१)
बीच-बीच में
बिलकुल साफ़-शफ्फाक मौसम
और फिर
कभी हलकी, तो कभी
दनदनाती आती तेज बारिश...
आज मुझे,
सुना रहा था,
दास्ताँ-ए-इश्क बादल!
२)
मेरे कमरे की
कालीन तक पहुँच गया है समंदर
और लहरें उसकी
बार-बार मेरे बिस्तर को छूने लगी हैं
साहिल टूट तो नही जाएगा
3)
तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
आज अखबार में मेरे लापता होने की
ख़बर आई है
४)
कल रात उसके ख्वाब ने
रंगे हाथों पकड़ा मुझे
मैंने पकड़ी हुई थी कलाई
किसी और ख्वाब की
५)
ओस की बूंदों में
थी आंसुओं सी गरमाहट
पता नही रात किस लिए रोई थी
30 comments:
Nikal raha tha.....ki dekha.... bas abhi aa kar poora padhta hoon.....
बेहद लजवाब रही रचना।
बीच-बीच में
बिलकुल साफ़-सफ्फाक मौसम
और फिर
कभी हलकी, तो कभी
दनदनाती आती तेज बारिश...
लजवाब
कल रात उसके ख्वाब ने
रंगे हाथो पकडा मुझे
मैंने पकडी हुई थी कलाई
किसी और ख्वाब की
बहुत सुन्दर !
मेरे कमरे की
कालीन तक पहुँच गया है समंदर
और लहरें उसकी
बार-बार मेरे बिस्तर को छूने लगी हैं
साहिल टूट तो नही जाएगा
... नाभिकीय संलयन जैसा मारक...
"कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी,
आओ कहीं शराब पियें रात हो गयी"
भावनावों का सुन्दर चित्रण
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी दिल को छूती हुई लाजवाब प्रस्तुति ।
samandar kee lahren bistre ko chhuti hain.......waah, sahil ke tutne ka darr kaisa !
ये बरसात तो आने के साथ साथ इश्क का पैगाम लाती है ... बरसात करती है फिर मुहाबत की ......
और समुन्दर की पहुच .......... कमाल है लहरों की इन्तेहा का ......... लगता है इश्क का इज़हार कर रही हैं आपसे .........
आपके लापता होने की खबर ........ हम तक तो ये बात आपकी नज्मों के जरिये ही आयी है ..........
बाकी सब भी लाजवाब ओम जी ........ बार बार पढ़ रहा हूँ ....... बार बार आनंद ले रहा हूँ ........
saare acche hain... doosri aur teesri bahut jyada nasheeli hain..
दास्ताँ-य-इश्क में "दनदनाती तेज"....बहुत भाग्यशाली हैं......बहुत सुन्दर रचनायें....मै सब पढता हूँ आपका लिखा हुआ, शब्द नही मिलते अकसर इसलिये बिना तारीफ़ किये लौट जाता हूँ..बहुत अच्छा लगता है आपको पढना...
बारिश अपने आप में एक खुद दास्तान है। और फिर जब उसमें रूमानी एहसास जुड़ जाएं, तो बात ही कुछ और हो जाती है। और वही कुछ और वाली बात आपकी सभी रचनाओं में जाहिर हो रही है।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
शुक्रिया आप सब का जो आप मेरी रचनाओ को पसन्द करते है!ऐसे ही आप सबका प्यार बना रहे !
ओम आर्य
तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
आज अखबार में मेरे लापता होने की
ख़बर आई है
इतनी नाजुक रचना जैसे नजर पडते ही सिमट जायेगी.
कल रात उसके ख्वाब ने
रंगे हाथो पकडा मुझे
मैंने पकडी हुई थी कलाई
किसी और ख्वाब की
bahut hi sunder..
मेरे कमरे की
कालीन तक पहुँच गया है समंदर
और लहरें उसकी
बार-बार मेरे बिस्तर को छूने लगी हैं
साहिल टूट तो नही जाएगा
ye to qayamat hai bas...kamal ka khayal hai...
bahut sunder rachnayen hain sab.
आप जो शब्द और भाव अपनी रचना में लाते हैं वो आपकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है..आप का लेखन बहुत उच्च कोटि का है...आपको पढना एक अनुभव है ...शानदार अनुभव...
