सभी शंकाएं पिघल कर बह जाएंगी और स्नेह की उस नदी में हम फ़िर डूबेंगे उतराएंगे ये विश्वास है ......नंदिनी भी आ जाएं तो खुशी दोगुनी हो जाए ॥
आपकी कविता हमेशा की तरह सुन्दर...
आपने थोड़ी सी लम्बी छुट्टी ली है,
ज़रूर कोई बहुत ही महत्वपूर्ण काम निपटा रहे होंगे,
आइये और अपना 'घर' सम्हाल लीजिये...!!
होम स्वीट होम..!!
मैं लौटूंगा !!!
इस शीर्षक में विस्मयाधिबोधक चिन्ह लगाने की क्या जरुरत थी ? लगता है जैसे कोई शक हो यहाँ... लौटना ही पड़ता आपको... बिल एक पैसा पैर सेकेण्ड हो गया तो क्या हुआ... पानी में थोड़े जाने देते. .).).)
बहुत सुन्दर रचना ।
ओम जी आपका बहुत बहुत स्वागत है अब कभी जाने की बात न करियेगा !!!
बहुत ही भावपूर्ण खूबसूरत रचना...आभार
शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !
-लौटना ही होहा..सब इन्तजार करते हैं...
भावपूर्ण!!
कुछ दुःख
एक झुण्ड में चुप चाप जा रहे थे
सड़क के किनारे उन्हें
जलता हुआ एक अलाव मिल गया है
bahut khoob....dukh ko alaav milna ....sundar abhivyakti...badhai
गर्मी का इंतजार है , और आपका भी गर्मजोशी के साथ
ये कविता हिंदी ब्लॉग जगत में नई ऊष्मा लेकर आई है.
स्वागत.
विचारों और भावनाओं के धनी ओम जी आपको सादर नमस्कार है..बढ़िया रचना..
आभार.
इतनी प्रभावी कविता के साथ लौटना गर्मी मे लस्सी और सर्दी मे तुलसी-अदरक की चाय के लौटने जैसा है..जिनकी जरूरत उनके न होने पर और ज्यादा समझ आती है..
शुक्रिया
घनीभूत दु:खों के साथ जलते अलाव का कंट्रास्ट !
..अभी गर्मी आने में देर है, क्या बात है!
कौन है यह अलाव?
आप गए ही कब थे?
बस बात की थी जाने की
रोक गईं हिचकियाँ जमाने की।
आपकी वापसी का स्वागत है ... आपकी कविता हर बार की तरह बहुत ही अच्छी लगी,
शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
jaana akhar raha tha aap ka.... na jane ka shukriya
om ji
aap to sabke dilon mein baste hain to jane ka to sawaal hi nhi uthta........sundar rachna.
ek nazar zindagi par bhi daliyega.
कोई यहाँ से जा ही कहाँ सकता है जी :) अच्छी लगी आपकी रचना
इस बार गर्मी जल्दी आए, यही कामना है।
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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
सर्द माहौल के बाद गर्मी का लौटना अच्छा लगता ही है.
ओम जी वाह...जिंदाबाद...क्या रचना रची है आपने...कमाल किया है...शब्द और भाव का अनूठा मेल और कहीं देखने को नहीं मिलता...लाजवाब
नीरज
खुशामदीद ओम भाई!
जल्दी जल्दी आया कीजिये अब अपनी कविताओं की गर्मी लेकर।
यह वापसी सुख दे गया.
शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं ....
अच्छा लगा ओम जी ये जान कर की गर्मी लौट आई है ......... स्वागत है आपका ........
कुछ दुःख
एक झुण्ड में चुप चाप जा रहे थे
dukh!!
dost ja rahe the jaise dukh nahi.
isee khayaal se main bhi gya na uski taraf,
wo mera dost hai,
meri uljhne bda dega.
कविता के लिए मन का होना आवश्यक है आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर समझ आया है.
सुरों की पेटियां, समय की अदालत, आज फिर, अभी वक्त था और कुछ दुःख इन पांच कविताओं को कितनी बार पढ़ा है, याद नहीं आता. सबका आभार व्यक्त करने को जी चाहता भी है और नहीं भी. दोस्तों आप सब हमेशा बने रहो. यूं रेगिस्तान में दरख़्त भी बहुत दूर दीखते हैं तो नर्म नाजुक लोग मुद्दतों बाद ही मेहमान हुआ करते हैं.
"शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !!!"...
Dekho subah ke paanch baj chuke hain, kal ke badal bhi poori tarah chant gaye....
..Aaj ka din garm rahega, aur aane wale din bhi.
ab sab kuch theek ho gaya. Mausam main garmi bhad gayi.
...Shayad.
Chalo Alav choro aur aage badho.
Wah.....
लौटने पर नायाब पोस्ट।
अति सुन्दर
बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार
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