सबके प्यार और समझ के लिए सबका शुक्रिया !! नंदनी का विशेष रूप से...मैंने पिछला पोस्ट हटा दिया है..शायद अब उसकी जरूरत नहीं है।
सभी लौटेंगे जानता हूँ...
मेरे लौटने से पूर्व मेरी कविता लौट रही है...
कुछ दुःख
एक झुण्ड में चुप चाप जा रहे थे
सड़क के किनारे उन्हें
जलता हुआ एक अलाव मिल गया है
घेर कर बैठ गए हैं सब
पर अभी भी चुप हैं
सर्दी बहुत है ना !!!
शायद जल्दी हीं गर्मी लौटेगी
इस कविता की तरह हीं !!!
48 comments:
मनुष्य गलतियों का पुतला है.... गलती करने के बाद अपनी भूल को समझते हुए पश्चाताप करना बहुत बड़ी बात है...नंदिनी जी को भी इस बात को समझना चाहिए और सारी कड़वाहट...सारी दुविधा को भूल कर फिर से ब्लॉगजगत में लौट आना चाहिए
मैंने भी उनसे/उनके लिए अपील की है। देखिए क्या होता है !
ओम् जी ..... क्षमा मांगना बहुत अच्छी बात है..... लेकिन आपने इतनी बड़ी गलती नहीं की कि आपको सरे-आम माफ़ी मांगनी पड़े.... सब समझ का फेर है..... गिल्ट में आने कि कोई ज़रुरत नहीं है..... आपका यह माफीनामा पढ़ के थोडा मुझ जैसे इगो वाले आदमी को खराब लगा है.... यह आपकी गलती है कि आप हर जगह कूदते फिरते हो..... जब कूदेंगे तो धुल तो उड़ेगी ही.... तो बेहतरी इसी में होती है कि .... उठिए... धूल झाडिये और आइन्दा दोबारा ऐसे न कूदने कि कसम खाते हुए आगे बढ़ जाइये.... आप मेरे बहुत ही अज़ीज़ दोस्त -कम-भाई हैं.... और मेरे हर दोस्त कि हर बड़ी से बड़ी गलती मैं माफ़ करने तो तैयार हूँ.... अपने दोस्तों को मैं नीचा नहीं देख सकता .... चाहे वो लाख गलत हों.... याद .... रखिये .... माफ़ी सिर्फ एक शब्द में मांगी जाती है.... ज्यादा चिल्लाने से आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है.....
गलती आपकी है.... पर माफ़ी सिर्फ एक शब्द में मांग के आगे बढ़ जाना चाहिए.... सेल्फ-रिस्पेक्ट मेनटेन करना सीखिए.... शाहरुख़ खान बनने कि कोई ज़रुरत नहीं है.....
"मैं भी प्रबंधन में स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल करने के बाद एक गैर सरकारी संगठन में कार्यरत हूँ। चाहता तो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में टूथपेस्ट बेचने कि रणनीति तैयार कर अच्छे पैसे कमा सकता था पर ग्रामीण विकास के लिए काम करता हूँ जहाँ स्त्री सशक्तिकरण का आयाम हमेशा निहित होता है।"
यह क्या है ? बिना मतलब में इतना पोथी-पत्रा.... अरे ! आपने सॉरी बोल दिया..... बात ख़त्म.... आप तो कथा बांचने लग गए.... आप जब तक के खुद कि इज्ज़त नहीं करेंगे..... तो आपकी भी इज्ज़त कोई नहीं करेगा.... अगर आप गलत हैं.... और सॉरी बोलने पे भी बात नहीं बन रही है...... तो आगे बढिए.... मुझे खराब लगा है.... आपको मैं इतना झुकता हुआ नहीं देख सकता.... मैं अपने दोस्तों को कभी भी झुकता नहीं देख सकता..... अगर मेरा दोस्त गलत भी है.... तो मैं उसे हर जगह सही ही कहूँगा.....
आप सही हैं..... माफ़ी मांग ली बात ख़तम.... यहाँ किसी के चरित्र प्रमाण पत्र देने से आपका कुछ नहीं होगा.... हम अपना चरित्र खुद बनांते हैं.....किसी के कुछ कहने से आप पे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.....
