वे कौन सी आत्माएं होंगी
जो होंगी
अगले जन्म में कुपोषित, भूखी
और मृत्यु के किनारे पे उनके शरीर
जिनके शरीरों के पेट फूले हुए होंगे
हाथ बदन से लटके
आँखें भूख में एकटक
और पसलियाँ छाती के बाहर
आ रही होंगी,
वे कौन सी आत्माएं होंगी
कौन सी आत्माएं होंगी २०५० में
जिनके शरीरों पे टिकाई नही जा सकेगी
जरा देर भी नजर
अगर कहीं इन्साफ है
तो ये वो आत्माएं होंगी
जो जिम्मेवार हैं वन और वन्य जीव के लुप्त होते जाने के
प्रदुषण के
खेतों के बंजर होते जाने के
और आखिरकार जलवायु परिवर्तन के लिए
38 comments:
आप मनुष्यो,जीवों और पेड़पौधो की बात कर रहे हैं । यह सभी सजीव हैं, सजीवों के सारे लक्षण इनमे मौजूद है लेकिन इनमे केवल मनुष्य ही है जिसका मस्तिष्क़ इतना सक्रिय है । जिस दिन यह मनुष्य इस बात को समझ लेगा उस दिन वह खुद के साथ अन्य जीवो को भी बचा लेगा । मै आत्मा वादी नही हूँ मगर इतना तो जानता हूँ ।
अगर कहीं इन्साफ है
तो ये वो आत्माएं होंगी
जो जिम्मेवार हैं वन और वन्य जीव के लुप्त होते जाने के
प्रदुषण के
खेतों के बंजर होते जाने के
और आखिरकार जलवायु परिवर्तन के लिए
bahut hi achch ikavita ...... aap sochne ko majboor kar dete hain....
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई ।
इन आत्माओं का इन्साफ कुदरत कर ही देगी ...!!
कौन सी आत्माए होंगी २०५० में .......
अगर इस जन्म के पापो का फल अगले जन्म में, वाली थ्योरी सही है तो आजकल के हमारे सारे भरष्ट नेता और अफसरान, ये तब तक मरकर पुनर्जन्म ले लेंगे और फिर बाट लगेगी इनकी................खूब मजा आयेगा !
bilkul sahi baat kahi.........sochne ko majboor karti hai.
kitni sahi baat ki hai aapne.. bahut acche....
जीती जागती ऐसी आत्माएं जरूर होंगी जो आज जीते जागते इंसानों के रूप में खा जाने को तेयार हैं इस पूरी श्रृष्टि को .......... पूरे वन्य जीवन को, पूरे पर्यावरण को ............ ओम जी .......... बहूत ही गहरी सोच से उपजी रचना है .......
"अगर कहीं इन्साफ है" तो ये आत्माएं इसी जन्म में अपने पापों का प्रायश्चित कर के जायेंगी... पर्यावरण संरक्षण के लिये जागृत करते शब्द...
agla janam to door esi janam me insaaf payenge...jinke hatho me kulhadi or mathe pe pseena hoga wo dhoop se bachke kidher jayenge...zindgee bhar ik patte ki chhanv tak ko tarasenge....zindgee bhi kaisee?sans lene ko hwa bhi kaha se payenge...
हाँ, हम ही सब जिम्मेदार हैं, पर्यावरण को बिगाड़ने के लिए। अच्छी प्रस्तुति, बधाई।
मुझे हैरानी होती है आप इतनी अच्छी रचनाएँ एक के बाद इतनी जल्दी जल्दी कैसे लिख लेते हैं...आपकी इस प्रतिभा को नमन...कमाल की रचना है...अभी नहीं चेते तो फिर कब चेतेंगे?
नीरज
ांअप इन्सान की संवेदनाओं को लेकर बहुत ही संवेदनशील हैं मगर आज देखा कि कि जीवमात्र के लिये आपके पास बहुत भावनायें हैं बहुत अच्छी रचना है बधाई
सोचने पर मजबूर करती एक अच्छी रचना.
