ढूँढती रहती है अफ़सानों में अपनी जगह
खोलती रहती हैं पुरानी सन्दुकेन
यादों की पुरानी जंग लगी तहें.
बातें दूर तक साथ जाती हैं
गर उन्हें किसी नम रसीले गले का सहारा मिल जाता है
गर किसी अहसास के साथ उन्हें किसी अफ़साने में जगह दे दी जाती है.
पर आवाज़ और अफ़साने की गैर हाज़िरी में भी वे
अपने पूरे वजूद के साथ जिंदा रहती है
और वक़्त बे-वक़्त हमें सराबोर करती रहती है
बातों का वजूद हमारे अडोस पड़ोस में हमेशा जगह घेरती है
2 comments:
अति सुन्दर !
बहुत खूब।
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