मुझे खराब लगा है इतना बड़ा पोथी-पत्रा..... आपके लिए मैं जान भी दे सकता हूँ... उम्मीद है बाकी bloggers आपके लिए मेरे emotions समझेंगे.... और मुझे कोई गलत नहीं कहेगा.... मैं ओम् जी को उतना ही मानता हूँ कि मैं अपने भाई को..... इसीलिए...मुझे खराब लगा है उनका यह माफीनामा....
@ महफूज़ अली
हिन्दी ब्लॉगरी में इतना पानी, आग और धुआँ है !
सतर्क रहेंगे।
वैसे क्षमा माँगने के सबके अलग तरीके होते हैं। कवि हृदय अतिरेकी हो ही जाता है बन्धु !
मैं भी जहाँ तक आपको समझ सका हूँ, इरादतन आपने ऐसा नहीं लिखा होगा जो किसी के दिल को चोट करे। मैंने कल नंदिनी जी के पोस्ट पर कहा भी था कि - जरूर कोई गलतफहमी हुई है - ओम भाई स्वयं स्पष्ट करें। आज स्थिति आपने स्पष्ट कर दी।
महफूज अली जी की बातों से मैं बहुत हद तक इत्तिफाक रखता हूँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बात क्या हुई, क्यों हुई तो पता नहीं, किन्तु आपने क्षमा माँग ली, अच्छा किया।
घुघूती बासूती
मैं भी चाहता हूँ कि नंदनी जी पुनः लिखना प्रारंभ कर दें. मन में कोई बात लेकर बैठ जाने से कुछ अच्छा नहीं होता. मैं ओम जी को भी जानता हूँ कि जो भी हुआ है, अंजाने में ही हुआ है.
अतः नंदनी जी से गुज़ारिश है कि आप अपना लिखना जारी रखें.
आपने अपना पक्ष रखा और सारी बातें सॉफ कर दीं, ये मुझे अच्छा लगा.
अपनी भूल को स्वीकार करके व्यक्ति का व्यक्तित्व बड़ा होता है । आपने ऐसा ही किया । अब नंदिनी जी को चाहिये कि वो अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें ।हालांकि कई ब्लागर साथियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की है(मुझ जैसे अल्पग्य ने भी)
main mehfooz ali ki baat se sahmat hoon
omji !
aap ek great poet bhi hain aur great indian bhi
main aapki kadra karta hoon aur aapka sammaan karta hoon......
aapko itnaa sharminda hona pade, aisaa koi kaaran hi nahin hai......
jai hind !
ओम जी अच्छा ही किया जो माफ़ी आपने मांग ली
अब ज़रूर ये गलतफहमी दूर हो जायेगी
पूरा विश्वास है
शुभकामना !!
ओम जी, अब इससे अधिक और कोई कितना झुक कर माफी मॉंग सकता है ।
सही है कि आपके इरादतन न कहने के बावजूद नंदिनी जी आहत हुईं लेकिन अब उन्हें दिल साफ करके नए सिरे से शुरुआत करनी चाहिए ।
ब्लॉगर मित्र इसीलिए इतनी कोशिश कर रहे हैं कि आप दोनों ही निर्दोष हैं । बस एक मिसअंडरस्टैंडिग हो गई ।
हम भी नंदिनी जी से गुजारिश करते हैं कि अपने फैसले को विशेष आहत भावदशा में लिया फैसला मानकर वापस आने की घोषण करें भले ही थोडे समय के बाद ब्लॉग पर लिखें ।
आप लोग हिन्दी ब्लागिंग के नगीने हैं । हम आपको खोना नहीं चाहते ।
आपने क्षमा माँग ली, अच्छा किया। ये गलतफहमी दूर हो जायेगी ऐसी आशा है। कुछ न जानते हुए भी अपील तो हमने भी कर दी थी। और आप से भी अपील है ब्लॉगजगत न छोड़ें।
नतीज़ा सुखद हो, यह कामना है
बी एस पाबला
कभी कभी गलतफ़हमी हो जाती है। कभी जानबूझ कर भी छेडने के लिए कुछ कहा जाता है... इसका यह अर्थ तो नहीं कि दुनिया ही छोड़ दें.. तो वही सवाल पैदा होता है...
मर कर भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे?
