चीखों में हीं बोलती हैं
ये वेदनाएं
या रहती हैं चुपचाप आँख फाड़े अवाक
समझ में नहीं आती ये वेदनाएं
क्यूँ-कहाँ-कैसे-कब
जहां तक भी देखना हो पाता है
दिख जाती हैं ये
बिखरी पड़ी हुईं
गोल, चौकोर या लम्बोतरे चेहरे में
घर की चाहरदीवारी पे बैठी हुई कभी,
कभी रसोई घर के बाजू में खड़ी
कचरा घर के आस-पास भी
घर के कोनो में, दरवाजे के पीछे,
दराजों के नीचे
कभी सड़क के किनारे या रेलवे प्लेटफार्म पर
और न मालुम कहाँ और कब-कब
मैं बैठता हूँ अक्सर इन वेदनाओं के बाजू में
और कोशिश करता हूँ
सुनने की उनकी चीखों में उलझे सूखे शब्दों कों
और पूछता हूँ जब वे मिल जाती हैं अवाक
कि कौन हैं वे
पर नहीं मालुम क्या बोलती हैं ये वेदनाएं
जब तक नहीं समझ लूं इन्हें मैं
नहीं पूरी होंगी
मेरी संवेदनाएं!
26 comments:
समझ में नहीं आती ये वेदनाएं
क्यूँ-कहाँ-कैसे-कब
वेदनाओं को समझना वाकई कठिन है.
बहुत वेदनायुक्त और प्रभावी रचना.
भावनाएँ कहती हुई सी
जब तक नहीं बोलेंगी ये वेदनाये
मेरी संवेदना पूरी नहीं होगी !
सुन्दर !
घर की चाहरदीवारी पे बैठी हुई कभी,
कभी रसोई घर के बाजू में खड़ी
कचरा घर के आस-पास भी
घर के कोनो में, दरवाजे के पीछे,
दराजों के नीचे
कभी सड़क के किनारे या रेलवे प्लेटफार्म पर
और न मालुम कहाँ और कब-कब
kya khoob vednaayein vyakt ki hain bhai..
khoobsoorat andaaz mein ek khoobsoorat rachna....
मैं बैठता हूँ अक्सर इन वेदनाओं के बाजू में
और कोशिश करता हूँ
सुनने की उनकी चीखों में उलझे सूखे शब्दों कों
और पूछता हूँ जब वे मिल जाती हैं अवाक
कि कौन हैं वे
पर नहीं मालुम क्या बोलती हैं ये वेदनाएं
dil ko chhoo gayin......
पर नहीं मालुम क्या बोलती हैं ये वेदनाएं
जब तक नहीं समझ लूं इन्हें मैं
नहीं पूरी होंगी
मेरी संवेदनाएं!...bahut samajh aur gahrai se likhi is rachna ke liye om jee aapko bahut bahut badhai...mere blog par aapka swagat hai..
dil kee gahraai me utar gayee hai ye rachana .sath hee badee sunder abhivyaktee jo samvedit kar gayee .
Badhai .
आपकी इस कविता की फ़ितरत मुझे दिल के अंतस् मे रखे आत्मा के उस आइने की तरह लगती है..जिसमे कि बाहरी यथार्थ के उजाले मे नही बल्कि अंदर के गहरे अँधेरे मे ही देखा जा सकता है..अपने अंदर बची आदमियत को, आत्मस्वीकृति को..स्पष्ट !!..संवेदनाओं का यह सहज मानवीकरण सराहनीय है..और दृष्टि की यह प्रश्नवाचक दुविधा उध्वेलित करने वाली है..अंतिम पंक्तियों के लिये कहूँगा कि यही जीवन को सार्थक बनाने वाला सतत संघर्ष है...मानवीयता को बचाये रखने की अथक जद्दोजहद..
जब तक नहीं समझ लूं इन्हें मैं
नहीं पूरी होंगी
मेरी संवेदनाएं!
