पतझड़ में जो पत्ते
बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं !
वे कहीं भी जाएँ
पर उन सूखे पत्तों की रूहें
उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है
किसी भी मौसम में
ये दीवारें सूखती नहीं
ये हमेशा नम बनी रहती हैं
मौसम रिश्तों की रूहों को सुखा नहीं सकते।
7 comments:
मौसम रिश्तों की रूहों को सुखा नहीं सकते।
bahut sunder
i liked it
बहुत ख़ूब...
पतझड़ में जो पत्ते
बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं !
वे कहीं भी जाएँ
पर उन सूखे पत्तों की रूहें
उसी आशियाने की दीवारों पे
बहुत ख़ूब...
क्या बात है !! बहुत ही उम्दा.
बहुत ख़ूब!! बहुत उम्दा!!
rishton ki gahraaiee isee ko kahten hain mere bhaee. Jo in bhaavnaaon ko samajh sakta hai nishchit hi wah logon ke liye kaphi kuchh kar sakta hai.
Kitnee panktiyon ka ullekh karun ? Pooree rachna likhnee hogee...aur comment yahan de rahe hun par sabhee rachnayen ateev sundar hain...aur hairat hai ki aapne ek auratke nazaryese likha hai.....aur itna sahee...!
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