Thursday, October 30, 2008

आज भी खड़ी हूँ !!!

सालों साल

फटी-उघडी देह में जीते हुए

तुम्हारे आने की आस तापती रही

और हमेशा उस किनारे से लगी रही

जहां से तुम्हारी धार गुजरनी थी

आज भी खड़ी हूँ

उसी किनारे पे

तू किधर से भी आ

मैं बह चलूंगी।

4 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

bahut sunder likha hai
आज भी खड़ी हूँ

उसी किनारे पे

तू किधर से भी आ

मैं बह चलूंगी।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!

अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब.

पारुल "पुखराज" said...

hameshaa ki tarah..bahut acchhaa