ये सारी ग़लतफ़हमी आपके बांगला देश प्रवास के कारण जन्मी....आपकी चुप्पी से नंदिनी आहत हुई ...और उन्होंने यही सोचा होगा..की आपको कोई पछतावा नहीं..अब जब आपने सच्चे मन से माफ़ी मांग ली है...तो शायद वो भी समझ जाएँ...और आपको भी एक सीख मिल गयी की पब्लिक प्लेटफ़ॉर्म पर कितनी सीमाएं तय करनी चाहियें
ओम जी, आप कभी किसी का दिल दुखा ही नहीं सकते...नन्दिनी जी, गलतफ़हमी दूर करें.
om ji ye to pata nahin kya hua haia, lekin aapne achcha kiya ye post likh kar sorry bolne se ya is tarah ki post likhne se koi chhota nahin ho jata , balki aapne badappan hi dikhaya hai, mere se bhi ek do baar is tarah ki chhoti moti bhool hui hai maine seedhe sambandhit paksh ke email par sorry bola hai/kshama mangi hai, ismen koi burai nahin hai.
देर रात से आपकी पोस्ट देख रहा हूँ और सुबह का अखबार राजस्थान पत्रिका सामने है. इसके अंतिम पृष्ठ पर कोई विचार हर रोज आता है, आज लिखा है " यदि आप गलती नहीं कर सकते हैं, तो आप कुछ नहीं कर सकते हैं."
बात तो हमें भी नहीं पता मगर आपकी इस पोस्ट से आपके ह्रदय की विशालता दिखती है - इससे हम जैसे आम लोगों में भी साहस आयेगा, धन्यवाद.
चलिए अब कसम खाइए कि आइन्दा पैग लगाने के बाद कोई भी कोमेंट नहीं दूंगा :)
ये तो मजाक की बात मगर ओम जी, इतना जरूर कहूँगा कि हम जो ये तथाकथित सह्हित्य्कार है, कभी कभार जरुरत से ज्यादा भावनाओं में बहकर लिख डालते है ! हमें थोड़ा बहुत यह भी देखना चाहिए कि हमारी टिपण्णी किसी को आहात तो नहीं कर रही ! जो अनजाने में हो जाती है, उसका यही सोलुसन है जो आपने किया 'क्षमा मांग लेना " ! खैर, नंदनी जी ने बहुत ज्यादा उसे निजी तौर पर ले लिया और एक दुखद फैसला किया!
इसीलिए मैं भी रात को न तो टिपण्णी देता हूँ और न पोस्ट लगाता हूँ ! सुअभ जब एक बार पढ़ लेता हूँ तब जाके उसे पोस्ट करता हूँ! हा-हा-हा..
आपने माफी मांग ली, उम्मीद है आगे सब अच्छा ही होगा, नंदनी जी भी शायद इस क्षमा वाली पोस्ट से अपनी गलतफहमी दूर कर पाएंगी ।
शुभकामनायें ।
मै वही सोच रहा था के आपने पोस्ट क्यों नहीं लिखी... क्षमा मांगना महत्वपूर्ण है ...ओर आपकी अच्छी सोच को दिखता है ... .दो अच्छे लोगो के बीच ग़लतफ़हमी देख दुःख होता है ....उम्मीद करता हूं के सब कुछ ठीकहोगा
क्षमा मांगकर आदमी कभी छोटा नहीं होता, एक गलती कुबूल करके गलतफहमियों से बचा जा सकता है......
आपको समझेंगे लोग
श्री ओम आर्य के जिन शब्दों से तकलीफ हुई अब वह नहीं रही. उनसे पूछना मेरा अधिकार था, मैंने उसका उपयोग किया. एक सार्वजनिक टिप्पणी पर सार्वजनिक पोस्ट लिखना, भद्र लोगों को सुहाया नहीं तो वे सब मुझे गलत बताते रहे और अपनी संवेदनशीलता की पीठ ठोकते हुए मेरे शब्दों को अग्नि में समर्पित करते उसके चारों और नाचते रहे. किसी स्त्री की असहमति हो तो उसे पतित या पथभ्रष्ट हो चुकी नादाँ स्त्रियों के नाम से पुकारा जायेगा ऐसी रवायत है जिसे आज सुबह तक निभाया जा रहा है. इसीलिए श्री ओम आर्य मेरा ब्लॉग में लौटने का मन नहीं है जब होगा तब आ जाउंगी. आपकी आभारी हूँ कि आपने एक स्त्री के सम्मान की रक्षा ही नहीं की वरन उसे बढाया है. आप जिस पथ पर जाएँ वह स्वतः आलोकित होता रहे.
