Wednesday, March 4, 2009

उम्मीद

दरार पड़ते समय दर्द होता है
और
दर्द होने से दरारें पड़ती हैं

दर्द और दरार दोनों हीं क्रमवार हैं
एक के पीठ पे एक

दरारें पड़ रही हैं
दर्द हुआ जा रहा है

दर्द हुआ जा रहा है
दरार पड़ती जा रही है

कुछ समय बाद दर्द नही होगा
दर्द होने के लिए पानी जरूरी है बदन में

फ़िर शायद दरार भी नही होगा
क्रम टूटेगा

पर चाहता हूँ क्रम टूटे नही
पानी बचा रहे
क्यूंकि जब तक
एक भी बूँद पानी है
चमन के लौटने की उम्मीद है

6 comments:

संध्या आर्य said...

दरारें पड़ रही हैं
दर्द हुआ जा रहा है

दर्द हुआ जा रहा है
दरार पड़ती जा रही है


ओम का प्रकाश हो

फिर भी इतना हताश और निराश हो

सभी कविता प्रेमियो की तलाश हो
फिर भी इतना हताश और निराश हो
न होओ हताश और निराश
क्योकि आप हो ओम का प्रकाश

संध्या आर्य said...
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संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...

पारुल "पुखराज" said...

दर्द और दरार दोनों हीं क्रमवार हैं
एक के पीठ पे एक

दरारें पड़ रही हैं
दर्द हुआ जा रहा है

दर्द हुआ जा रहा है
दरार पड़ती जा रही है

sahi hai...

vandana gupta said...

dard aur darar ka sangam jab bhi hoga to aisa hi hoga...........magar ummeed bandhi huyi hai to phir kis baat ka darna.
bahut khoob.

Yogesh Verma Swapn said...

पर चाहता हूँ क्रम टूटे नही
पानी बचा रहे
क्यूंकि जब तक
एक भी बूँद पानी है
चमन के लौटने की उम्मीद है
KYUNKI JAB TAK EK BOOND BHI PAANI HAI.....................UMMEED HAI.

WAH, BAHUT KHOOB. SARAHNIYA RACHNA.