Friday, November 13, 2009

तिनका

कुछ मैं नही छोड़ पाया था
कुछ
वो भी नही छोड़ पाई थी
और
इस तरह हम छूट गये थे
एक दूसरे से

जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे.

वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर

……………………………….
…………………………………

आदमी तो तिनका ही है
और धारें तो बदलती रहती हैं.

36 comments:

सदा said...

बहुत ही गहराई लिये हुये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे.

behtareen abhivyakti ke saath ek bahut khoobsoorat kavita...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर ओम जी ! दो लाईने और जोड़ने की अनुमति चाहता हूँ ;
मगर मैं,
ऐसा वैसा तिनका नहीं,
जोर से पुकारूँगा,
कि आ, मैं तुझे पार लगा दूं
जब देखूंगा तुम्हे डूबता कहीं !

कंचन सिंह चौहान said...

वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर...............


kya kahun.....?? !!!!!!!!!

Kusum Thakur said...

"जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
और उस धार में तो हम तिनकों जैसे थे"

बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने । बहुत ही अच्छी रचना, बधाई ।

रंजू भाटिया said...

आदमी तो तिनका ही है
और धारें तो बदलती रहती हैं.

सही कहा बहुत ही सुन्दर प्रभाव शाली रचना है

Simply Poet said...

bahut hi badiya
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पारुल "पुखराज" said...

और धारें तो बदलती रहती हैं.......यही दुखद है..क्यों नही धार की जगह रिश्ते मजबूत चट्टानों पे पैर जमाते ..क्यों नही ?

डिम्पल मल्होत्रा said...

kin raasto kin manzilo se wo gujra hoga...yaad honge use ulfat ke fsaane kitne....shayaad esliye mil jaate hai us tinke ko likhne ke bhaane etne....

pallavi trivedi said...

पता नहीं क्यों...पर कहीं कुछ अधूरा सा लग रहा है!

श्यामल सुमन said...

बहुत गहरी बात कह गए इस छोटी सी रचना में ओम भाई। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
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सागर said...

पल्लवी त्रिवेदी से मैं भी सहमत... बधाई की पात्र हैं वो ध्यान दिलाया... कई बार हम कवि के एंगल को नहीं समझ पाते ऐसा भी होता है अगर ऐसा ही हो रहा है तो कुछ नहीं कर सकते... किन्तु कुछ मिसिंग हो रहा है...

shikha varshney said...

Aakhiri 2 panktiyan......kitna gehra keh dia aapne...vakai tinka hi to hai aadmi.

अजय कुमार said...

बहुत अच्छा ओमजी , बड़ी धारदार रचना

Apanatva said...

sashakt rachana . Badhai .

M VERMA said...

और
इस तरह हम छूट गये थे
एक दूसरे से
बहुत बारीक होती है आपकी अभिव्यक्ति. खामोशी से जैसे बिना बोले किसी की बात हो.
लाजवाब

अभिषेक आर्जव said...

जब धार पे ख़ड़ा हो
तो कितनी देर रुका रह सकता है
कोई बिना बहे,
तिनका हो या चट्टान ....बह ही जाना पङता है ! सुन्दर कविता !

Dr. Amarjeet Kaunke said...

वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर

jeete raho bhaai....aap pe bahut pyar aa raha hai....

Udan Tashtari said...

बहुत गहन रचना, बधाई.

पूनम श्रीवास्तव said...

्बहुत गहरे भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने।बधाई।
पूनम

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत गहरे भाव संजोये....
सुन्दर अभिव्यक्ति....

वैसे कहते हैं की डूबते को तिनके का सहारा.

आनन्द वर्धन ओझा said...

आपकी कलम की बात ही कुछ और है. लेखनी-चंचु से बहुत थोड़े शब्द झरते हैं, लेकिन भावनाओं को कुछ इस अदा बाँध लाते हैं कि मर्माहत करते हैं, हतप्रभ करते हैं और कभी-कभी अवसन्न कर देते हैं ! सूक्ष्म से विराट तक का आत्मबोध देती कविता के लिए आभार बन्धु !
सप्रीत--आ.

अपूर्व said...

वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे

कितने-कितने बड़े, और कहाँ-कहाँ तक जाते सच कह जाते हो आप..कभी-कभी आप खुद भी नही जान पाते होंगे..ओम साहब !!!

Asha Joglekar said...

जो हम नही छोड पाये थे
वह भी छूट गया धीरे धीरे
वक्त ने नई धारें जो बना ली थीं ।
बहुत सुंदर ।

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen abhivyakti/

दिगम्बर नासवा said...

Vaah Om ji .... aadmi sach mein is jeevan roopi nadi mein tinke ki tarah udta rahta hai ... vaqt ki raftaar apni marji se insaan ko udaati rahti hai .... bahoot hi kamal ka likha hai ...

vandana gupta said...

waqt apni dhaar banata hi rahta hai aur hum ya to uske sath bah jate hain ya doob jaate hain...........tinke sa jeevan hai to dhaar ke sath jeena sikhna hi padega...........bahut hi gahan abhivyakti........jeevan ka yatharth bodh karati.

Unknown said...

om ji
wakai aadmi to tinka hi hai..dhare badalti rehti hai ..aadmi behta rehta hai .....baht marmik ....

richa said...

अहं एक बार फिर प्रेम से बड़ा हो गया... एक और रिश्ता बह गया तिनका बन के... आदमी फिर बढ़ चला इक नयी खोज के अंतहीन सफ़र पे...

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

वो जो हम नही छोड़ पाए थे तब
वो सब भी छूट गये धीरे धीरे
वक़्त ने नयी – नयी धारें बनाई आगे फिर

छूटने की तकलीफ़ को भी इतने सहज ढंग से अभिव्यक्ति---अच्छी लगी कविता।
हेमन्त कुमार

Kulwant Happy said...

सही कहा, आदमी तिनका ही है, लेकिन फिर भी आकांशाएं और तमन्नाएं देखो

युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल

गौतम राजऋषि said...

तिनके की नियति और ओम जी के शब्द...फिर ये अधूरापन सा क्या है?

श्रद्धा जैन said...

bahut gahryi se
zindgi ki sachchayi kahi hai
jo nahi chor paaye the wo bhi ab chhut gaya hai

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! दिल को छू गई आपकी ये बेहतरीन रचना!

विनोद कुमार पांडेय said...

अलगाव में भी प्यार का एहसास यही तो ख़ासियत है आपकी शब्दों से जादू सा कर देते है हर बात आपकी छा जाती है..
सुंदर अभियक्ति....बधाई ओम जी ढेर सारी बधाई

संजय भास्‍कर said...

्बहुत गहरे भावों को अभिव्यक्ति दी है आपने।बधाई।