नीरज
ओम भाई,
क्षणिकाएं पढीं; जाने क्यों बैठकखाने के बीचों-बीच बिछी कालीन किनारे से भीगी हुई लगी ! शानदार और भावुक कर देनेवाली पंक्तियाँ हैं... अति सुन्दर !! 'सफ्फाक' को 'शफ्फाक' कर दें केवल और अन्यथा हरगिज़ न लें !
सप्रीत--आ.
vilakshan pratibha ke dhanee hai aap . bahut hee sunder rachana hai ye .
बहुत बहुत धन्यावाद आनन्द जी!
माशा अल्लाह ओम साहब... आपको पढना एक बेहतरीन अहसास है.. शुक्रिया..
तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
जितना कमाल इन पंक्तियों के विसर्जन और स्वप्नभंग का है उ्तना ही कमाल आखिरी मे बचे इस एक ’शायद’ के अनिश्चय और एक मिस्टिसिज़्म का है..कि क्या निसार कर दूँ बस....
और इधर बंगलुरू मे हो रही पिछले तीन दिन से तेज बारिश बस बाल्कनी मे बैठ कर गर्म चाय के साथ इस दिलकश नज़्म को घूँट-घूँट जज़्ब करने का इसरार करती है..मगर जिंदगी ख्वाबों के मुँह पर ठंडे पानी के छीटे मार कर खड़ा कर देती है..काम पर जाने के लिये...
कल रात उसके ख्वाब ने
रंगे हाथों पकड़ा मुझे
मैने पकड़ी हुई थी कलाई
किसी और ख्वाब की
--वाह बहुत सुंदर।
मुझे तुझसे डर लगता है
तू ख्वाबों में भी
पहरेदारी करती है।
सारी क्षणिकाएं....लाजवाब.
तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
आज अखबार में मेरे लापता होने की
ख़बर आई है
ye kuchh khaas lagi....badhai
koshish kyee baar ki ki kuch cmnt karu par suitable shabdo ka tana banana bun payee....hairaan hun us barish pe or ishaq ki baatein kaise ki hongee badal ne...smunder ko bhi kya laga hoga jab louta hoga apke kaleen ko chhokar....khwab ki klayee pe nishan padh gye ho shayad...dekhe to zara...तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
आज अखबार में मेरे लापता होने की
ख़बर आई है..jaise jagti aankho ka khwab koee...anyway meri ik nazam khud ki chori ho gyee hai aisa lga....
har ik pankti lajawaab
Raj ji,
kalai pe chhuan jaroor pad gayee hogi....koi jod jabardasti nahi ki thi maine ki nishan pad jaaye...
aur aapko to nazm chori ho gaya laga...aur mujhe nazm mil gayee hui lagi koi...
aanchal ka chhod koi dekhe...kahin bheeng to nahi gaya hai...
तुमने पोंछ दी थी
जो नज़्म लिख के कागज़ पे कल
उसमें मेरा भी नाम था शायद...
आपका लिखा हमेशा प्रभावित करता है ...सभी दिल को छु गयी ..यह विशेष रूप से पसंद आई ..शुक्रिया
सच मे शब्द नहीं मिलरहे रारीफ क्या करें बहुत सुन्दर लाजवाब अभिव्यक्ति है । बिमारी मे मौन के खाली घ्र मे जाने की कोशिश की मगर नहीं मिला । कुछ न कुछ शोर सुनाई देता ही रहता है आप कैसे जाते हैं मौन के खाली घर मे ? वहाँ से तराश लाते हैं हीरी जैसे शब्द और अभिव्यक्ति लाजवाब बधाई और आशीर्वाद्
मेरे कमरे की
कालीन तक पहुँच गया है समंदर
और लहरें उसकी
बार-बार मेरे बिस्तर को छूने लगी हैं !
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं ! इस शानदार रचना के लिए बधाई!
कल रात उसके ख्वाब ने
रंगे हाथो पकडा मुझे
मैंने पकडी हुई थी कलाई
किसी और ख्वाब की
Pakde gaye na jenab!!
Kahan kahan se laate ho yaar. Aap kamaal ho.
http://gubaar-e-dil.blogspot.com
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