कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
है तो वो समंदर हीबस किनारे छोटे हैं...-अद्भुत कल्पना!! वाह-आनन्द आ गया.
आसुओं की बाढ़ ,पलको के किनारेपढ़ कर हम तो बलिहारे- बहुत सुन्दरतेरी अश्कों कीबूँदें देख केयूँ लगा,किहैं तो वे समंदर हीं ,सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।
जिसका पूरा था मैंउसनेछोड़ दिया मुझकोउसके वास्ते,जो मेरी थी ही नहीं।.....समंदर के छोटे किनारे प्रभावित करते हैं ...!!
wah!
छोटे किनारे वाले समंदर क्या बात है आंखो के लिये सुन्दर शब्द
बहुत ही सुन्दर कल्पना, इस समन्दर के छोटे किनारो की व्याख्या लाजवाब ।
जिसका पूरा था मैंउसनेछोड़ दिया मुझकोउसके वास्ते,जो मेरी थी ही नहीं।कहाँ की कहाँ फेकी है... क्या कोई मचूवारा समंदर में उतरा है ?
बहुत ही सुन्दर कल्पना, इस समन्दर के छोटे किनारो की व्याख्या लाजवाब ।bahut achchi lagi yeh kavita....
lajawaab
aapka to koi jawaab nahi
अद्भुत
samandar ki kinaaron ki upma bahut achhi lagi
हैं तो वे समंदर हीं ,सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।om ji,bahut sundar khayaal...saari kshnikayen bass kamaal hain....badhai
om ji mahaaraj,bahut he bhaavpoorn kalpna hai aapki...badhaayi.cheers!surenderhttp://shayarichawla.blogspot.com/
ashkon ka samandar shayad us samandar se bhi gahra hota hai sirf wo nigaah hi nhi milti jo us gahrayi mein utarna chahae.........bahut hi gahre bhav bhar diye hain.
main sameer ji ki comment ko jyon ka tyon copy paste karna chahta hun.है तो वो समंदर हीबस किनारे छोटे हैं...-अद्भुत कल्पना!! वाह-आनन्द आ गया.bahut khoob, om ji 9 shabdon men samandar hi to hai.
बहुत सुंदर वैसे भी समंदर क्या होता है बूंद पर बूद पर बूंद...................................पर बूंद ।
कितना मुश्किल हो रहा है इस पर कुछ कह पानाजिसका पूरा था मैंउसनेछोड़ दिया मुझकोउसके वास्ते,जो मेरी थी ही नहीं।..और फिर यह फ़िसलपट्टी...उफ़्फ़्फ़....
pehli baar padha aur pehli baar me hai samander k chhote kinaro ko padh kar aapke mureed ho gaye...bahut bahut badhiya likha hai.
जिसका पूरा था मैंउसनेछोड़ दिया मुझकोउसके वास्ते,जो मेरी थी ही नहीं।---behad bhaavpurn!'हैं तो वे समंदर हीं ,सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।[bahut umda kapna!]--waah! sabhi kshanikayen ek se badhkar ek!
है तो वो समंदर हीबस किनारे छोटे हैं...क्या कहूं? ऐसी उपमाएं, कल्पनायें बहुत कम पढने को मिलती हैं.
congratulations.............
तेरे अश्कों कीबूंद देख के यूँ लगा , कि है तो वे समंदर ही ,किनारे छोटे हैं ....वाह बहुत खूब.....ओम जी छू गई .....!!जिसका पूरा थाउसने छोड़ दिया मुझको उसके वास्ते जो थी ही नहीं मेरी .....वाह......लाजवाब......!!तेरी कमी अब भी खलती है दिल को फुर्सत मिले तो देखना कभी ......किसी ठूंठ दरख्त को .....!!
thanks to everybody
no cmnts......congrats....
आज की रातमैं, तुमऔर ये फिसलपट्टी ...तीनो ही चित्र कमाल के हैं ....... अलग अलग रंग भरे ........ मुहब्बत की दास्ताँ कहते हुवे ........ बहुत खूब लिखा है ओम जी .........
बहुत खूब।
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28 comments:
है तो वो समंदर ही
बस किनारे छोटे हैं...
