कुछ रूहें मैं अटक जाता हूँ उस नीम के पेंड पे जो पिछले जनम में गुलमोहर था..
जो उलझ जाती होंगी पापकर्म में उस परलोक में भर जाता होगा जिनके पापों का घड़ वे रूहें पाती होंगी इस पृथ्वी पे एक बेहद कोमल ह्रदय वाला बदन और ईमानदार मन ताकि वे दुःख उठायें लगातार..
नीम नीम ही था हर जन्म मे कडवा मगर सच हर बीमारी से लड़ता सूखता फिकता नीम हो या निबोली सच कि भाषा और बोली कडवी ही होती हैं गुलमोहर का क्या नीम हो कर तो देखो
आदरणीय ओम जी..दुआ है कि इस होली पर नीम के तमाम पेड़ों पर अटकी गुलमोहरों के मौसमों की रंगीन मगर उधड़ी हुई सारी पतंगे शाखों की परिधि से स्वतंत्र हो कर विस्तृत आकाश के अनंत को अपना नया और स्थाई आशियाना बनाएँ..इन्ही दुआओं के साथ आपको भी होली के अवसर पर जीवन मे नये और कभी न फ़ीके पड़ने वाले चटख रंग भरे दिनों के लिये शुभकामनाएँ..
बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं.............. लेकिन फिर भी इन बदली हुयी चीजों में ही उस पुरानेपन का एक अक्स झलक जाता है जिनसे हमारा रिश्ता रहा है ! उस नीम के पेंड़ में अभी भी एक गुलमोहर है .....छुपा हुआ ...अदॄश्य ....उस सब नहीं देख सकते .....वही देख सकता है जो "किसी रंग या रोशनी" मे उस पर अटक जाता है !!!!!!!!!!
23 comments:
रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए
उस नीम के पेंड पे,
जो पिछले जनम में गुलमोहर था
मैं अटक जाता हूँ उस पे
जब भी कोई रंग हो,
रौशनी हो
या फिर बसंत हो, बहार हो
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
वह नीम का पेंड
जो पिछले जनम में गुलमोहर था
गुलमोहर के नीम हो जाने का दर्द है इस रचना में
बेहतरीन रचना .
होली पर्व पर शुभकामनाये और बधाई .
गुलमोहर से नीम तक का सफर…………कितने रंग बदल जाते एक ही जीवन में…………अनगिनत ।
होली की शुभकामनायें ।
behad bhaavpurn!
होली की शुभकामनाए.
uff...........itna dard....aaj bhi!
holi ki hardik shubhkamnayein.
कुछ रूहें
मैं अटक जाता हूँ
उस नीम के पेंड पे
जो पिछले जनम में गुलमोहर था..
जो उलझ जाती होंगी पापकर्म में
उस परलोक में
भर जाता होगा जिनके पापों का घड़
वे रूहें पाती होंगी इस पृथ्वी पे
एक बेहद कोमल ह्रदय वाला बदन
और ईमानदार मन
ताकि वे दुःख उठायें लगातार..
ऐसा ही किस्सा होगा गुलमोहर और नीम का...
होली की शुभकामनाएँ ।
वक्त की कलाई
बहुत सख्त हो चली है
सांसो की चुडियाँ
चढने से इंकार करती है !
नीम नीम ही था हर जन्म मे
कडवा मगर सच
हर बीमारी से लड़ता
सूखता फिकता
नीम हो या निबोली
सच कि भाषा और बोली
कडवी ही होती हैं
गुलमोहर का क्या
नीम हो कर तो देखो
Bahut sundar rachana!
Holiki shubhkamnayen!
बहुत बढ़िया. कई नीम पहले गुलमोहर थे.
sach bayaan karti aapki ye sashakt rachna om bhai...
holi mubaarak aur aap sabhi ke liye mangalmay ho...
aapke chhote bhai ne bhi holi pe kuch likha hai....waqt mile to dekhiyega...
http://shayarichawla.blogspot.com/
होली के रंगो को नीम के गुणकारी प्रभाव से आपने मज़ा बढा दिया होली का,शुभकामनाए!
बहुत उम्दा भाव!
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
खूबसूरत रचना ....संवेदना से भरपूर
आदरणीय ओम जी..दुआ है कि इस होली पर नीम के तमाम पेड़ों पर अटकी गुलमोहरों के मौसमों की रंगीन मगर उधड़ी हुई सारी पतंगे शाखों की परिधि से स्वतंत्र हो कर विस्तृत आकाश के अनंत को अपना नया और स्थाई आशियाना बनाएँ..इन्ही दुआओं के साथ आपको भी होली के अवसर पर जीवन मे नये और कभी न फ़ीके पड़ने वाले चटख रंग भरे दिनों के लिये शुभकामनाएँ..
किस तरह खुशियों का खुलासा और कैसे लिखे जाएँ रंग दर्द के इसी में आपकी कविता के शब्द हर बार मन में अटक जाया करते हैं
जो हाल दिल का उधर हो रहा है,
वो हाल दिल का इधर हो रहा है......
नीम के पेड़ पर अक्सर पतंग अटकी देखी है , ...उदास , अकेली , किसी की राह देखती
बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं..............
लेकिन फिर भी इन बदली हुयी चीजों में ही उस पुरानेपन का एक अक्स झलक जाता है जिनसे हमारा रिश्ता रहा है !
उस नीम के पेंड़ में अभी भी एक गुलमोहर है .....छुपा हुआ ...अदॄश्य ....उस सब नहीं देख सकते .....वही देख सकता है जो "किसी रंग या रोशनी" मे उस पर अटक जाता है !!!!!!!!!!
मैं अटक जाता हूँ
उस नीम के पेंड पे
जो कभी गुलमोहर था
vaah इसका विश्लेषण करना होगा ।
Post a Comment