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Tuesday, March 30, 2010

आवाज की हमने कभी नही सुनी !

सुबह-सुबह इक ख्वाब गिर गया है आँख से
नींद काँप उठी थी शोर से

आवाज,
जिसकी अन्तिम स्थिति मौन होनी चाहिए थी
संगीत से निकल कर
शोर हो चुकी है

हमारे समानांतर
परन्तु तेज बढ़ते हुए
यह हिला देगी
एक दिन इस पूरी कायनात को

केवल वही कान बचे रह जायेंगे
जो सुन पायेंगे
कर्णातीत ध्वनियों को

सुनने के सम्बन्ध में कुछ भी हो सकता है
जिसके बारे में अभी से तय करना
मामले को कम गंभीरता से लेना है

गलती हमारी है
हमने कभी
ये जानने की कोशिश नही की
कि दिनानुदिन बढती हुई चीखों में
वह चीख-चीख कर क्या कह रही है

आवाज की हमने कभी नही सुनी !!

Monday, July 20, 2009

आवाज शोर की तरफ़ जा चुकी है

एक ऐसी दुनिया थी
जहाँ
आवाज कानो में नही गिरते थे
जब तक कि उसे शोर से भारी न बना दिया जाये

क्यूँकि वहां के लोग
धीरे-धीरे अपने कान मौके के अनुसार
ढालने में सक्षम हो गए थे

उसी दुनिया में
कुछ लोग
अपनी खामोशी लेकर खड़े हो जाते थे
सुने जाने के इन्तिज़ार में

उन खड़े लोगों को
उस दुनिया से
समय रहते निकाल लिया जाना जरूरी था

पर उन लोगों को
वहां से निकाल लेने का हुनर
किसी के पास नही बचा था.