Thursday, November 26, 2009

मुझे हीं, अकेले !

ये दर्द मेरा है

मुझे हीं
बहना होगा
कटे नब्जों से
पहले धार में और फिर
टप-टप, टप-टप


मुझे हीं
गिरना होगा
उस ऊँचे पहाड़ से
लगायी हुई छलांग में
और उस वक़्त मेरा भार
दर्द के भार उतना हीं होगा

मुझे हीं
चले जाना होगा
किसी दिन अँधेरे मुंह उठकर
चुप-चाप
समंदर में
बिना पीछे मुडे


मुझे हीं
जलना होगा
हथेली पे बार-बार छुआई गयी
जलती सिगरेट से
और छटपटाना होगा
मुझे हीं हर बार


ये दर्द मेरा है
मुझे हीं गुजरना होगा इससे
चाहे जैसे गुजरूँ मैं ,
मैं जानता हूँ
तुम साथ नहीं होगी मेरे!

27 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

दर्द और उसके साथ निभाए गये रिश्ते ..वाह ओम जी कितनी सहजता से इस बेहतरीन अभिव्यक्ति को प्रस्तुत किया आपने..
शब्द और भाव हर लाइन में दिल को छू जाते है..हमेशा की तरह लाज़वाब..बहुत बढ़िया रचना..बधाई

Chandan Kumar Jha said...

दर्द से भरी रचना………………

Mithilesh dubey said...

बेहद भावपूर्ण रचना । बधाई

Anonymous said...

काफी अकेलापन लगता है .. आपके जीवन में..

shikha varshney said...

laajabaab...........dil ko chu lene wali rachna.

Himanshu Pandey said...

बहुत से अनछुए अभिव्यक्ति के सूत्र तलाश लाते हैं आप ।

पहली ही कुछ पंक्तियाँ -
"मुझे हीं
बहना होगा
कटे नब्जों से
पहले धार में और फिर
टप-टप, टप-टप.." मुग्ध कर गयीं । इसमें टप-टप, टप-टप का विधान तो गजब है !

Yogesh Verma Swapn said...

satya hai. behad khubsurat abhivyakti.

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण!

वाणी गीत said...

मुझे ही सहना होगा ...अपनी सलीब खुद अपने ही कन्धों पर ढोनी होती है ..!!

Apanatva said...

itanee nakaratmakata ? ? ? ? ? ?

डिम्पल मल्होत्रा said...

aaj ke din aisa???congrts ...

अजय कुमार said...

सही है अपना दर्द खुद ही सहना पड़ता है

सदा said...

पहले धार में और फिर
टप-टप, टप-टप...

भावपूर्ण रचना !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

om ji...
atyant bhaavpoorn bhivyakti hai...

सागर said...
This comment has been removed by the author.
सागर said...

हिमांशु जी की टिपण्णी को मेरा भी कमेन्ट समझा जाये...

vandana gupta said...

dard ka dard to wo hi jaan sakta hai jo us had se gujra ho..........behad dardbhari rachna.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ये दर्द मेरा है

मुझे हीं गुजरना होगा इससे

चाहे जैसे गुजरूँ मैं ,

मैं जानता हूँ

तुम साथ नहीं होगी मेरे!

jazbat bahut khoobsurati se abhivyakt kiye hain....har dard khud hi vahan karna padta hai.....rachna ke liye badhai

रश्मि प्रभा... said...

dard ka rishtaa......aur use jeena......waah

रंजू भाटिया said...

ये दर्द मेरा है

मुझे हीं गुजरना होगा इससे

चाहे जैसे गुजरूँ मैं ,

मैं जानता हूँ

तुम साथ नहीं होगी मेरे!


बहुत सुन्दर ...बेहतरीन

अपूर्व said...

आपकी यह रचना अकेलेपन के गहरे गह्वर और हृदय के भग्न खंडहर के अवशेषों पर उगे उदासी के उस बिरवे की तरह लगती है..जिसके साये का सांय-सांय हिलना भी वहाँ की रिक्तता को और सघन बनाती हो..
और इन पंक्तियों का कन्फ़्यूजन

और उस वक़्त मेरा भार
दर्द के भार उतना हीं होगा

...चकित करता है..दर्द का भार इतना बढ़ गया है..या दर्द के वाहक का भार कम हो गया है..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आपका दर्द कितनी शिद्दत के साथ उभरता है.

दिगम्बर नासवा said...

OM JI ... KAMAAL KA LIKHA HAI EK AISA SATY JO MAANTE TO SAB HAIN PAR YAKEEN NAHI KARNA CHAAHTE ...
HAR KOI DARD MEIN KISI KA KANDHA CHAHTA HAI .... KISI KE AANCHAL KI ICHHA RAKHTA HAI ...

KAMAAL KI ABHIVYAKTI HAI ...

Rohit Jain said...

bahut achchhi rachna hai.......saaf baat hai jo karna hai humein karna hai........

ओम आर्य said...

अपूर्व जी, आपने जो सवाल किया है उस सन्दर्भ में मैं ये कहना चाहता हूँ कि उस पंक्ति से मेरा आशय है कि मैं सिर्फ दर्द होऊंगा उस वक़्त, और कुछ नहीं...
आपके कमेन्ट के लिए साधुवाद..

ज्योति सिंह said...

aapki is rachna ko padhkar ek geet yaad aa gaya ,kya dard kisi ka lega koi itna to kisi me dard nahi ,aur sach hi hai apne dard se khud hi ladna padta hai ,ati sundar .

Aparna Bajpai said...

Bhaw aur samveg - dil ko chhu lene wali kavita . Bahut khoob