मै तुम्हें कितना कम प्यार देता हूँ
और उतने से हीं तुम
कितना ज्यादा भर जाती हो
ऐसा नहीं है कि
तुम्हारी धारिता कम है
या इच्छा
पर जितना
ख्वाब के भीतर रहकर
दिया जा सकता है प्यार
उतना मुश्किल होता है देना
ख्वाब के बाहर रहते हुए,
मेरे लिए और शायद किसी के लिए भी,
तुम जानती हो
तुम जानती हो
कि इस बदल चुके हालात में
जब कहीं-कहीं बहुत कम हो रहे हैं बादल
और कहीं-कहीं बहुत ज्यादा हो रही है बर्फ,
फसलें लील लेती हैं जमीन कों हीं
और उससे जुडा सीमान्त किसान
फंदे बाँध लेता है
तुम जानती हो
कि मांग को थाह में रखना कितना जरूरी है
चाहे वो प्यार की हीं मांग हो
मैं जानता हूँ
तुम्हारे लिए
प्यार किसी एक वर्षीय या
पंचवर्षीय योजना की तरह नहीं है
जिसमे सब कुछ एक निर्धारित समय के लिए होता है
और जैसा कि अभी चलन में है
बल्कि सतत चलायमान प्रक्रिया है
ये प्यार तुम्हारे लिए
और तुम चाहती हो
फसल थोड़ी हो पर कोंख बंजर न होने पाए
तभी तो मेरे कितने कम प्यार से
तुम कितना ज्यादा भर जाती हो
और मौसम पे जब भी छलक के गिरता है प्यार
वे जान जाते हैं
कि मैं तुम्हें कर रहा हूँ थोडा सा प्यार
आगे के लिए बचा कर रखते हुए अपना प्यार.
25 comments:
प्यार पानी की तरह ही तो है,
बर्फ रूप हो या तरल रूप
पानी पानी रहता है,
प्यार के रिश्तो को भी कोई नाम दो ,
प्यार प्यार रहता है.
अच्छी प्रेम कविता
दिनों से पढ़ता आ रहा हूँ वही सशक्त भाव और वहीं शब्दों की गहराइयाँ...छोटे भाई का प्रणाम स्वीकारें ओम जी..
कि मैं तुम्हें कर रहा हूँ थोडा सा प्यार
आगे के लिए बचा कर रखते हुए अपना प्यार.nice
बेहतरीन कविता.
om bhai har baar aap kamaal karte ho aur is baar bhi aapne bahut he achha likha hai..
पर जितना प्यार
ख्वाब के भीतर रह कर दिया जा सकता है
उतना मुश्किल होता है
ख्वाब के बाहर रह कर देना
शायद किसी के लिये भी
ओम जी ये पँक्तियाँ दिल को छू गयी। आपकी कविता पढना हमेशा ही अच्छा लगता है । शुभकामनायें
सुन्दर अभिव्यक्ति...
regards
पर जितना
ख्वाब के भीतर रहकर
दिया जा सकता है प्यार
उतना मुश्किल होता है देना
ख्वाब के बाहर रहते हुए,
मेरे लिए और शायद किसी के लिए भी,
तुम जानती हो ...
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
तुम जानती हो
कि इस बदल चुके हालात में
जब कहीं-कहीं बहुत कम हो रहे हैं बादल
और कहीं-कहीं बहुत ज्यादा हो रही है बर्फ,
फसलें लील लेती हैं जमीन कों हीं
और उससे जुडा सीमान्त किसान
फंदे बाँध लेता है
... बेहतरीन पैरा थोडा सा खोलूँगा... आपने यह जो इस बदल चुके हालत में लिखा यह बहुत अच्छा लगा क्योंकि ज़्यादातर लोग खुद मैं भी यह लिखता की बदल रहे हालात में .. यह स्वीकृति दृष्टि बन गयी है यहाँ.
बड़ा केनवास का कविता का.
सुंदर प्रेम कविता ...
प्यार के रीते घड़े को भरती हुई ...
ओम जी क्या बात कह दी आपने ...कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं मुझे न जाने कहाँ पड़ा था ..कि पुरुष का प्रेम एक झरने कि तरह होता है बहुत वेग से गिरता है फिर एकदम शांत हो जाता है ,परन्तु स्त्री का प्रेम नदी के सामान होता है अनवरत एक गति से मद्धम मद्धम चलता रहता है...आज आपकी कविता कि पंक्तियों में यही भाव पाए ...बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति हमेशा कि तरह.
Bahut,bahut sundar rachana!
प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति
vaah!
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत ही सुंदर प्रेमअभिव्यक्ति !!
धन्यवाद!
इसे पढ़ कर लगता है कि एक प्रबंधन का विशेषज्ञ जब तेजी से बदलते समाजशास्त्र के बीच विवश नजरों से क्षरित होते प्रेम को परखता है तो कैसी भावस्पर्शी प्रेम-कविता निखर कर आती है..’प्रेम’ को किसी ग्लोबल-क्राइसिस से गुजरती ’कॉमोडिटी’ की तरह मितव्ययिता से इस्तेमाल करने की बात बहुत महत्वपूर्ण लगी..अब वह समय गया जब प्रेम पर्वतों से झरता था और सागर लबालब भरे रहते थे..अब प्रेम बूँद-बूँद इकट्ठा रखने और गागर-गागर बचाये रखने की चीज है...
बेहतरीन और परिपक्व कविता..
मौसमो ने कई दरख्तो को
सूखते देखा है ,
जहाँ से मिठ्ठी पानी
के नदियाँ बहा करती है!
हर शब्द गहरे भावों को लिये हुये, बेहतरीन प्रस्तुति ।
rumaani ahsaas liye kavita!
कल रात ही पढ़ ली थी ये कविता । खुमारी में देर तलक डूबा रहा था...कुछ कह नहीं पाया पढ़ने के बाद।
प्रेम के इन अलग-अलग रूपों को जब आपकी कविता में देखता हूँ, ओम...हैरान रह जाता हूँ।
प्रेम का ये अद्भुत अर्थशास्त्र जो इस कविता में उभरा है अन्यत्र बहुत कम ही देखने को मिला है कि जब आप लिखते हो "तुम जानती हो कि मांग को थाह में रखना कितना जरूरी है" , प्रेम का एक अद्भुत अर्थशास्त्र ही तो क्रियेट होता है।
amazing sir!
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ati sundar!
Kya baat hai..bade dinon se kuchh likha nahi?
तभी तो मेरे कितने कम प्यार से
तुम कितना ज्यादा भर जाती हो
और शायद इसलिये भी क्योकि प्यार कम या ज्यादा नहीं होता. यह सर्वदा लबरेज होता है
बहुत सुन्दर रचना
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