VEDNA AUR SAMVENDNA KA SACH ME GAHRA RISHTA HAI...KHOOB PAKDA APNE....
Samvednaa se bharee huee vedna hai yah...adhooree nahee hai...rachnaa aur vedna dono apne aapme mukammal hain!
khoobsurat ahsaas ki prastuti.
विचारों और भावनाओं के असीम श्रोत हैं आप नित नयी नयी भावनाएँ और उससे सजी सुंदर कविता का पाठ मन को हर्षित करता है और बहुत कुछ सीख भी लेता हूँ आपसे...धन्यवाद ओम जी..बहुत बढ़िया लगी आपकी यह अधूरी संवेदनाएँ...बहुत बहुत बधाई
vedna bolti nahi,ek jagah bana leti hai kone mein aur samvednayen roti hain
bahut prabhavshali rachna...vednaon ka sajeev chitran hai....badhai
savednayao ke bina jeena jeena nahi hota....
जब तक नहीं बोलेंगी ये वेदनाये
मेरी संवेदना पूरी नहीं होगी !
daro diwaar se uterkar parchhaeeya bolti hai..
koee nahi bolta jab tanhaaeeya bolti hai....
जब तक नहीं समझ लूं इन्हें मैं
नहीं पूरी होंगी
मेरी संवेदनाएं!vednaye or svednaye do aznabi hai jo sare raah mil jati hai chalte chalte..
वाह अत्यन्त सुंदर और प्रभावशाली रचना!
aapki vedna adbhut hai... ek achhi kavita ke liye dhanyavaad...
जब तक नहीं बोलेंगी ये वेदनाये
मेरी संवेदना पूरी नहीं होगी !
बहुत ही गहरे भावों से सजी ये संवेदनायें, अनुपम प्रस्तुति जिसके लिये बधाई ।
सच है इन वेदनाओं को समझ पाना ही हर किसी के लिये संभव नहीं... लोग तो एक कोशिश भी नहीं करते इन्हें समझने की और झूठी संवेदनाएं जताते रहते हैं... भावपूर्ण रचना !!
vednaon ki samvedna ............samajhna itna aasan kahan hota hai..........har baar vednaon ka rang aur dhang ,aakar sab badla jo hota hai..........bahut hi sukshm aur gahan abhivyakti.
vदूसरों के दर्द को कवि बखूबी महसूस करता ,तभी इतनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दे सकता है सुंदर रचना के लिए शुभकामनायें ।
आपकी अधूरी संवेदनाएं पूर्णता को प्राप्त हों, हमारी इतनी ही कामना है।
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हाजिर है एक आसान सी पक्षी पहेली।
भारतीय न्यूक्लिय प्रोग्राम के जनक डा0 भाभा।
जब तक नहीं समझ लूं इन्हें मैं
नहीं पूरी होंगी
मेरी संवेदनाएं!
ओम जी .......... सच में इन वेदनाओं को समझना बहुत ही मुश्किल है ........... अनायास मन के किसी कोने में चुप चाप चली आती हैं और घर बना लेती हैं ............ बहुत कुछ लिख दिया है इन पंक्तियों में आपने ........... लाजवाब
ओम भाई,
कविता कहीं गहरे छूती है और स्तब्ध-अवाक कर बड़ी सहजता से संवेदना के किनारे ला खडा करती है ! यह मानवीय सनातन प्रश्न सम्मुख रखने के लिए आभार ! इस कविता के लिए बधाई देने का मन नहीं होता--जाने क्यों !
सप्रीत--आ.
पहले वेदना या पहले संवेदना !!!...........?? सोचना पड़ेगा ...!
कविता सुन्दर है ..........शब्दों के सूखे होने की भंगिमा अद्भुत बन पडी है !
बहुत सुन्दर!!!!वेदना के सिवा आज है ही क्या? वेदना को समझे ऐसी संवेदना अगर आप रखते है तो बहुत बड़ी बात है !!
baht achcha likhte hain aap..
vedanao ko samjhne ke koshish??..bahut mushkil hai inhen samjhna..
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