सुन्दर ..और सच भी
सजग रहना होगा वर्ना ये इस आंकडे पर भी लीपा-पोती कर देंगे.
और फिर नज़र 2050 तक वाह कवि
यकीनन
क्या खूब दृष्टि है
aapne to sochne par majboor kar diya janaab
jyotishkishore.blogspot.com
आज इंसान और प्रकृति के बीच की जंग है। इंसान कुदरत के हर तोहफे की धज्जियां उड़ा रहा है। जाने कैसे ये आत्माएं ऐसा कर रही हैं। इन आत्माओं का इंसाफ तो अब कुदरत के ही हाथ में है। या कहें कि अब कुदरत को इन आत्माओं ने अपने हाथों में जकड़ लिया है। विषय अति गंभीर है और इसकी गंभीरता को कम शब्दों में प्रभावकारी तरीके से आपने बयां किया है।
chetana ko jhajhoratee hui rachana .aane walee peedee ke prati uttardiytva batatee rachana .
एक जाग्रति की आवशयकता है पर्यावरण हेतु ....आपकी कविता में दिखाई दी है वो झलक ...बधाई
निश्चित !!!! ये वही आत्माए होगी ...........लेकिन तब एक बार ....धीरे से ही .... भविष्य के.....अगले जन्म के..... अपने शरीरों के में भी विचार कर लेना जरूरी हो जाता है ...!
sach hai karm phal bhogne to ana hi padega.
अच्छा होगा यही समय रहते हम चेत जाएँ...
Prakruti aur paryawaran ko bachhane ki ham hamaree zimmedaree hai..doosare kya krte hain, ab is baatse matlab b nahee...jitna ham karen,sajag taa ke saath bahut kuchh ho sakta hai....
आपकी यह कविता एक कविता बस नही है ओम साहब...एक स्टेटमेंट है..एक वार्निंग है..वक्त ही गवाही देगा कि हम अपनी अगली पीढ़ी को..अपने बच्चों को क्या विरासत सौंप के जाते हैं..अगर रहे तो.....
Om ji,
Aapne to pichli kuch rachnaon mein aapna doosraa hi rang dikha diya. Shringaar ke aage abhi jahan aap hain, aapke andar ke kahin dabe hue gusse ka sa ehsaas hota hai.
http://gubaar-e-dil.blogspot.com
जागो ग्राहक जागो!!!!
सुन्दर रचना..
paryavaran par ek gahari soch....vicharne yogy rachna ...
badhai
आपने बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है! बहुत बढ़िया लगा! दिल को छू गई आपकी ये रचना !
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई
बहुत गम्भीर बातों को आपने बहुत सरलता से बयां कर दिया है। बधाई।
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परा मनोविज्ञान-अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
निश्छल मन की अंतरध्वनि है
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चाँद, बादल और शाम
क्या बात कही है ओम जी! आज बडे दिन बाद आपकी रचना पढ़ी. मन एक बार फिर ताज़े विचारों के झोंके का स्पर्श पाकर खिल उठा. बहुत बढ़िया.
मेरी भी राते नसीब के पन्ने उलते दिख जाती है ...........
क्यों ओम जी .....ऐसा क्यों होता है....कहते हैं ये भी टाप है शायद इसलिए आपकी नज्में भी इतनी निखरी होतीं हैं ...!!
आपने पर्यावरण पर बहुत सुंदर कविता लिखी है ....पर क्या २०५० तक दुनिया रहेगी....जैसा की कहा जा रहा है पृथ्वी अपनी धूरी बदल रही है ....!!
नज़्में,
मन के कोमल मनोभावों और समर्पण की, जुगुनू जैसी चमकती हुई.
आत्माएँ तो है पर क्यों जाग नही रही है इसका उत्तर बड़ा ही कठिन है..बहुत सुंदर रचना ओम जी..बधाई
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई
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