Saturday, March 14, 2009

लापता लोग

(घुघूती बासूती जी को पढ़ के अभी मुझे अपनी एक पुरानी कविता याद आ गई)

अखबार में छपी है,
फोटो के साथ दी हुई है
लापता होने की ख़बर।

ये लापता लोग
जिनकी कोई ख़बर नही है इनके परिजनों को ,
सिर्फ़ ये लोग हीं लापता नही है

लापता लोगो की कई और श्रेणियां हैं ...

लापता वे लोग भी हैं,
जिनके सारे परिजन
किसी आतंकवाद के शिकार हो गए
और वे लोग भी जिन्हें
उनकी मांएं, किन्ही परिस्थितियों में
कहीं रोता हुआ छोड़ आयीं
और वे लोग भी
जो ओल्ड-एज होम में रहते हैं,
इसी तरह के कई और भी लोग लापता हैं
इस दुनिया में


असलियत में
लापता लोगों की ख़बर
किसी अखबार या टेलीविजन पे नही आती
दरअसल, लापता वे लोग होते हैं
जिनको अपना कहने वाला
इस दुनिया में कोई नही होता

7 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत मर्मस्पर्शी कविता लिखी है। सच में हम में से बहुत से लापता हैं। मेरी पीढ़ी की स्त्रियों की बहुत बड़ी संख्या भी लापता है। नाम बदलकर, गाँव ,शहर ,कस्बा बदल कर लापता हैं। चाहकर भी इन्हें ढूँढ नहीं सकतीं हम।
घुघूती बासूती

संध्या आर्य said...

दरअसल, लापता वे लोग होते हैं
जिनको अपना कहने वाला
इस दुनिया में कोई नही होता

आज दुनिया मे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है.
आपने बहुत ही सच्ची बात कही है इसके लिये बहुत सारी शुभकामनाये

रंजू भाटिया said...

दरअसल, लापता वे लोग होते हैं
जिनको अपना कहने वाला
इस दुनिया में कोई नही होता

सही कहा आपने ..बहुत अच्छी लगी यह लापता होने का दर्द इस सच्ची बात में छिपा है

अमिताभ मीत said...

क्या बात है. आ के सीधी लगी भाई. याद रह गई.

sanjay vyas said...

इतनी सुंदर कविता अब तक कहाँ लापता थी?आज एक और अपनों को ढूंढता इस कविता के पास आकर बैठ गया.शुक्रिया ओम जी.

Neha Dev said...

बहुत सुन्दर ब्लॉग है और आपका बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप !

सुशील छौक्कर said...

बेहतरीन लिखा है आपने।
दरअसल, लापता वे लोग होते हैं
जिनको अपना कहने वाला
इस दुनिया में कोई नही होता

सच।