नंदिनी जी ,
हम सभी परेशां हैं आपके लिए .....कल डाक्टर अनुराग जी ने भी कहा वो आपके जाने से आहात हैं ...आपको चोट पहुँचाने का हमारा कोई इरादा नहीं था ...पर जिस इंसान पर दोषारोपण हो रहा है उसे हम जानते हैं ...उनकी भावनाओं से परिचित हैं ...इसलिए आपसे कहा की उन्होंने अनजाने में ये पंक्तियाँ लिख दीं होंगी उसे गंभीरता से न लें .....और अब देखिये वो जितना नीचे गिर सकते थे गिर चुके हैं ....उनकी ये पोस्ट तभी सार्थक होगी जब आप लौट कर उन्हें क्षमा कर देंगी ....आप यकीं मानिये आपके इस तरह जाने का हम सब को दुःख है....!!
यूँ नंदिनी जी और औम जी से सिर्फ कविताओं का ही रिश्ता रहा है... मगर दोनो ही बहुत प्रिय कवि रहे हैं। नंदिनी जी आप विश्वास मानिये कि आपका जाना अच्छा नही लग रहा। और अब किसी व्यक्ति के इतनी बार क्षमाप्रार्थी होने के बाद तो मान ही जाना चाहिये ...अब आ भी जाईये वापस.. हम सभी प्रतीक्षारत हैं...!
नंदनी जी AUR आप DONO से गुज़ारिश है कि आप अपना लिखना जारी रखें.....
पिछले दो तीन दिन नेट से संपर्क कम रहा ...इसलिए इस पूरे प्रकरण के बारे में देर से पता चला ...ओम जी को काफी समय से पढ़ती रही हूँ ...यही लगा था कि कही न कही कोई ग़लतफ़हमी है ....मगर यदि कोई व्यक्ति दिल से माफ़ी मांग रहा है इसका साफ़ मतलब है कि किसी को चोट पहुँचाने का उसका कोई इरादा नहीं था ...आशा है नंदिनी इसे समझेंगी ....!!
बहुत दिनों बाद ब्लॉग जगत की तरफ आया हूँ तो बात का पता नहीं. मुझे तो एक कहानी लगी और उसी तरह सोचता हुआ पढता गया. लेकिन जब कमेन्ट दिखे तो लगा की मामला कुछ और है.
गलतियां किसी से भी हो सकती हैं। छोटी सी बात का इतना बतंगड नहीं बनाना चाहिए।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
पूरा प्रकरण साफ हो गया और अब तो नंदिनी जी ने भी खुलासा कर दिया है....
ओम आर्य की तकलीफ़ का अंदाज़ा लगा सकता हूँ...लेकिन उन्होंने यूं खुले आम माफी माँग कर उदाहरण दिया है।
नंदिनी जी को तो वैसे बहुत कम पढ़ा है मैंने, लेकिन उनका जाना हम कविता प्रेमियों के लिये एक क्षति तो है ही। ...और अब जब ओम जी ने अपना स्पष्टीकरण दे दिया है तो उन्हें लौट आना चाहिये।
ओम जी और नंदिनी जी दोनों को ढेर सारी शुभकामनायें अपनी लेखनी की चमक बरकरार रखने के लिये....!!!
भाई ओम जी,
मुझे नंदिनी जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहने का औचित्य नहीं लगता पर आपके इन उदगारों ने मुझे एक महान संवेदनशील इंसान से मिला दिया.एक संवेदनशील कवि के रूप में तो आपसे मिलना हो ही जाता था.
इस प्रकरण से इतना ही जाना कि इस माध्यम में कई बार सहज संवाद नहीं हो पता.
शुभकामनाएं ओमजी.
आपकी माफ़ी मांगने से आप के ह्रदय की महानता क पता चला!साधुवाद!
इतनी देरी हो गयी है टिप्पणी करने में फिर भी...भाई संजय व्यास जी की टिप्पणी से साभार/उधार..."भाई ओम जी,
मुझे नंदिनी जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहने का औचित्य नहीं लगता पर आपके इन उदगारों ने मुझे एक महान संवेदनशील इंसान से मिला दिया...."
और...फिर
'क्षमा' बड़न को चाहिए...!
मै बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा यदि, अपूर्व अलविदा कह दें..सागर ब्लागिंग छोड़ने को मजबूर हो जाएँ, नंदिनी जी इतनी कठोर हो जाएँ..दर्पण जी शांत हो जाएँ..या डिम्पल जी ही..किसी का भी जाना एक अपूरणीय क्षति होगी..और यह तो थोड़ी बचकानी बात भी होगी..हम सभी में थोड़ा toleration तो होना ही चाहिए..हिंदी ब्लागिरी के लिए शुभकामनाएं...!!
