Saturday, August 8, 2009

कुछ होता था...

मैंने सिगरेट पीनी छोड़ दी थी
मेरे दुःख अब धुएँ में नही बदलते थे

बातों का सिलसिला मेरे हाथों टूट गया था
मेरे हाथ में तभी से मोच आ गई थी

शहर में रोने की कोई जगह नही थी
शहर में रोने पर कर्फ्यू था

मैं अपने दोस्त की माँ से मिलता था
अक्सर मुझे माँ याद आती थी
मेरी माँ में मुझे जो माँ के अलावा था,
वो दिखाई दे जाता था

उस तक पहुँचने के लिए एक सड़क काफ़ी नही थी
वो एक बदलती हुई मंजिल थी

कांपती रात के किनारे पे वक्त मुझे
देर तक बिठाये रखता था
और फ़िर सवेरे में धकेल देता था

मैंने सारे हाथ छोड़ दिए थे
उसका हाथ थामने के लिए
अब कोई चारा नही था, गर वो छलावा थी

27 comments:

chandan said...

बहुत ही ख़ूबसूरत, आज जब हम अपने -अपने उद्देश्यों को पाने के लिए शहर में हैं ....ऐसे में मां की याद वाकई यादो के झरोखे में ले जाती है, और उस पल की याद दिलाती है जब मां हमें दुलारती पुचकारती ....हमारी हर ग़लती को चुपाने की कोशिश करती की कोई डांट न पड़े हमें.....बेहद ही उम्दा रचना

Unknown said...

omji,
aapki rachnaa time pass nahin hoti,
sachmuch kavita hoti hai isliye mainh tab tak apni kursi se uthtaa nahin hoon jab tak ki aapki post nahin padh leta........
aaj aapne prateekshaa karaai lekin
badhaai !
bahut badhaai is abhinav kavita k liye.......

www.dakbabu.blogspot.com said...

lajwab rachna ke liye badhai.Kabhi Dakiya babu ke yahan bhi tashrif laiye na !!

डिम्पल मल्होत्रा said...

maine sare hath chhod diye,uska hath thamne ke liye.ab koee chara nahi...ek tasveer ubhar ati hai apki kavita pad ke....ek kavita me kitna kuch kaise smet lete hai aap....

डॉ .अनुराग said...

आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक......वाकई !!!

विवेक said...

लाजवाब...बहुत संवेदनशील रचना ओम भाई...

Razi Shahab said...

बहुत ही ख़ूबसूरत

M VERMA said...

मै दिल को मजबूती से थाम लेता हूँ
जब भी आपकी कविता पढता हूँ
"मैंने सारे हाथ छोड़ दिए थे
उसका हाथ थामने के लिए"
शब्द ही कहाँ है मेरे पास कुछ कहने के लिये

vikram7 said...

मैंने सारे हाथ छोड़ दिए थे
उसका हाथ थामने के लिए
अब कोई चारा नही था, गर वो छलावा थी
अति सुन्दर रचना

Renu goel said...

मैने सिगरेट पीनी छोड़ दी थी
मेरे दुख धुएँ मे नहीं बदलते अब ....

बहुत सुंदर परिभाषा दुखों की...

निर्मला कपिला said...

आपकी यादों के झरोखे इतने गहरे होते हैं कि आदमी उन मे खो कर रह जाता है और फिर मा के आँगन के झरोखे तो और भी गहरे होते हैं बहुत लजवाब आभार्

अर्चना तिवारी said...

मैंने सारे हाथ छोड़ दिए थे
उसका हाथ थामने के लिए
अब कोई चारा नही था, गर वो छलावा थी

सचमुच यह एक बेहतरीन भावपूर्ण रचना है ...

kshama said...

Oh..kya khayal hai..aur dhamniyon se bahta dard...

दिगम्बर नासवा said...

मैंने सिगरेट पीनी छोड़ दी थी
मेरे दुःख अब धुएँ में नही बदलते थे

GAHRI HAI AAPKI ABHIVYAKTI.....KISI AIK KAA HAATH THAAMNE KE LIYE, KABHI KABHI POORI DUNIYA HI BICHAD JAATI HAI.........AUR SACH MEIN KOI CHAARA NAHI BAHTA AGAR VO CHAALAAWA HO.... GAZAB KA LIKHA HAI..... KISI KE MAN KE EHSAASONKO SHABDON MEIN UTAR DIYA HAI SAHAJ HI...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut he sundar baat kah di aapne om ji aise he likhte rahiy....
very very nice...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Omji....... yeh aapne kya likh diya hai...... mere hi ehsaason ko shabdon mein utaar diya hai........ mera aur aapka koi na koi naata zaroor hai....... tabhi to mujhe aisa hi lagta hai..... ki jo bhi aap likhte ho .......wo mere hi ehsaas hote hain.......

maine apni maa ko bahut hi choti umr mein kho diya tha....... main aaj bhi unhe bahut miss karta hoon......

bahut ehsaason se bhari huyi ek sampoorna kavita...... nahi isey.. main kavita nahi kahoonga...... yeh ehsaas hi hai.......


