Sunday, December 27, 2009

ये दर्द रोज कम होता जा रहा है !!

सूरज जल्दी-जल्दी डूब कर
शाम कर दिया करेगा
और शाम अपने तन्हाई वाले हाथ रखने के लिए
मेरे कंधे नही तलाशा करेगी

तमाम खीझ और उब के बावजूद
आत्मा बार-बार लौटा करेगी
वासना से लदी उसी सूजन वाले शरीर में
जिसे घसीटते रहने में

अब कोई उत्तेजना बाकी नही होगी

बिना तलब के हीं
मुझे जला लिया करेगा
थोडी-थोडी देर पे एक लंबा सिगरेट
और पी-पी कर मेरे ख़त्म होने का
इंतज़ार किया करेगा

रात पे कान रख के
मैं सहलाना चाहूँगा झींगुरों की आवाजें
और ख़राब होती टियुबलाईट की आवाज भी
मेरे मौन में कोई छेड़ नही कर पाएगी

आँखे जाग कर नींद देखने की
हर रोज कोशिश करेगा
पर कोई पागल सा सपना
उन्हें अफीम दे कर सुला दिया करेगा हर रोज

तुम चली गई हो
कबूल करता है ये मन अब,
यह हथेली भी अब मान गई है

और काम चला लेती है
बिना तेरे स्पर्शों के

पर जब भी सोंचता हूँ कि ये जो दर्द है हिज्र का
वो भी चला गया तो ...
तो ऐसे हीं ख्याल आते हैं...
और ये दर्द है कि रोज कम होता जा रहा है !!

24 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुम चली गई हो
कबूल करता है ये मन अब,
यह हथेली भी अब मान गई है
और काम चला लेती है
बिना तेरे स्पर्शों के ...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ..... दिल को छू गयीं...... आपकी रचनाएँ..... दिल के अन्दर तक छू लेतीं हैं......

निर्मला कपिला said...

बहुत दिन बाद नज़र आये आप मौन के खाली घर से दूर रहे हम भी तभी शायद खुद से भी दूर रहे। आपकी रचना कमाल की है
तुम चली गई हो
कबूल करता है ये मन अब,
यह हथेली भी अब मान गई है
और काम चला लेती है
बिना तेरे स्पर्शों के ...
पता नहीं कैसे एक संवेदना के लिये इतने शब्द बुन कर इसमे ऐसा दर्द डाल देते हैं कि दिल को छू जाती है रचना बहुत बहुत बधाई नया साल मुबारक हो। आशीर्वाद

Mithilesh dubey said...

क्या बात है ओम भाई , आये तो आये दुरुस्त आये , बहुत खुब ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बहुत सुंदर.

Anonymous said...

Now you are writing something original !

Raj Singh said...

वाह बहुत सुंदर.
नया साल मुबारक हो।

हरकीरत ' हीर' said...

बस देखिएगा ये ये दर्द भी कम हो गया तो जीना और भी मुश्किल हो जायेगा ओम जी ....इसे संभाले रखियेगा .......गज़ब की फीलिंग्स .....!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

boht sundar om ji.

Kulwant Happy said...

आखें जाग कर नींद देखने.. से आगे तो हर पंक्ति गजब की है॥ओम आर्य जी
एनडी तिवारी के नाम खुला

दिगम्बर नासवा said...

तुम चली गई हो
कबूल करता है ये मन अब,
यह हथेली भी अब मान गई है
और काम चला लेती है
बिना तेरे स्पर्शों के ...

कमाल की बात लिखी है ...... ये दिल ही तो है जो मानता नही किसी भी बात को ......... और अगर दिल कबूल कर ले तो फिर आसान हो जाता है जीवन ........ आसान हो जाती है राह ......... दर्द भी कम होने लगता है ......... हमेशा की तरह लाजवाब ओम जी .........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ओम जी ,
तुम चली गई हो
कबूल करता है ये मन अब,
यह हथेली भी अब मान गई है और काम चला लेती है बिना तेरे स्पर्शों के
पर जब भी सोंचता हूँ कि ये जो दर्द है हिज्र का
वो भी चला गया तो ...
तो ऐसे हीं ख्याल आते हैं...
और ये दर्द है कि रोज कम होता जा रहा है !!

बहुत ही संवेदनशील रचना..एहसासों को खूबसूरत शब्दों में बांधा है.... बधाई



नव वर्ष की शुभकामनायें

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया पढ़कर.

M VERMA said...

पर जब भी सोंचता हूँ कि ये जो दर्द है हिज्र का
वो भी चला गया तो ...
दर्द का सम्बन्ध तो आस से है. निराश व्यक्ति को दर्द नही होता. दर्द के कम होने का यह दर्द वाकई मार्मिक है. हथेलियाँ छुए न छुए इस रचना ने तो छू लिया.

अजय कुमार said...

भावुक मन के सुंदर उदगार

सागर said...

पहले प्रेम था
फिर जिस्म बनी
अब एक बिस्तर बन कर कोने में पड़ा रहता है
जिसे मैं
वक़्त-बेवक्त पहन लेता हूँ... ओढ़ लेता हूँ, बिछा लेता हूँ....

सदा said...

हमेशा की तरह इस बार भी बेहतरीन रचना ।

के सी said...

बहुत दिनों के आवारा आचरण के बाद कल से ब्लॉग देखे हैं, मगर आपकी इस कविता का आनंद पहले भी ले चुका हूँ तब मुझे लगा कि कविता पर काम करना बाकी है, और शायद आपकी व्यस्तता का परिणाम है तो बिना कुछ कहे चला गया था. आज अभी इसे फिर से देखा है. आपकी प्रकृति के अनुकूल ही है कविता, बहुत एब्सट्रेक्ट और नए बिम्बों के साथ.

Alpana Verma said...

यह दर्द भी जीना सीखाता है...संभाले रखीये...खुद में में बहा ले जाने का सामर्थ्य रखती हैं आप की रचनाएँ.

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

पर जब भी सोंचता हूँ कि ये जो दर्द है हिज्र का
वो भी चला गया तो ...
तो ऐसे हीं ख्याल आते हैं...
और ये दर्द है कि रोज कम होता जा रहा है !!

सुन्दर अति सुन्दर ...

Yogesh Verma Swapn said...

sunder abhivyakti. badhaai.

गौतम राजऋषि said...

इन बिम्बों में उलझ कर मन है कि कहाँ-कहाँ भटक आया है....

डॉ. मनोज मिश्र said...

वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र

डिम्पल मल्होत्रा said...

"ये दर्द रोज कम होता जा रहा है !!"kanjusi se kharach kare to kabhi kam na hoga...

Yogesh Verma Swapn said...

kuchh roohen...................lagaataar.

bahut umda abhivyakti. wah.