Friday, March 13, 2009

दरकी हुई दुनिया

दुनिया,
किसी किनारे पे खत्म नही होती
ऐसा कहते हैं खोज के परिणाम।

मैं ज्यादा दूर गया नही हूँ
अभी किनारे की ओर
पर कहाँ जाया जाता है मुझे नही पता
जब दुनिया बीच में हीं खत्म हो जाती है
ना हीं किसी खोज के परिणाम कहते हैं

तब जब दुनिया बीच में हीं दरक जाती है
पृथ्वी अपनी धूरी पे नही घूमती
दुनिया में मौसम नही बदलते
पतझर अटका हुआ रहता है शाखों पे,
चाँद उगता नही और अँधेरा डूबता नही
तब कहाँ जाया जाता है मुझे नही पता

तुम्हारे जाने के बाद डालियों पे,
हरे पत्ते नही लौटे अब तक
तो क्या हुआ गर मेरी सांस चलती है
और उंगलियों में कलम पकड़ लेता हूँ .

मुझ पे तो कील रख के ठोक दिया गया
वक़्त का सारा ख़ालीपन
और छोड़ दिया गया है
अपने बहते लहू के सहारे।

मैं जाता हूँ
उन दरारों में भी कभी कभी
जो मेरी दुनिया के
अचानक दरकने से बनी है
और ढूँढता हूँ उस टूटी दुनिया के छोर को
जो खो गयी है
पर वो वहां नही मिलती

कभी कोई छोर मिल जाए गर तुम्हे
मेरी दरकी दुनिया के
तो gujaarish है
खींच लाना उसे मुझ तक।

मैं हाथो में शुकराना लिए तुम्हारा इंतिज़ार करूंगा।

7 comments:

अमरेन्द्र: said...

ओम जी, मेरे ब्लाग पर पधारने और परिचय देने के लिये धन्यवाद। बहुत अच्छा लगा आपका ब्लाग देखकर। कविता "मौन के खाली घर में" अच्छी अभिव्यक्ति है। इसी आशा के साथ कि सम्पर्क बना रहेगा,
सादर,
अमरेन्द्र

संध्या आर्य said...

कभी कोई छोर मिल जाए गर तुम्हे
मेरी दरकी दुनिया के
तो gujaarish है
खींच लाना उसे मुझ तक।

मैं हाथो में शुकराना लिए तुम्हारा इंतिज़ार करूंगा।

इसी इंतजार का नाम जिन्दगी है.

अभिषेक मिश्र said...

तुम्हारे जाने के बाद डालियों पे,
हरे पत्ते नही लौटे अब तक
तो क्या हुआ गर मेरी सांस चलती है
और उंगलियों में कलम पकड़ लेता हूँ .

भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

रंजू भाटिया said...

तुम्हारे जाने के बाद डालियों पे,
हरे पत्ते नही लौटे अब तक
तो क्या हुआ गर मेरी सांस चलती है
और उंगलियों में कलम पकड़ लेता हूँ .

बहुत अच्छी पंक्तियाँ

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

मौन के खाली घर में शब्द बोलते हैं. दरकी हुई दुनिया का अंत एक उम्मीद पर और वो भी शुक्रिया के साथ बहुत ही अच्छा लगा.

"मैं हाथो में शुकराना लिए तुम्हारा इंतिज़ार करूंगा।"

मेरी कविताएं को पढने और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये धन्यवाद.

मुकेश कुमार तिवारी

Yogesh Verma Swapn said...

bahut umda rachna om ji, sarahniya, badhai.

vandana gupta said...

kahin bhi jao magar chute huye chor phir nhi milte.........jo darak gaya wo darak hi gaya............wahan kisse apna pat puchein.