ThanX for sharing.......

10+++++++++++++++++

AA++++++++++++++++++++++++++++

विनोद कुमार पांडेय said...

आज बहुत दिन के बाद आपके ब्लॉग पर आया,
व्यस्तता के कारण नेट से मिलाप नही हो पाया था,
आज सभी रचनाएँ पढ़ी..

एक से बढ़कर एक..
बधाई

jamos jhalla said...

तम्बाखू के सेवन से घर से चोर और गली में कुत्ता दूर

एक कांग्रेसी
ओये झ्ल्लेया देखा हसाडी सरकार का कमालओये हुन तम्बाखू उत्पादों पर १५२००९से सचित्र चेतावनी छपेगीइससे तम्बाखू के आदी हतोत्साहित होंगेतम्बाखू के सेवन से प्रति दिन होने वाली २२०० मौतों को रोका जा सकेगाकेंसर ,टी.बी.,सेंथ्रेतिक , आस्थिओपोरोसिस,दिल के रोग,आदी को रोका जा सकेगाओये अब तो इन रोगों के उपचार के लिए हो रहे अरबों रुपयों का खर्च दूसरे विकास कार्यों में लगाया जा सकेगा
झल्ला
ओ भोले बादशाहों आप जी को तम्बाखू के लाभों की जानकारी नहीं है कान खोल कर सुनो तम्बाखू के सेवन से[अ] आबादी की वृधि रोकी जा सकती है क्योंकि तम्बाखू से
[१]माँ बन्ने की संभावना कम हो जाती है
[२]गर्भपात की दर में वृधि होती है
[३]सेक्स का आनंद कम होता है
[४]गर्भ निरोधक की जरूरत ही नही रहती
[आ] घर में चोर नही घुसता क्योंकि
[१]कमउम्र में ही टी.बी.हो जाती है रोगी को सारी रात खांसने का वरदान मिल जाता है इससे चोर दूर ही रहते है [इ ]कुत्ते [आवारा और पालतू दोनों ]पैरों में काटते नहीं क्योंकि आस्तिओपोरोसिस होगा, एस्ट्रोजेन हारमोंस की कमी होगी ,हड्डियां कमजोर होगीइससे लाठी के सहारे चलना होगा हाथ में लाठी हो तो शत्रु तो कया कटखने कुत्ते भी नज़दीक नही फटक सकते
[ई]आस पास का पर्यावरण सुधरेगा कयोंकि
[१]साँस के रोग होंगे जिससे भीड़ भाड़ दूर रहेगी
बेशक तम्बाखू से २२०० भारत में और १०००० विश्व में मौतें प्रतिदिन होती हे मगर तम्बाखू के लाभों के चलते ही आज प्रत्येक तीसराभाग्यवान रोगी तम्बाखू सेवक ही है

Sonalika said...

maine sare hanth chhod diye the
uska hanth thamanr kr liyr
ab koi chara nahi gar wah ek chalawa thi.
bahut sundar rachana.

Meenu Khare said...

मैने सारे हाथ छोड दिए थे,
उसका हाथ थामने के लिए
अब कोई चारा नही था,गर वो छलावा थी.

बहुत ख़ूबसूरत,उम्दा रचना.

Mithilesh dubey said...

बहुत ही ख़ूबसूरत,......

Mayur Malhar said...

APKI YEH RACHANA BEHAD UMDA HAI. DUKHON KO AAPNE KAFI ACHCHE SHABDON MEIN PARIBHASHIT KIYA HAI.

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना काबिले तारीफ है!आपने बड़े ही सुंदर रूप से दुखों को शब्दों में पिरोया है! शानदार रचना!

ओम आर्य said...
This comment has been removed by the author.
आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

मैंने सारे हाथ छोड़ दिए थे
उसका हाथ थामने के लिए
अब कोई चारा नही था, गर वो छलावा थी
क्या बात कह गए आप ओम जी ,मेरा आपके गले लग जाने का ज़ी कर रहा हैं

Chandan Kumar Jha said...

बहुत ही सुन्दर रचना.