Sunday, February 14, 2010

जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम बची रहोगी
उन पुरानी
उतार दी गयी कपड़ों की सिलवटों में
और महसूस हो जाओगी अचानक
जब किसी दिन
यूँ हीं ढूंढ रहा होऊंगा कोई कपड़ा
कुछ पोंछने के लिए,
ये मैंने सोंचा नहीं था

मुझे ये बिलकुल नहीं लगा था
कि इस सतही वक़्त में
जब प्यार इतना उथला हो गया है,
कोई इतने लम्बे अरसे तक
एक सिलवट में रहना चाहेगा इतना गहरा
वो भी तब जब
महसूस लिए जाने की संभावना बिलकुल नगण्य हो

जबकि वक़्त ने छोड़ दिया है रिश्तों की परवाह करना
और बनने से पहले हीं टूटने लगी हैं चीजें
तुम इतनी संजीदगी से
कैसे बचा सकती हो रेत का घड़ा
और पानी आँखों में

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!

18 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुम बची रहोगी
उन पुरानी
उतार दी गयी कपड़ों की सिलवटों में
और महसूस हो जाओगी अचानक
जब किसी दिन
यूँ हीं ढूंढ रहा होऊंगा कोई कपड़ा
कुछ पोंछने के लिए,
ये मैंने सोंचा नहीं था....

पहली पंक्तियों ने ही मन को मोह लिया... बहुत सुंदर कविता....

Meenu Khare said...

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!

रोना आ गया ओम भाई आपकी कविता पढ कर.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.

Razi Shahab said...

behtareen

डिम्पल मल्होत्रा said...

सोचती हूँ कि किस तरह लिख दी गयी ये कविता.क्या गुजरी होगी लिखते वक़्त .आँखों के पानी ने लफ्जों के अक्स को कई बार धुंधला पाया होगा..यादें संजीदा ही होती है पड़ी रहती है सिलवटों में कही..हर चीज़ की इक उम्र होती है मगर यादो की नहीं...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bohat he badhiya om ji

निर्मला कपिला said...

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!
ओम जी कई बार हैरत होती है कि जिस गहराई तक आप पहुँच जाते हैं उससे आगे भी कोई गहराई है मगर जब आपकी अगली रचना आती है तो वो उससे भी गहरे मे उतर जाती है। अद्भुत एहसास हैं आपके। कई बार तो शब्द ही नही सूझते। दिल को छू गयी ये रचना शुभकामनायें

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

ग़जब !
आश्चर्य है कि मेरे आज के लेख में भी ऐसे ही कुछ भाव हैं लेकिन संयोग 'संयोग' का है .. "तुम हो सब है"।
कभी कभी सोचता हूँ क्या दूसरा पक्ष भी ऐसे ही ...! छोड़िए।
प्रेम में सोचा नहीं करते ।

Apanatva said...

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!

aapkee ye rachana man aankhe sab nam kar gayee...

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया रचना ..बधाई ....

M VERMA said...

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!
हकीकत संजीदा नहीं होती. ख्वाब संजीदे होते हैं.
बहुत मर्मस्पर्शी रचना
सुन्दर

कंचन सिंह चौहान said...

आप हर बार अद्भुत लिखते हैं, हम कभी कभी ही टिप्पणी देने का साहस कर पाते हैं.....!

सागर said...

लाहौलविलाकुवत...

रोहित said...

aaj main pehli baar aapki rachna ko padh raha hun sir,wakai kaafi marmsparshi rachna hai....!!
bahut hi accha laga.

shikha varshney said...

ओम जी ! मैं स्तब्ध रह जाती हूँ आपकी अभिव्यक्ति देख कर...किन पंक्तियों का जिक्र करूँ, नहीं चुन पा रही हूँ...कितनी सरलता से कितनी गहरी बात कह जाते हैं आप...अब तो टोपी उतरना भी कम लगता है...:)

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मुझे ये बिलकुल नहीं लगा था
कि इस सतही वक़्त में
जब प्यार इतना उथला हो गया है,
कोई इतने लम्बे अरसे तक
एक सिलवट में रहना चाहेगा इतना गहरा
वो भी तब जब
महसूस लिए जाने की संभावना बिलकुल नगण्य हो
बहुत सुन्दर.

गौतम राजऋषि said...

you are amazing...

बस, इससे ज्याद कुछ कहना बेमानी हो जायेगा। ये कविता दिनों तक साथ रहेगी मेरे...

पूनम श्रीवास्तव said...

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

Bahut hee samvedansheel evam bhaavanaatmak kavita. hardika badhai.