मेरे चाचा फौज में थे. वो कहते हमलोग किसी घायल साथी को लड़ाई के वक़्त नहीं उठाते. पहले जंग और वापसी में अपने साथी का हालचाल. इसकी जड़ में दोनों के मन में आपसी समझदारी थी कि जरुरी क्या है ? आखिर हम बच्चे नहीं है. यही सोच कर मैंने अपनी अलगी पोस्ट डाल दी थी. पर संवेदनशीलता क्या है ?
मैं इस वक़्त निजामुद्दीन में बैठा हूँ. ग़ालिब ने अपने अंतिम दिन यहीं गुज़ारे थे, मज़ार अपने हाल पर रो रहा है. इस महफ़िल पर कोई प्रेतात्मा का साया हो गया है. यहाँ चांदनी चौक, और पुरानी दिल्ली की रौनक नहीं लग रही मुझे. हुमायूँ का किला सुनसान पड़ा है. कुछ पुरानी हवेली है जो ख़ार खाने का माद्दा भी नहीं रखती. दुनिया अपने ज़ख्म को भूल कर आगे बढ़ चुकी है. और अब उन महलों की कोई दरकार नहीं. निजामुद्दीन औलिया कि दरगाह से दोपहर कि आजान आ रही है लेकिन आज उसके साथ नहीं हूँ. मेरे दिल में कोई सदा नहीं है... कोई आवाज़ तो लगा रहा है जरूर किसी को... मैं बेसुध, पता नही क्या लिख्खे जा रहा हूँ.
अपूर्व की पोस्ट ने मुझे मेरी औकात बता दी. फिलहाल तो दिल बहलाने वाली ख़ुशी तो यही है की हम कैसे एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं.उन्होंने समझाया - हम ब्लॉगर नहीं हैं. हम कुछ और हैं. मुरीद लोग ऐसे ही नहीं होते.
यह bhawavesh में uthaya gaya kadam है... jisse आपको भी baad में pachtana होगा...
इस्स्स्स ! अब कुछ लिख्खा नहीं जा रहा... लौट आइये... नंदिनी ओम डिम्पल अपूर्व...... पता नहीं यह नंदिनी रुपी इंजन इस रेल को कहाँ ले जाएगा...
Bas ummeed hai teri, bas intezaar hai tera,
Yeh shikwae shikayat kya, naadaan yaar hai tera
भाई,
रात के सवा से ज्यादा हो गए हैं... और आप याद आ रहे हैं... क्या करूँ, कुछ ज्यादा हो गई है; आपको ही छेड़ना अच्छा लगता है...
ओम भाई का मौन लम्बा हो गया है... कुछ तो लिखिए कि जीना सहल हो...
आपकी कलम से ये फलसफा भी खूब रहा :
'कलम ने सनम को विषबुझी नोक दी है,
अभावों ने भावों के जिगर में छुरी भोंक दी है !'
क्या बात है... !
सप्रीत--आनंद.
बहुत दिनों से आपका ब्लॉग नहीं पढ़ा था, सोचा आज जाना ही होगा। सच पूछो तो आपके ब्लॉग यूआरएल मुंह जुबानी याद है। लेकिन ये क्या क्षमा कीजिए। किस लिए...अभिव्यक्ति आपका अधिकार है। टिप्पणी के लिए कैसा माफीनामा। अगर उसको बुरा लगाए तो हटा दे। ऐसा कई बार होता है। जब कविता पढ़ने के बाद कुछ लिखने को मन करता है, जो अचानक दिमाग में आ जाता है। फिर से वहां मत जाना। अगर उसको बुरा लगता है, लेकिन माफी किस लिए। ओम शांति ओम
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
Mujhe is ghatna ka aga peechha to pata nahee...lekin,haan, apnee galati qubool kar lena badappan hai!
Anek shubhechhayen!
यहाँ तीसरी बार आ चुका हूँ, कोई हलचल ना देख
मैं कह रहा हूँ -
ओम जी, क्या अभी भी कोई मुश्किलें हैं या आप कहीं और ही व्यस्त हैं.
यह मौन का खाली घर जरूर फिर से आबाद होगा ... नंदनी और आप भले ही कविता छोड़ दें किन्तु कविता आप दोनों को नहीं छोड़ेगी ...
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