कुछ मैं नही छोड़ पाया था
कुछ
वो भी नही छोड़ पाई थी
और
इस तरह हम छूट गये थे
एक दूसरे से
जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे.
वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर
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आदमी तो तिनका ही है
और धारें तो बदलती रहती हैं.
36 comments:
बहुत ही गहराई लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे.
behtareen abhivyakti ke saath ek bahut khoobsoorat kavita...
बहुत सुन्दर ओम जी ! दो लाईने और जोड़ने की अनुमति चाहता हूँ ;
मगर मैं,
ऐसा वैसा तिनका नहीं,
जोर से पुकारूँगा,
कि आ, मैं तुझे पार लगा दूं
जब देखूंगा तुम्हे डूबता कहीं !
वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर...............
kya kahun.....?? !!!!!!!!!
"जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे"
बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने । बहुत ही अच्छी रचना, बधाई ।
आदमी तो तिनका ही है
और धारें तो बदलती रहती हैं.
सही कहा बहुत ही सुन्दर प्रभाव शाली रचना है
bahut hi badiya
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और धारें तो बदलती रहती हैं.......यही दुखद है..क्यों नही धार की जगह रिश्ते मजबूत चट्टानों पे पैर जमाते ..क्यों नही ?
kin raasto kin manzilo se wo gujra hoga...yaad honge use ulfat ke fsaane kitne....shayaad esliye mil jaate hai us tinke ko likhne ke bhaane etne....
पता नहीं क्यों...पर कहीं कुछ अधूरा सा लग रहा है!
बहुत गहरी बात कह गए इस छोटी सी रचना में ओम भाई। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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पल्लवी त्रिवेदी से मैं भी सहमत... बधाई की पात्र हैं वो ध्यान दिलाया... कई बार हम कवि के एंगल को नहीं समझ पाते ऐसा भी होता है अगर ऐसा ही हो रहा है तो कुछ नहीं कर सकते... किन्तु कुछ मिसिंग हो रहा है...
Aakhiri 2 panktiyan......kitna gehra keh dia aapne...vakai tinka hi to hai aadmi.
बहुत अच्छा ओमजी , बड़ी धारदार रचना
sashakt rachana . Badhai .
और
इस तरह हम छूट गये थे
एक दूसरे से
बहुत बारीक होती है आपकी अभिव्यक्ति. खामोशी से जैसे बिना बोले किसी की बात हो.
लाजवाब
जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
तिनका हो या चट्टान ....बह ही जाना पङता है ! सुन्दर कविता !
वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर
jeete raho bhaai....aap pe bahut pyar aa raha hai....
बहुत गहन रचना, बधाई.
्बहुत गहरे भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने।बधाई।
पूनम
बहुत गहरे भाव संजोये....
सुन्दर अभिव्यक्ति....
वैसे कहते हैं की डूबते को तिनके का सहारा.
आपकी कलम की बात ही कुछ और है. लेखनी-चंचु से बहुत थोड़े शब्द झरते हैं, लेकिन भावनाओं को कुछ इस अदा बाँध लाते हैं कि मर्माहत करते हैं, हतप्रभ करते हैं और कभी-कभी अवसन्न कर देते हैं ! सूक्ष्म से विराट तक का आत्मबोध देती कविता के लिए आभार बन्धु !
सप्रीत--आ.
वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
कितने-कितने बड़े, और कहाँ-कहाँ तक जाते सच कह जाते हो आप..कभी-कभी आप खुद भी नही जान पाते होंगे..ओम साहब !!!
जो हम नही छोड पाये थे
वह भी छूट गया धीरे धीरे
वक्त ने नई धारें जो बना ली थीं ।
बहुत सुंदर ।
behatareen abhivyakti/
Vaah Om ji .... aadmi sach mein is jeevan roopi nadi mein tinke ki tarah udta rahta hai ... vaqt ki raftaar apni marji se insaan ko udaati rahti hai .... bahoot hi kamal ka likha hai ...
waqt apni dhaar banata hi rahta hai aur hum ya to uske sath bah jate hain ya doob jaate hain...........tinke sa jeevan hai to dhaar ke sath jeena sikhna hi padega...........bahut hi gahan abhivyakti........jeevan ka yatharth bodh karati.
om ji
wakai aadmi to tinka hi hai..dhare badalti rehti hai ..aadmi behta rehta hai .....baht marmik ....
अहं एक बार फिर प्रेम से बड़ा हो गया... एक और रिश्ता बह गया तिनका बन के... आदमी फिर बढ़ चला इक नयी खोज के अंतहीन सफ़र पे...
वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर
छूटने की तकलीफ़ को भी इतने सहज ढंग से अभिव्यक्ति---अच्छी लगी कविता।
हेमन्त कुमार
सही कहा, आदमी तिनका ही है, लेकिन फिर भी आकांशाएं और तमन्नाएं देखो
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
तिनके की नियति और ओम जी के शब्द...फिर ये अधूरापन सा क्या है?
bahut gahryi se
zindgi ki sachchayi kahi hai
jo nahi chor paaye the wo bhi ab chhut gaya hai
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! दिल को छू गई आपकी ये बेहतरीन रचना!
अलगाव में भी प्यार का एहसास यही तो ख़ासियत है आपकी शब्दों से जादू सा कर देते है हर बात आपकी छा जाती है..
सुंदर अभियक्ति....बधाई ओम जी ढेर सारी बधाई
्बहुत गहरे भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने।बधाई।
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