-अद्भुत कल्पना!! वाह-आनन्द आ गया.
आसुओं की बाढ़ ,पलको के किनारे
पढ़ कर हम तो बलिहारे- बहुत सुन्दर
तेरी अश्कों की
बूँदें देख के
यूँ लगा,
कि
हैं तो वे समंदर हीं ,
सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।
जिसका पूरा था मैं
उसने
छोड़ दिया मुझको
उसके वास्ते,
जो मेरी थी ही नहीं।
.....
समंदर के छोटे किनारे प्रभावित करते हैं ...!!
wah!
छोटे किनारे वाले समंदर
क्या बात है
आंखो के लिये सुन्दर शब्द
बहुत ही सुन्दर कल्पना, इस समन्दर के छोटे किनारो की व्याख्या लाजवाब ।
जिसका पूरा था मैं
उसने
छोड़ दिया मुझको
उसके वास्ते,
जो मेरी थी ही नहीं।
कहाँ की कहाँ फेकी है... क्या कोई मचूवारा समंदर में उतरा है ?
बहुत ही सुन्दर कल्पना, इस समन्दर के छोटे किनारो की व्याख्या लाजवाब ।
bahut achchi lagi yeh kavita....
lajawaab
aapka to koi jawaab nahi
अद्भुत
samandar ki kinaaron ki upma bahut achhi lagi
हैं तो वे समंदर हीं ,
सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।
om ji,
bahut sundar khayaal...
saari kshnikayen bass kamaal hain....badhai
om ji mahaaraj,
bahut he bhaavpoorn kalpna hai aapki...badhaayi.
cheers!
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/
ashkon ka samandar shayad us samandar se bhi gahra hota hai sirf wo nigaah hi nhi milti jo us gahrayi mein utarna chahae.........bahut hi gahre bhav bhar diye hain.
main sameer ji ki comment ko jyon ka tyon copy paste karna chahta hun.
है तो वो समंदर ही
बस किनारे छोटे हैं...
-अद्भुत कल्पना!! वाह-आनन्द आ गया.
bahut khoob, om ji 9 shabdon men samandar hi to hai.
बहुत सुंदर वैसे भी समंदर क्या होता है बूंद पर बूद पर बूंद...................................पर बूंद ।
कितना मुश्किल हो रहा है इस पर कुछ कह पाना
जिसका पूरा था मैं
उसने
छोड़ दिया मुझको
उसके वास्ते,
जो मेरी थी ही नहीं।
..और फिर यह फ़िसलपट्टी...
उफ़्फ़्फ़....
pehli baar padha aur pehli baar me hai samander k chhote kinaro ko padh kar aapke mureed ho gaye...bahut bahut badhiya likha hai.
जिसका पूरा था मैं
उसने
छोड़ दिया मुझको
उसके वास्ते,
जो मेरी थी ही नहीं।
---
behad bhaavpurn!
'हैं तो वे समंदर हीं ,
सिर्फ किनारे छोटे हैं उनके।[bahut umda kapna!]
--waah! sabhi kshanikayen ek se badhkar ek!
है तो वो समंदर ही
बस किनारे छोटे हैं...
क्या कहूं? ऐसी उपमाएं, कल्पनायें बहुत कम पढने को मिलती हैं.
congratulations.............
तेरे अश्कों की
बूंद देख के
यूँ लगा ,
कि
है तो वे समंदर ही ,
किनारे छोटे हैं ....
वाह बहुत खूब.....ओम जी छू गई .....!!
जिसका पूरा था
उसने
छोड़ दिया मुझको
उसके वास्ते
जो थी ही नहीं मेरी .....
वाह......लाजवाब......!!
तेरी कमी अब भी खलती है दिल को
फुर्सत मिले तो देखना कभी ......
किसी ठूंठ दरख्त को .....!!
thanks to everybody
no cmnts......congrats....
आज की रात
मैं, तुम
और ये फिसलपट्टी ...
तीनो ही चित्र कमाल के हैं ....... अलग अलग रंग भरे ........ मुहब्बत की दास्ताँ कहते हुवे ........ बहुत खूब लिखा है ओम जी .........
बहुत खूब।
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